नीतीश की बौखलाहट की वजह ये खाली कुर्सियां तो नहीं?

नीतीश की बौखलाहट की वजह ये खाली कुर्सियां तो नहीं?

नीतीश की बौखलाहट की वजह ये खाली कुर्सियां तो नहीं?

Bihar Election 2020 की रैलियों में नीतीश ने अब तक कोई 2 दर्जन रैलियां की हैं. इनमें कम से कम पांच रैलियों में नीतीश कुमार अपना आपा खो बैठे और भीड़ को बुरा-भला कहने लगे.

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अनेक रैलियों में तो भीड़ से आवाज आने लगी कि ‘नीतीश कुमार चोर है’. अने रैलियों में नीतीश कुमार ने जब अपने प्रत्याशी को जिताने की अपील की तो भीड़ के एक हिस्से से जवाबा आयी कि जदयू को वोट नहीं देंगे. भीड़ की ऐसी प्रतिक्रिया के लिए शायद ही नीतीश कुमार तैयार रहे हों. पर उन्हें ऐसी प्रतिक्रिया का अनेक रैलियों में सामना करना पड़ा है. इतना ही नहीं उनकी रैलियों में भीड़ का ना जुटना भी उनकी झुल्लाहट का सबब बन जाता है.

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मुजफ्फ्रपुर के सकरा में जब नीतीश कुमार रैली में भाषण दे रहे थे तो वहां आधी से ज्यादा कुर्सियां खाली नजर आ रही थीं. इससे पहले नीतीश कुमार अनेक सभाओं में भीड़ के एक हिस्से से मंच से उलझ गये. एक सभा में तो उन्होंने अपना आपा तक खो दिया और भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि.. क्या पहले स्कूल था. कहीं पढ़ाई थी. अपने बाप से पूछो. अपनी माता से पूछो…

इसी तरह एक अन्य रैली में नीतीश ने भषण की समाप्ति के बाद श्रोताओं से पूछा कि क्या में अपने प्रत्याशी वीरेंद्र जी को जीत की माला पहना दूं? क्या आप इन्हें जितायेंगे ना? जवाब में भीड़ के एक तरफ से आवाज आती है कि वोट देंगे. जबकि दूसरी ओर से लोग साफ कहते हैं कि जदयू को वोट नहीं देंगे. इतना सुनते ही नीतीश फिर आपे से बाहर हो जाते हैं और कहते हैं कि तुम कितने हो… 15-20 ही तो हो. जिसके लिए यह कर रहे हो, सब पता है.

एक तरफ भौतिक रूप से होने वाली रैलियों में नीतीश को सुनने वालों की संख्या काफी कम दिख रही है तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार के सोशल मीडिया पेजेज से लाइव हो रहे प्रसारण में जहां ट्विटर पर 150 से 185 लोग औसतन लाइव देखते हैं वहीं फेसबुक पर बमुश्किल एक हजार रियलटाइम दर्शक मिल पा रहे हैं.

तेजस्वी की रैलियों में उमड़ रहा जनसैलाब

वहीं तेजस्वी की रैलियों में जनसैलाब उमड़ रहा है और भीड़ से तेजस्वी यादव जिंदा बाद के नारों के साथ तालियों की गगनचुम्बी आवाजें आ रही हैं.

तेजस्वी के मंच पर पहुंचते ही भीड़ उत्साह से सराबोर हो जा रही है. जबकि नीतीश की रैलियों में एक निरसता है. नीतीश जितने समय तक भाषणों में अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं करीब उतनी ही देर तक लालू-राबड़ी राज की कमियां गिनाने में लगा रहे हैं. शायद भीड़ नीतीश कुमार के पंद्रह साल के राज की तुलना खुद नीतीश से करना चाह रहे हैं जबकि नीतीश उन्हें तीस साल पीछे ले जा रहे हैं जो लोगों को पसंद नहीं आ रहा है.

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