नीतीश सरकार दारू पर पाबंदी लगाने के अपने वादे पर आगे बढ़ चुकी है.असित नाथ तिवारी इसके लिए नीतीश कुमार को मुबारकबाद दे रहे हैं और साथ ही कुछ सवाल भी खड़े रहे हैं.beer

वैसे शराब की दुकानों को गली-गली पहुंचाया भी आपने ही था नीतीश बाबू,स्कूल-कॉलेजों के दरवाजों पर, मंदिर-मस्जिद के पिछवाड़े तक.अस्पतालों की चाहारदीवारी तक.कहां-कहां नहीं खुलवा दिया था आपने मदिरालय.

राह पकड़ तू चल चला चल पा जाएगा मधुशाला के मायने ही बदल दिए आपने.घर से निकल जिधर भी देख पा जाएगा मधुशाला की रचना कर दी आपने.अब शायद आपका भी मन भर गया…जित देखूं तित मधुशाला…उकता गईं होंगी आंखें अब.. लेकिन नीतीश बाबू इतने बेवड़ा हम भी नहीं हैं.

35 सौ करोड़ का घाटा

सालाना 35 सौ करोड़ कमाई वाला सरकारी धंधा यूं ही नहीं बंद कर रहे होंगे आप..आपको भी मालूम है सत्ता समाज का एक बड़ा हिस्सा अंगूरी गहराई के बाद ही नींद की आगोश में जाता है.वोट का बेहद उलझा अंकगणित देसी-विदेशी मदहोशी से सुलझ जाता है…और सच तो ये है कि आपके चाहने से सूबे में शराब बंदी हो जाएगी इसमें संदेह ही संदेह है.आप सरकारी ठेके ही न बंद करवा देंगे…नीतीश बाबू आप तो जानते ही हैं कि सरकारी ठेके की मतलब पउवा है..पाव भर.बारह आना कारोबार तो अवैध शराब का है..महुआ-मिट्ठा से लेकर यूरिया तक, हंड़िया से लेकर चुलाई तक..इसे आज तक रोक पाया है कोई?

 

दस सालों में आपने भी बहुत हाथ-पांव मारे..रोक पाए क्या ? तो साहब कहीं शराबबंदी वाला आपका ये बयान साहब वाला 15 लखिया जुमला न निकल जाए.हम तो बस आगाह कर रहे हैं आपको..वैसे आपका बयान मदहोशों के होश उड़ाने के लिए काफी है. तो सरकारी ठेका वाला बोर्ड अब नहीं दिखेगा…चलिए कोई बात नहीं. बवाली धंधा था भी ये. ठेका हड़पने के लिए गोलियां चल जाती थीं. ठेके के बाद नकली शराब के लिए गोलियां चल जातीं थीं. जी का जंजाल हो जाता था. अब ठीक रहेगा.

गांव-गांव काका-काकी, भाई-भौजाई की भट्ठियां चल ही रही हैं.हंसी-मजाक के बीच सब बराबर होता रहेगा.कभी-कभार कुछ हो भी गया तो लोग पी-खाकर बवाल वाली श्रेणी में डाल ही देंगे. नशे की इस धार में सबकी खुशी है.नेताजी भी खुश, थानेदार भी खुश.अफसर-हाकिम भी खुश. बिहार में सरकारी शराब पर प्रतिबंध लग जाएगा..

 

बाकी बच्चन साहब की रुबाई गुनगुनाने पर तो कोई रोक है नहीं-
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला

लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला

लेखक साधना न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार हैं.टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से

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