पटना में सम्पादकों के साथ खास मुलाकात के लिए राम विलास पासवान मंगलवार को रू ब रू थे. वह मोदी सरकार की चार सालों की उपलब्धियों की चर्चा करने आये थे.  अनौपचारिक बात चीत काफी गर्मागर्म होती चली गयी. पत्रकारों ने उनसे तीखे सवाल किये और बस पासवान झुल्ला गये.

 

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]

वह बता रहे थे कि कांग्रेस के जमाने में दंगे हुए उस पर कोई चर्चा नहीं करता. पर मोदी सरकार के खिलाफ जो परसेप्शन बना है उसी आधार पर लोग केंद्र सरकार को घेरते हैं. वह अपने जाने पहचाने अंदाज- ‘जे है से के’ और ‘क्या कहते हैं कि’… जैसे  तकिया कलाम के साथ बोले जा रहे थे. एनडी टीवी के मनीष ने उनकी दुखती रगों पर हाथ रखा और पूछा कि हाल ही में बिहार में दंगे हुए. लोग तलवार निकल कर सड़कों पर आ गये. उन्हे लीड करने वाले भाजपा के एमएलए और एमपी थे. इस पर पासवान असहज हो गये. फिर बात दलितों और मुसलमानों तक पहुंच गयी.  कौमी तंजीम के पत्रकार इमरान सगीर ने पूछा कि मुसलमानों के खिलाफ जुल्म पर मोदी कुछ नहीं कहते. पासवान ने पलट कर जवाब दिया कि दलितों पर भी तो कुछ नहीं बोलते. बात आगे बढ़ती चली गयी और पासवान मोदी सरकार की उपल्धियों के बजाये अपनी उपलब्धियों का इतिहास बताने लगे. उन्होंने कहा कि गैरभाजपा दल मुसलमानों को बंधुआ समझते है और सिर्फ वोट लेते हैं. मैंने तो 2005 में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की बात की तो लालू चुप हो गये. पासवान मुसलमानों की बात पर अक्सर यही दोहराते हैं सो फिर दोहरा गये. साथ ही जोड़ा कि जब मैं केंद्र में मंत्री था तो बौद्धों को एससी का दर्जा दिया. उस समय मैंने फैसला किया कि दलित मुसलमानों को भी एससी का दर्जा मिलना चाहिए. लेकिन खुद मुसलिम लीडर ही इसके विरोध में उतर आये.

 

क्यों भड़के पासवान

पासवान ने जैसे ही यह बात की तो मैं पूछ बैठा कि किसी एक मुस्लिम लीडर का नाम बतायें जिसने दलित मुस्लिम को एससी का दर्जा देने का विरोध किया हो. मेरे इस सवाल पर पासवान इतने भड़के की आपे से बाहर हो गये. उन्होंने जवाब देने के बजाे मुझ से कहा कि आप को क्यों बतायें कि किसने विरोध किया. इस पर कौमी तंजीम के सम्पादक अशरफ फरीद ने कहा कि आप ठीक कह रहे हैं. पासवान ने कहा कि कौन ठीक कह रहा है.. मैं या वह पत्रकार( इर्शादुल हक). अशऱफ ने जवाब दिया कि आप( पासवान). इतना सुनते ही मैंने अशरफ फरीद से पूछा कि मंत्री जी के हां में हां मिलाने के बजाये आप उस मुस्लिम लीडर या एमपी का नाम बतायें जिसने कभी विरोध किया हो. इतना ही नहीं मैं ने अशऱफ फरीद से साफ पूछा कि आप नाम बतायें, तथ्यों से भागें नहीं. साथ ही यह भी बतायें कि आप और आपका अखबार कौमी तंजीम दलित मुसलमानों के आरक्षण के पक्ष में है या विरोध में. मेरे इस सवाल पर अशरफ फरीद का चेहरा तमतमा गया. वह चुप हो गये. बड़े नेताओं को खुश करने का चलन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आप तथ्यों को भी तोड़ मरोड़ दें.

दलितो मुसलमान, जो हर लिहाज से ( धोबी, भंगी, हलालखोर आदि अगर हिंदू हैं तो उन्हें आरक्षण मिलता है. पर मुस्लिम धोबी हलाल खोर को नहीं मिलता) हिंदू दलितों की तरह हैं. उन्हें आरक्षण से वंचित कर दिया गया. इसके लिए 1950 में अध्यादेश ला कर मुसलिम दलितो को आरक्षण से वंचित किया गया.

दलित मुस्लिम आंदोलन बिहार में 1993-94 से चल रहा है. तमाम मुस्लिम संगठन, इसकी हिमायत में हैं. पिछले 25 वर्षों में यह समर्थन बढ़ता ही गया. किसी मुस्लिम नेता द्वारा इसका विरोध किये जाने का कोई रिकार्ड हो तो पासवान को बताना चाहिए. या कौमी तंजीम के सम्पादक को इस पर अपना पक्ष रखना चाहिए.

दुनिया जानती है कि पासवान की राजनीति मौकापरस्ती की किसी हद को नहीं मानती. वह परिवारवाद की राजनीति की बेहतरीन मिसाल हैं. एक भाई पार्टी का अध्यक्ष है तो दूसरा प्रदेश अध्यक्ष. बेटा संसदीय दल का नेता. और जब पासवान 2005 में मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनाने की बात की तो इसके पीछे की राजनीतिक पैंतरे को समझने वाले खूब समझते थे. दर असल वह लालू को दबाव देना चाहते थे कि मुख्यमंत्री उन्हें बनाया जाये. आखिर जिस व्यक्ति के परिवार की गिरफ्त में पार्टी के तमाम पद हों वह किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनाने की ईमानदार पहल कैसे कर सकता है, यह दुनिया खूब समझती है.

ये सवाल भी आपके लिए पासवान साहब

पासवान की राजनीति की धारा क्या है. केंद्र में पिछले पंद्रह-बीस वर्षों से जिस किसी की भी सरकार हो, पासवान उसमें मंत्री बन जाते हैं. वाजेपेयी सरकार में मंत्री रहे तो कहा था कि अब साम्प्रदायिकता कोई इश्यु नहीं. वाजपेयी को छोड़ा तो साम्प्रदायिकता को इश्यु बना कर मनमोहन सिंह सरकार के साथ हो लिए. दस साल सरकार चली तो फिर एनडीए में वापस चले गये और फिर मंत्री बन बैठे. तभी तो लालू उन्हें मौसम वैत्रानिक का नाम दे चुके हैं. पासवान जी से पूछा जाना चाहिए कि उनकी राजनीति क्या है बॉस?

 

By Editor