ऐतिहासिक निर्णय : 1.70 लाख नियुक्ति, मार्केटिंग में RJD-JDU फिसड्डी

बिहार के इतिहास में संभवतः पहली बार 1.70 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की अधिसूचना जारी, पर मार्केटिंग में RJD-JDU फिसड्डी। यह फैसला PM का होता, तो क्या होता?

याद रखिए अच्छा काम करना ही काफी नहीं होता, बल्कि अच्छे काम का भी प्रचार जरूरी होता है। बिहार के इतिहास में संभवतः पहली बार एक लाख 70 हजार 461 शिक्षकों की नियुक्ति की अधिसूचना जारी हो गई है। यह बिहार की नीतीश-तेजस्वी सरकार का ऐतिहासिक फैसला है। तेजस्वी यादव ने पिछले चुनाव में कहा था कि अगर वे मुख्यमंत्री बने, तो 10 लाख नौकरी देंगे। अभी वे मुख्यमंत्री नहीं बने हैं, पर उस दिशा में यह बड़ा कदम है। इतने बड़े निर्णय का जिस स्तर पर सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया में प्रचार होना चाहिए था, वह बिल्कुल नहीं दिख रहा है। ट्विटर पर कोई हैशटैग नहीं चल रहा है। राजद परिवार के लोग तो लिख रहे हैं, शेयर कर रहे हैं, पर परिवार से बाहर आम लोगों को इस निर्णय से जोड़ लेने, आम जन का मुद्दा बना देने वाली कोई बहस, कोई चर्चा नहीं दिख रही।

सोचिए, अगर यही निर्णय यूपी की योगी सरकार या केंद्र की मोदी सरकार ने लिया होता, तो क्या होता? सोशल मीडिया पर आज तूफान होता। प्रधानमंत्री मोदी ने हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, 9 साल में कितनी नौकरी दी? इसी महीने सिर्फ 71 हजार नियुक्ति हुई, लेकिन उसके प्रचार में न सिर्फ दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों को लगा दिया गया, बल्कि सोशल मीडिया में जबरदस्त मार्केटिंग की गई। विदेश से खाली हाथ लौटने पर भी मार्केटिंग हुई। और तो और, पूर्व राज्यपाल ने जिस पुलवामा घटना के लिए सरकारी तंत्र की विफलता को भी एक कारण माना, उसी पुलवामा को 2019 में किस तरह भाजपा ने पेश किया, यह बताने की जरूरत नहीं।

नीतीश-तेजस्वी सरकार के इस फैसले का लोग अपनी तरफ से स्वागत कर रहे हैं, जो तेजस्वी के ट्वीट के लाइक्स की संख्या में दिख रहा है। तेजस्वी यादव के ट्वीट को अब तक 13 हजार लाइक्स मिल चुके हैं। इस बड़े निर्णय से पूरी भाजपा, यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी सवालों के कटघरे में लाया जा सकता था, नीतीश-तेजस्वी की पहल पर पटना में 12 जून को हो रही विपक्षी दलों की बैठक की भूमिका बनाया जा सकता था, 2024 के चुनाव से जोड़ा जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा।

अपने अच्छे कार्य का प्रचार करने में महागठबंधन खास कर राजद-जदयू की विफलता बताता है कि इन दलों ने अब तक इसके लिए उपयुक्त तंत्र और टीम नहीं बनाई है।

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