कर्नाटक के बाद : रवीश निराश क्यों, टेलिग्राफ उम्मीदों से भरा क्यों

कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद रवीश कुमार ने निराशा जताते हुए कहा कि कुछ नहीं बदलेगा। द टेलिग्राफ ने पहले पन्ने पर छापा We the hopefull (हम आशावादी हैं)।

कुमार अनिल

रवीश कुमार वह पत्रकार हैं, जिन्होंने आज की सर्वसत्तावादी सत्ता से तब सवाल पूछना शुरू किया था, जब बहुत कम लोग ऐसा करने की हिम्मत रखते थे या वे भ्रम के शिकार थे। उन्होंने भारतीय पत्रकारिता को जो दिया, वह बहुत कम लोगों ने दिया। उनके देने का सिलसिला आज भी जारी है, लेकिन आज उन्होंने एक ट्वीट किया, जिससे सहमत नहीं हुआ जा सकता।

रवीश कुमार ने कर्नाटक के चुनाव परिणाम के बाद लिखा-कर्नाटका के नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर ज़ीरो असर होगा। पूछिए कैसे? इसके बाद भी प्रधानमंत्री 1. नौ साल में पहली बार प्रेस कांफ्रेंस नहीं करेंगे 2. अदाणी मामले में सवालों के जवाब नहीं देंगे 3.अदाणी मामले में जेपीसी की माँग पर हाँ नहीं करेंगे 4. कृषि क़ानूनों को रद्द करते समय के वादों को पूरा नहीं करेंगे। 5. बेरोज़गारी, महंगाई पर बात नहीं करेंगे। 6. जनता 90-95 रुपया लीटर पेट्रोल ख़रीदती रहेगी। 7. एंटी मुस्लिम मुद्दा जारी रहेगा। 8. गोदी मीडिया भांड बना रहेगा।

कांग्रेस प्रवक्ता गुरदीप सिंह सप्पल भी पत्रकार रह चुके हैं। उन्होंने रवीश कुमार से सम्मानपूर्वक असहमति जताते हुए लिखा-लोकतंत्र है रवीश भाई, इसमें राजनीति सत्ता के रहम-औ-करम पर नहीं होगी। वो सितम करें, ये उनका करम! लेकिन कर्नाटक की जीत आगे का रास्ता खोलती है, जिस पर आगे बढ़ सकते हैं। बढ़े तो देखना, असर जीरो नहीं रहेगा, ये जीरो दहाई-सैकड़ा बन सकता है।

कोलकाता से प्रकाशित द टेलिग्राफ ने पहले पन्ने पर बड़ा सा बॉक्स छापा है, जिसका शीर्षक है We the hopefull ( हम हैं आशावादी)। यह खबर नहीं है, बल्कि अखबार ने अपना विचार रखा है। इसकी हर पंक्ति दमदार है। पहले पैराग्राफ में लिखा है कि एक प्रदेश के चुनाव परिणाम से 2024 के सवाल हल नहीं हो जाते। इसके बावजूद कर्नाटक चुनाव परिणाम मील के पत्थर की तरह है, क्योंकि लोग खुद आगे आए और वह भी बहुत लोकतांत्रिक तरीके से। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आज जब लोकतंत्र के सभी स्तंभों पर एक तरह से कब्जा कर लिया गया है। एक आदमी मोहब्बत की दुकान खोलने के लिए जब पूरा देश पैदल चलता है और दूसरी तरफ रथ पर सवार सड़कों पर फूल बिछा कर नफरत का बाजर बढ़ा रहा हो, तब इस परिणाम का महत्व बड़ जाता है।

एक छोटी लड़ाई जीती गई है, पर कर्नाटक ने जो उम्मीद जगाई है, उसे संभाल कर रखना होगा…।

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