गृहमंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार गुजरात में 2013 में 68 साम्प्रदायिक दंगे दर्ज किये गये हैं. यह रिपोर्ट गुजरात सरकार के उस दावे की पोल खोलती है जिसमें कहा जाता है कि 2002 के बाद से वहां कोई दंगा नहीं हुआ.

संजीव कुमार

ये रिपोर्ट संसद में भी पेश की गयी. गुजरात में हुए इन दंगों में 10 लोग मारे गये. इसी प्रकार 2012 में गुजरात में 57 दंगे हुए जिनमें 5 लोगों की जानें गयीं.

सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ो के अनुसार वर्ष 2012-13 के दौरान पुरे भारत में सांप्रदायिक दंगो के मामले में गुजरात का चौथा स्थान रहा हैं. जबकि उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर रहा.

गुजरात में बीते वर्ष में कुल 68 सांप्रदायिक झड़पे देखने को मिली जिसमे 10 की मौत के अलावा सात लोगो के हताहत होने की बात भी आई है. अगर हम गुजरात की तुलना बिहार से करे तो सांप्रदायिक दंगो के मामले में बिहार गुजरात से कहीं पीछे है. 2012-2013 में बिहार में कुल 48 सांप्रदायिक दंगे देखने को मिलें है जो गुजरात से 13 कम है.

मुजफ्फरनगर दंगों में हजारों लोग बेघर हुए
मुजफ्फरनगर दंगों में हजारों लोग बेघर हुए

बिहार भी अछूता नहीं

बिहार में हुए इन दंगो में भी जयादातर दंगे राज्य में जद(यु) और बीजेपी के अलायन्स टूटने के बाद हुए हैं. जब हम विभिन्न राज्यों में हिन्दू- मुस्लिम के बिच हुए सांप्रदायिक दंगो की संख्यां की तुलना करते है तो हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिय की उन राज्यों में हिन्दू और मुसलमानों की कुल जनसंख्याँ और उनके बिच का अनुपात क्या है. उत्तर प्रदेश में देश की सबसे बड़ी मुस्लिम और हिन्दू आबादी रहती है वहीँ बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में मुस्लिमो का जनसंख्याँ अनुपात गुजरात से लगभग दुगना है और कुल जनसंख्याँ तो दुगना से भी ज्यादा है.

गुजरात का हाल
अगर हम 2002 के दंगे के अगले वर्ष, यानि 2003 में देखे तो गुजरात में छोटे बड़े कई दंगे देखने को मिले. 19 मार्च 2003 को अहमदाबाद के गोमतीपुर क्षेत्र में स्थानीय बच्चों द्वारा खेले जा रहे क्रिकेट मैच के दौरान बॉल एक राहीर को लगने के कारण दो धार्मिक वर्ग के बिच झडप शुरू हो गई. इस झड़प में ग्यारह जानें गईं और कई दुकानें जला दी गयीं.
एक अप्रैल 2003 को दाहोद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया. दाहोद शहर के थाने में दर्ज ऍफ़ आई आर के अनुसार मुस्लिम समुदाय के एक नव युवक ने एक हिन्दू लड़की के साथ छेड़ छाड़ करने की कोशिश की जिसके बाद दोनों धार्मिक समुदाय में ठन गई. 22 सितम्बर 2003 को जूनागढ़ जिले के कोदिनार कसबे में सांप्रदायिक झड़पे देखने को मिली. स्थानीय कुछ लोगो ने दावा किया की रविवार को स्थानीय बजरंग दल के सदस्य बालूभाई जाधव के दुकान में आग लगाने के पीछे दुसरे धर्म वर्ग के लोग थे और इसी बात पे सोमवार को जाधव के समर्थको ने अल्पसंख्यक वर्ग के 26 दुकानों को जला दिया. इस सम्बन्ध में पुलिस ने रिपोर्ट में जाधव के दुकान में आग लगाने के लिए शोर्ट सर्किट के कारन हुआ था. इसी माह के प्रारंभ में इसी शहर में गणेश महोत्सव के दौरान भी सांप्रदायिक झड़पे देखने को मिली थी.

 

एक नवम्बर 2003 विरंगम शहर में तीन लोगो की मृत्यु हो गई और करीब 40 लोग घायल होने की खबर आई. ये घटना तब सुरु हुई जब पुर कौंसिलर पुरुषोत्तम यादव ने एक स्थानीय क्रिकेट मैच के बाद गोलियां चलने लगे.
अप्रैल 15 2004 को गोमतीपुर में स्थानीय बीजेपी के एम्एलए के द्वारा कराये जा रहे संगीत कार्यक्रम के दौरान हुई पथराव की घटना ने सांप्रदायिक झड़प का रंग ले लिया. इंटेलिजेंस विभाग के अनुसार जब से विहिप ने बीजेपी के लिए प्रचार करने के लिए तैयार होने का फैसला किया है तब से स्थानीय माहौल काफी तनावग्रस्त हो गया है. 26 मई 2004 को ताजिया जलसे के दौरान पनिगते पुलिस स्टेशन के बवामंपुरा क्षेत्र में पथराव ने सांप्रदायिक झड़प का रूप ले लिया. अगले दिन ही एक 23 वर्षीय युवक को 200 की भीड़ ने हत्या कर दी और सांप्रदायिक झड़प का सिलसिला लगातार दूसरा दिन भी जारी रहा.
वड़ोदरा से में वर्ष 2006 के मई माह में सुरु में प्रारंभ हुए सांप्रदायिक झड़पों में माह के अंत तक अहमदाबाद में कुल 30 लोगो के जान-माल के छति की खबर है. सोमवार को 300 वर्ष पुरानी दरगाह के गिराए जाने के बाद से ही वडोदरा शहर का माहौल काफी तनावपूर्ण था. ३ मई 2006 को मोहम्मद अफ़ीक वोहरा को उनके गाड़ी से निकलकर मंगलवार की रात को सरेआम जिन्दा जला दिया गया. मोदीजी पीड़ित को देखने गए और दोषियों को सजा देने का आश्वासन दी.

25 मई 2010 को जब हिन्दू का एक बारात नमाज के समय कालूपुर में मस्जिद के पास से गाते बजाते गुजरा रही थी तब माहौल ने सांप्रदायिक रूप ले लिया. ये घटना है पटवा शेरी क्षेत्र का जहाँ घटना के तीसरे दिन एक हत्या की घटना सामने आई है. बाद में लड़की को छेड़ने का भी अफवाह फैलाई जाने लगी जिससे माहौल काफी ख़राब होता चला गया.

पिछले एक दशक के दौरान गुजरात में इस तरह के अनेक सांप्रदायिक दंगे हुए है लेकिन मोदी समर्थको की परिभाषा के अनुसार शायद इन्हें सम्प्रयिक दंगो की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है क्यूंकि उनके लिए तो 1984, गोधरा, मुजफ्फर नगर या भागलपुर जैसे दंगे ही दंगे होते है और बाकि छिटपुट मामूली घटनाएँ हैं जिनका भारत जैसे विविधताओं वाले खंड खंड में बटे देश में घटना स्वाभाविक है. तभी तो मोदी जी और उनके समर्थक भारत को गैर-विविधता वाली एक एक अखंड राष्ट्र के रूप में देखना चाहते है और उसके लिए हर हद को पर करने को तैयार हैं.
Sanjeev Kumar (Antim)
Subaltern1987@gmail.com
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JNU, New Delhi

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