सांकेतिक फोटो

एक तरफ देश भर में दलित संगठन अपने अधिकारों के लिए उबाल पर हैं वहीं बिहार में दलित दावेदारी आंदोलन ने अपने आंदोलन के पहले चरण में 5 अगस्त को संविधान बचाओ-आरक्षण बचाओ सम्मेलन का आयोजन पटना में करने का फैसला किया है.

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रविवार को विद्यापति भवन, पटना में 11 बजे से शुरू होने वाले इस सम्मेलन की तैयारियां पूरी हो गयी हैं. आंदोलन की तरफ से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि
इस सम्मेलन का आयोजन अनुसूचित जाति-जनजाति संघ बिहार द्वारा किया जा रहा है.
इस संघ के अध्यक्ष नर्मदेश्वर लाल, जो छपरा के प्रमंडलीय आयुक्त हैं. जबकि महासचिव देवेंद्र रजक हैं.
प्रोन्नति में आरक्षण समाप्त करने के खिलाफ देशव्यापी आन्दोलन हुए हैं। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के सामने है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया है कि सरकार संविधान पीठ के अंतिम फैसला के शर्त पर प्रोन्नति में आरक्षण देने की कार्रवाई करें। सुप्रीम कोर्ट का अन्तरिम आदेश हम सबों को अनवरत आन्दोलन, मुहिम और गोलबन्दी की बड़ी परिणति है। इस आदेश के आलोक में भारत सरकार के कार्मिक एवं पेंशन विभाग द्वारा राज्य सरकारों को प्रोन्नति में आरक्षण देने हेतु अनुदेश दिनांक 15.06.2018 भी जारी कर दिया गया है।परंतु सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विलंब करने तथा इस विलंबित अवधि में बचे हुए आरक्षित पदों पर सामान्य वर्ग को प्रोन्नति देने की बिहार सरकार की बुरी नीयत से आरक्षित पदां की खुलेआम लूट की गई। दिनांक 20.7.2018 की रात्रि तक बिहार सरकार द्वारा सामान्य वर्ग की अधिसूचना निर्गत की गई । सुप्रीम कोर्ट में प्ण्।ण् थ्पसम करा दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू कराने में प्ण्।ण्ैण् की गैर-जरूरी कमिटी बनाकर मंतव्य की मांग की गयी। शायद हिन्दुस्तान की यह पहली घटना होगी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के लागू करने में प्ण्।ण्ैण् कमिटी की सलाह की आवश्यकता पड़ी। जब अनुसूचित जाति/जनजाति के हितों के विरूद्ध न्यायालय से फैसला आता है तो उसी आधार पर उसे तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया जाता है, लेकिन जब पक्ष में आता है तो उसे टाल-मटोल कर बिहार सरकार द्वारा डंडीमारी की जाती है।
 
 
 
यह वही बिहार सरकार है जिसके आरक्षण विरोधी काला आदेश 4800, दिनांक 01.04.2016 को हाईकोर्ट के एकलपीठ ने रोक लगायी तो बिहार सरकार ने कोई पत्र निर्गत नहीं किया बल्कि इस आदेश के विरोध में सरकार स्ण्च्ण्।ण् में गयी और इस पर अंतरिम आदेश के तहत रोक लगवायी और जिस दिन रोक लगा उसी दिन सरकार ने पत्र निर्गत कर पुन- 4800, दिनांक 01.04.2016 को लागू कर दी।
 
 
 
अपने संगठन के लगातार मुहिम और दबाव से बाध्य होकर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के 02 महीने बाद दिनांक 20.07.2018 से प्रोन्नति में आरक्षण का पत्र सरकार ने डंडी मारते हुए निर्गत किया अर्थात् प्रोन्नति में परिणामी वरीयता का जिक्र तक नहीं किया गया। इसे भूतलक्षी प्रभाव की जगह निर्गत तिथि से लागू किया गया। बिहार में अब प्रोन्नति सामान्य प्रशासन विभाग के पत्र 11635, दिनांक 21.08.2012 से लागू है तथा इसको प्रभावी नहीं कर बिहार आरक्षण अधिनियम 4(2) के तहत प्रोन्नति देने का आदेश निर्गत किया गया। अर्थात् संविधान का 85वाँ संविधान संशोधन के तहत दिये गये अधिकार से वंचित कर दिया गया। किन्तु-परंतु करते हुए प्रोन्नति में आरक्षण को तोड़-मरोड़ कर आदेश तो निर्गत हुआ परंतु इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। इस पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, जो अत्यंत ही चिंतापूर्ण स्थिति का द्योतक है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी आनन-फानन में इस दो महीने के बीच अधिकतर पदां को सामान्य वर्ग से कुटिलतापूर्वक भर दिया गया। हमें कागज का झुनझुना पकड़ा दिया गया ।
 
