भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (ऍफ़.टी.आई.आई.) के अध्यक्ष पद पर  गजेंद्र चौहान जैसे अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति दर असल बौद्धिक जगत के लोगों को मानिसक गुलाम  बनाने की साजिश है.FTII ..

रविराज पटेल

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (ऍफ़.टी.आई.आई.), पुणे भारत की धरोहर संस्थान है | विश्व भर में इसकी  प्रतिष्ठा है | इसलिए नहीं कि वहां सिनेमा की पढाई होती है, बल्कि  इसलिए कि यहाँ विलक्षण प्रणाली प्रारूप पर देश के चुनिंदे छात्रों को सिनेमाई शिक्षा दी जाती है | जहाँ नामांकन पा लेने का अर्थ ही होता है कि वह ज़रूर भविष्य में भारतीय सिनेमा का सिरमौर बनेगा | खास तरह के फिल्म संस्थानों में इसके उदाहरण विश्व भर में पेश किये जाते हैं |

लैकिन आजकल इस संस्थान की चर्चा एक अयोग्य व्यक्ति को लेकर हो रही है, जो शर्मनाक है | ऍफ़ टी आई आई का इतिहास रहा है कि यहाँ के गवर्निंग काउन्सिल के अध्यक्ष वही हुए हैं जो सिनेमा के विशुद्ध मर्मज्ञ रहे हैं | ऍफ़ टी आई आई के अध्यक्षीय सूची पर अगर गौर करें तो इसका अंदाज़ा आपको सहज ही हो जायेगा |

कहां गजेंद्र चौहान, कहां एफटीआईआई

क्रमशः अनवर जमाल किदवई, एस.एम.एच.बरने, आर.के. लक्ष्मण, श्याम बेनेगल, मृणाल सेन, अदूर गोपाल कृष्णन, महेश भट्ट, गिरीश कर्नाड, विनोद खन्ना, यू.आर. अनंतमूर्ति, सैयद अख्तर मिर्ज़ा | उक्त वर्णित ऐसे चेहरें है जिनके नाम से सिनेमा शब्द चरितार्थ होता है | इस क्रम में गजेन्द्र चौहान का नाम जुड़ते ही मालूम पड़ता है, जैसे  अच्छी भली चल रही वाहन अचानक खाई में जा गिरी और दुर्घटना का कारण यह कि वाहन अचानक नव प्रशिक्षु के हाथों आ गई थी |

गजेंद्र का पशंसक हूं पर वह हैं अयोग्य

महाभारत के युधिष्ठिर किरदार से नामचीन हुए अभिनेता गजेन्द्र चौहान का फिल्म संस्थान का अध्यक्ष मनोनीत होना केन्द्र की भाजपा सरकार की ओर से नजराना या खैरात बाँटना स्पष्ट करता है | देश के कोने  कोने से संस्कृतिकर्मियों का विरोध जारी है | उतना ही नहीं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर रणवीर कपूर तक, आनंद पटवर्धन से लेकर पी. के. नायर तक ने भी इस फैसले को अनुचित बताया है| बाबजूद उसके सूचना प्रसारण मंत्रालय अपने फैसले पर ढीठ बना हुआ है | बात यह नहीं कि चौहान से किसी को व्यक्तिगत नाराज़गी है | एक अभिनेता के रूप में मैं उनका प्रशंसक हूँ | लेकिन ऍफ़ टी आई आई जैसे संस्थान के अध्यक्ष पद पर बैठने की योग्यता उनमें है, यह नहीं मानता | तार्किक रूप से  समझने के लिए उनके अगुवाई में संचालित हो रहे संस्थानों का अवलोकन किया जा सकता है |

 

मुझे तो यह समझ नहीं आता कि भारतीय राजनीती के शिखर पर बैठने वाले राजनेताओं को हो क्या गया है ? जिनके मंत्रिमंडल के एक सदस्य पर फर्जी शैक्षणिक योग्यता का आरोप हो, वह इस देश की मानव संसाधन विकास मंत्री बनाएँ गई हैं | चौहान के चरित्र से अवगत होने के बाबजूद उन्हें ऍफ़.टी आई आई जैसे संस्थान के शिखर पर बैठा दे रहे हैं | मुझे तो लगता है कि सरकार की यह सोंच इस बात का सूचक है कि वे हमें बौद्धिक एवं शैक्षणिक रूप से गुलाम करने की साजिश कर रही है | वर्ना क्या देश में योग्य महानुभावों का अकाल पड़ गया है ? अगर उनकी दृष्टि में हमारे पास ऐसे व्यक्तियों के विकल्प नहीं है, तो हमें यह मान लेना चाहिए कि सरकार हमारी  अहित की तैयारी ज़ोर शोर से कर रही है |

 सेवा का मिला मेवा

राजनेताओं की ऐसी निति और नियत स्पष्ट करता है कि कला, संस्कृति या देश के धरोहर संस्थानों के प्रति उनकी संवेदनशीलता मर चुकी है | उनको हमारी गरिमा पर कोई गर्व नहीं है यही कारण है कि वे उसे बर्बाद कर देने की लगातार दुस्साहस कर रहे हैं |  ऍफ़ टी आई आई के अध्यक्ष पद पर बैठने की योग्यता सिर्फ यह नहीं हो सकती कि उन्होंने कितने दिनों से किसी खास राजनैतिक पार्टी या व्यक्ति विशेष की आओभगत की है | इस मनोनयन की घोर निंदा की  जा रही है जो बिल्कुल वाजिब है| मैं समझता हूँ चारों तरफ से हो रहे विरोध व्यक्ति का नहीं है, अयोग्यता का है |

 

(लेखक सिनेमा के फ्रंट पर सक्रीय एवं सिनेयात्रा के संस्थापक सचिव हैं) 

 

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