ट्रम्प मामले में भाजपा में दरार, मोदी ने कहा उपद्रवी, पार्टी ने किया बचाव

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जिसे उपद्रवी बता रहे हैं, भजपा के दिग्गज उनके पक्ष में खड़े हो गए हैं।

कुमार अनिल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने जिस तरह उपद्रव मचाया, उसे लेकर कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं है। सारी दुनिया में उसकी निंदा हो रही है। एकमात्र भाजपा ही है, जो पूरी तरह कन्फ्यूज्ड हो गई है। पार्टी के बड़े नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ट्रंप को उपद्रवी बता रहे हैं, वहीं भाजपा की युवा शाखा के प्रमुख तेजस्वी सूर्या सहित कई बड़े नेता ट्रंप के पक्ष में खड़े हो गए हैं।

सुशील कुमार मोदी ने कल ट्रंप की तुलना बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से करते हुए ट्वीट किया कि ‘’उनका वश चलता तो ईवीएम से लालू का जिन्न न निकलने पर लाठी में तेल पिलानेवाले  अपने समर्थकों को उकसाकर ट्रंप के समान विधानमंडल भवन पर उत्पात मचा सकते थे।“ सभी अखबारों ने उनके बयान को विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पर हमले के बतौर हू-ब-हू छापा, लेकिन इस बात की अनदेखी कर दी कि मोदी ट्रंप को उपद्रवी बता रहे हैं।

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उधर भाजपा के युवा नेता और सांसद तेजस्वी सूर्या ट्रंप के पक्ष में खड़े हैं। कल ही उन्होंने ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को बंद करने की निंदा करते हुए बयान दिया। भाजपा के सोशल मीडिया हेड अमित मालवीय भी समर्थन में कूद पड़े। मालवीय ने ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को बंद करने पर इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया (BJP voices speak up for Donald Trump)। ट्रंप के पक्ष में बोलनेवाले सभी नेताओं ने ट्रंप के उकसावे वाले बयान और उनके समर्थकों द्वारा कैपिटल पर हमले और तोड़फोड़ पर चुप्पी साध ली है। उधर ट्विटर ने एक बयान में स्पष्ट किया कि ट्रंप के अकाउंट को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है, क्योंकि ट्रंप अपने बयानों से अमेरिका में फिर हिंसा फैला सकते हैं।

भले ही सुशील कुमार मोदी और भाजपा के दूसरे नेता अगल-अलग सुर में बात करे रहे हैं, पर दुनियाभर के लोकतंत्र समर्थकों में कोई कन्फ्यूजन नहीं है। सभी ट्रंप और उनकी दक्षिणपंथी राजनीति को खतरनाक बता रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट में राणा अयूब ने भारतीय परिस्थितियों से तुलना करते हुए उन बुद्धिजीवियों को भी घेरा है, जो अमेरिका में भीड़ की हिंसा का विरोध कर रहे हैं, पर देश में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़नेवालों पर तथाकथित राष्ट्रभक्तों के हमले पर चुप रह जाते हैं। दर्जनों युवा आज भी जेलों में बंद हैं। किसानों को खालिस्तानी कहा गया। मध्यप्रदेश के एक गांव में मस्जिद पर हमला हुआ।

समुदाय या जाति विशेष के खिलाफ झूठ और घृणा फैलाने, धर्म के नाम पर समाज को बांटने, सत्ता की आलोचना को देश की आलोचना के रूप में पेश करने का अभियान भारत में भी तेज है। प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने भी लगातार ट्वीट करके आगाह किया है।

By Editor