हिंदुत्व परेशान : लखनऊ में सुबह-सुबह दौड़ीं हजारों लड़कियां

शास्त्र, परंपरा और हिंदुत्व कोई भी लड़कियों को दौड़ने की इजाजत नहीं देता, लेकिन हजारों लड़कियां सुबह-सुबह दौड़ीं। नौकरी के लिए नहीं जनाब..।

कुमार अनिल

हिंदुत्व की राजनीति कहती है कि लड़की को अकेले घर से नहीं निकलना चाहिए। किताबें कहती हैं कि लड़की-औरत घर संभाले। लड़कियों की आजादी और राजनीति में उनकी दावेदारी की कोई इजाजत नहीं देता। लेकिन आज लखऩऊ की हजारों लड़कियों ने राजनीति में नया अध्याय लिख दिया। अभी सड़कों की लाइट बुझी भी नहीं थी कि लखनऊ मैराथन में हिस्सा लेने के लिए लड़कियों का आना शुरू हो गया। रजिस्ट्रेशन सबह छह बजे से पहले ही शुरू हो गया। लगातार #लड़की_हूँ_लड़_सकती_हूँ थीम सॉन्ग बजता रहा। फिर लड़कियों का पांच किमी लंबा मैराथन शुरू हुआ। विजयी लड़की को स्कूटी दी गई। इसके अलावा 100 से अधिक लड़कियों को स्मार्ट फोन दिए गए।

पिछले हफ्ते इसी तरह का मैराथन झांसी में हुआ था। वहां भी दसियों हजार लड़कियों ने हिस्सा लिया था।

भारत की राजनीति में ऐसा पहली बार हो रहा है। जहां हर दल रैली करने में व्यस्त है, वहीं कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के नेतृत्व में नई पहल की है। लड़कियों का उत्साह देखने लायक है। निश्चित रूप से लड़कियों की राजनीति में यह दावेदारी हिदुंत्व की राजनीति के लिए नई चुनौती बन रही है। इन लड़कियों में हर जाति और धर्म की लड़कियां शामिल हैं। जहां सपा राजनीतिक मुद्दों के अलावा जातीय गठजोड़ पर जोर दे रही है, वहीं कांग्रेस राजनीतिक मुद्दों के साथ लड़कियों को संगठित करने पर जोर दे रही है।

एक बात तो तय है कि किसी राजनीतिक पार्टी ने चुनाव तैयारी में लड़कियों की ताकत को इस तरह सामने लाने का प्रयास नहीं किया। सुबह-सुबह इतनी लड़कियों का पहुंचना बताता है कि कांग्रेस ने ग्रांउड पर काम किया है। नेटवर्क तैयार किया है। वह सीट कितना जीतेगी, यह तो नहीं कहा जा सकता , लेकिन एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि लड़कियों की यह ताकत हिंदुत्व की राजनीति को कमजोर कर रही है। पहली बार वोट डालने वाली लड़कियां इससे पहले भाजपा को ही वोट देती रही हैं।

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