बिहार विधान सभा के प्रथम चरण का मतदान परसो यानी 12 अक्‍टूबर को हो रहा है। चुनावी सर्वेक्षणों पर रोक लगायी जाएगी। अब तक सर्वेक्षणों में अलग-अगल दावे किये जा रहे हैं। सर्वेक्षणों का अपना बाजार है,  अपनी उपयोगिता है। इसे न तो पूरी तरह खारिज किया जा सकता है और न स्‍वीकार किया जा सकता है। लेकिन इस  पर चर्चा जारी है। हालांकि इसके आधार पर वोटिंग पैटर्न तय होता हो, ऐसा नहीं है।644357475-Bihar-Assembly_6

वीरेंद्र यादव

 

हमने भी एक सर्वेक्षण ‘जाति का जनादेश ‘  28 सितंबर को जारी किया था। इस सर्वेक्षण का भी अपना आकलन था। लेकिन पिछले 8-10 दिनों में तेजी से समीकरण बदला है,  वोटरों का रुझान भी बदला है। लेकिन वोटरों का बदलाव अब ठहराव में बदलता जा रहा है। मतदान को लेकर वोटरों ने भी अपना निश्‍चय तय कर लिया है। मतदान को लेकर कई कारक सक्रिय होते हैं और सबका अपना प्रभाव होता है। इसमें सबसे ज्‍यादा प्रभावी भूमिका ‘जाति’  की होती है। कोई भी आकलन इससे बहुत अलग नहीं होता है।

( ‘जाति का जनादेश’ पढ़ने के लिए लिंक है-

www.facebook.com/kumarbypatna/posts/10204911089715715)

 

पिछले 8-10 दिनों में लोगों से बातचीत के दौरान एक बात साफ रूप से महसूस किया गया कि वोटरों के पास विकल्‍प सीमित हैं। वोटरों में मत निर्णय को लेकर संशय अब नहीं रह गया है। लोगों ने तय कर लिया है कि वोट कहां देना है। इस दौर में वोट का समीकरण और ट्रेंड बता रहा है कि बहुमत में जो भी गठबंधन आए,  वह पूर्ण बहुमत से ज्‍यादा सीट लाएगा। विपक्ष में बैठने वालों दलों के विधायाकों की संख्‍या 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाएगी। वजह यह है कि हाशिए पर रहने वाली जातियां ही हार-जीत तय करेंगी। इन जातियों का भी अपना अंडर करेंट होता है। लेकिन इसकी दिशा तय करना आसान नहीं है। इन्‍हीं जातियों का ‘जिन्‍न’ सरकार बनवाने में निर्णायक भूमिका अदा करेगा।

 

मुद्दा के नाम  पर गलथेथरी

चुनाव मैदान में मुद्दा के नाम पर सिर्फ गल‍थे‍‍थरी बच गयी है। आरोप-प्रत्‍यारोप सिर्फ ‘विवाह का गीत’ बन गया है,  जिसका वोटर के मत निर्धारण में कोई भूमिका नहीं बची है। चुनाव में किसी के पक्ष में आंधी या तूफान नहीं दिख रहा है,  लेकिन इतना तय है कि जनता जिसको भी ‘सत्‍ता का जनादेश’ देगी,  पूर्ण बहुमत से देगी। इसमें कोई संशय नहीं है।

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