 
आरक्षण को समाप्त करने को लेकर तरह-तरह की साजिसें हो रही है। समाज को उकसाकर आरक्षण विरोधी माहौल बनाया जा रहा है। खेतों, स्कूल-कॉलेजों और नौकरियों से बेदखली का खेल बड़े ही आक्रामक तरीके से चल रहा है। बाबा साहब अम्बेडकर से लेकर बाद के दिनों तक मनुवादी पाखंडी व्यवस्था के खिलाफ जो धारावाहिक संघर्ष चले और उसके जो सकारात्मक संस्कृतिक सामाजिक असर सामने आये, उसे समाप्त करने की चौतरफा कोशिश सरकारों के संरक्षण में हो रही है। ब्राह्मणवादी पुनरूथानवादी माहौल निर्मित करने के जरिये समतामूलक वैज्ञानिक समाज के सपने चकनाचूर किये जा रहे है। खुशी की बात है कि इन हमलों के खिलाफ चौतरफा प्रतिरोध तेज हुए हैं। देश में पहली बार जोशीले अंदाज में जयभीम का क्रांतिकारी नारा गूंज रहा है। 02, अप्रैल 2018 का ऐतिहासिक भारतबंद ने दलितों की अभूतपूर्व गोलबंदी और दावेदारी को सामने लाया है। हम सब लोगों को इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लगना चाहिए। अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम में न्यायपालिका के माध्यम से संशोधन और उच्च शिक्षा का तेजी से निजीकरण कर उच्च पदों पर सीधी बहाली एक बड़ा प्रोजेक्ट है, जिस पर सरकार काम कर रही है। बड़े खतरे हैं। सार्थियां ! संघर्ष के जरिये प्राप्त सारे अधिकारों पर शासक समूहों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है।
 
 
 
सरकार पर चौतरफा दबाव बनाना वक्त का तकाजा है। आन्दोलन के सिवा हमारे पास कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि सरकार बात समझने वाली नहीं है। आइये 05 अगस्त को बड़ी एकजुटता से सम्मेलन से न्याय की आवाज बुलंद करें।
दलित दावेदारी आंदोलन की मुख्य मांगें-
 
1. प्रोन्नति में आरक्षण के निर्गत संकल्प भूतलक्षी प्रभाव दिनांक 01.04.2016 से अविलंब धरातल पर लागू करो।
2. उच्चतम न्यायालय के निर्णय दिनांक 05.06.2018 के बाद सामान्य वर्ग से भरे पदोन्नति के पदों को निरस्त करो ।
3. अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम को कमजोर करने के विरूद्ध 02 अप्रैल को भारत बंद के दौरान किये गये मुकदमों को बिना शर्त वापस लो।
4. निजी क्षेत्रों में आरक्षण लागू करने हेतु बिहार विधान सभा से प्रस्ताव पारित कर प्रस्ताव भारत सरकार को भेजो।
5. उच्च न्यायपालिका में आरक्षण लागू करो।
6. आवास भूमि हेतु अनुसूचित जाति/जनजाति को 05 डिसिमल जमीन उपलब्ध कराओ।
7. अनुसूचित जाति/जनजाति छात्रों के कल्याण छात्रवृति बहाल करो।
8. बंदोपाध्याय कमिटी की सिफारिशों को लागू करो तथा अनुसूचित जाति/जनजाति को
9. आबादी के अनुरूप सभी क्षेत्रों में हिस्सेदारी सुनिश्चित करो।
10. अमीरदास आयोग की सिफारिशों को प्रकाशित करो।ं
11. प्रोन्नति/नियुक्ति के बैकलॉग पदों को भरने हेतु विशेष भर्ती अभियान चालू करो।
 

By Editor