मुजफ्फरपुर बालिका गृह में 42 बेघर बच्चियों के साथ हुए रेप मामले पर सीबीआई ने केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. ठीक एक साल पहले राज्य सरकार ने सृजन घोटाले की जांच भी सीबीआई को सौंपी थीं. यह मामला ठंडे बस्ते में है. तो  बालिक गृह रेप मामले का क्या हस्र होगा.

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम 

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को कभी सरकारी तोता कहा था. तमाम विपक्षी पार्टियां भी सीबीआई को इसी नाम से पुकारती हैं. राजद तो सीबीआई और ईडी को भाजपा का गठबंधन सहयोगी करार देता है. केंद्र की भाजपा सरकार बिहार में भी सत्ता भागीदार है. नीतीश कुमार इसके सारथी हैं. बालिका गृह रेप मामले में जिस तरह की खबरें आ रही हैं उससे साफ है कि इस महापाप में जहां प्रत्यक्ष रूप से जदयू से जुड़े और सुशील मोदी के करीबी के रूप में चर्चित ब्रजेश ठाकुर किंगपिन के रूप में उभरे हैं वहीं सत्ता के रसूखदार अफसरों से ले कर अन्य नेताओं की मिलिभगत इस मामले में होने की बात सामने आ रही है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सीबीआई सत्ताधारियों के तोता की भूमिका निभायेगी? या फिर ईमानदारी से जांच करके मामले की परतों को उधेड़ देगी.

यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सरकार की मशीनरी, उसकी पुलिस, उसकी जांच एजेंसियों पर विपक्ष के लोग शक कर रहे थे कि जांच में ईमानदार नहीं बरती जायेगी. पहले राज्य सरकार ने डीजीपी  से प्रेस कांफ्रेंस करवाया और यह घोषणा करवाई कि इस मामले की जांच बिहार पुलिस खुद करेगी. लेकन तीन दिनों के अंदर मामले को अचानक सीबीआई को सौंपने का फैसला नीतीश सरकार ने कर दिया. कुछ ऐसे ही हालात सृजन घोटाले में बने थे. उस घोटाले में भी जदयू के जिलाध्यक्ष और भाजपा के किसान सेल के अध्यक्ष का सीधा नाम इस घोटाले में आया था. काफी आलोचना के बाद राज्य सरकार ने इसे सीबीआई को सौंप दिया. ठीक एक साल हो चुका है. लगभग 1500 करोड़ के इस घोटाले को लोग अब भूलते जा रहे हैं. जबकि मीडिया ने इतने साक्ष्य उजागर कर दिये थे कि अगर उसी पर सीबीआई केंद्रित रहती तो इस मामले को अंजाम तक पहुंचा चुकी होती.

विपक्ष की रणनीति पर सवाल 

बालिका गृह बलात्कार मामले में भले ही विपक्ष ने सीबीआई जांच कराने की मांग के लिए दबाव बनाया. उसमें वह कामयाब भी रहा है लेकिन अभी यह तय नहीं हुआ है कि यह जांच हाईकोर्ट के जज की मानिटरिंग में होगी या नहीं. इस मामले में जो मजबूत साक्ष्य मिले हैं, उसमें सबसे पहली बात तो यह है कि 42 में से 34 बच्चियों के साथ नियमित रूप से रेप की पुष्टि हो चुकी है. इस गृह का संचालन ब्रजेश ठाकुर के हाथों में था. ब्रेजेश गिरफ्तार हैं. बच्चियों ने यह भी खुल कर आरोप लगाया है कि समाज कल्याण विभाग की मंत्री मंजू वर्मा के पति भी इस जघन्य मामले में शामिल थे. राज्य सरकार इस मामले में बिल्कुल चुप है. उसे इस मामले में अपने मंत्री से इस्तीफा लेने या उन्हें बर्खास्त करना चाहिए था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इसकी वजह यह हो सकती है कि इस्तीफा मांगना या पद से हटाने का मतलब होता कि सरकार खुद दबाव में आ जाती. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि सुशासन की राग अलापने वाले नीतीश कुमार की विश्वसनीयता और साख दोनों पर सवालिया निशान लग गया है. क्राइम, क्रप्शन और कम्युनलिज्म के खिलाफ समझौता नहीं करने का नगाड़ा पीटने वाली सरकार जब खुद जघन्य अपराध के आरोप में घिर गयी है.

अगर राज्य सरकार को अपनी साख, अपनी छवि बचानी है तो यह तब ही संभव होगा जब इस मामले का हस्र सृजन घोटाले की तरह फाइलों में नहीं दबेगा. चुनाव नजदीक आ रहे हैं. दोनों मामलों में सत्ताधारी दलों के रसूखदारों पर आरोप है, ऐसे में केंद्र सरकार के तोता से बहुत उम्मीद बिहार की जनता को नहीं है.

 

By Editor