वरिष्ठ पत्रकार देशपाल सिंह पंवार यूपी के मंत्री आजम खान की भैंस चोरी की घटना के बहाने पुलिस की अक्ल और भैंस की किस्मत पर अपनी बेबाक राय पेश कर रहे हैं.
बलात्कारी बरसों पकड़े नहीं जाएंगे। हत्यारे बरसों हाथ नहीं आएंगे। भ्रष्टाचारी को समय पर अंदर कर नहीं पाएंगे। दंगाई खुलेआम घूमते रहेंगे।
लाखों केस पुलिस तहकीकात को तरसते रहेंगे, न्याय की रेस में आगे नहीं बढ़ पाएंगे। कभी किसी बात का रोना तो कभी कोई बहाना या दलील। बहाना फोर्स की कमी का भी हो सकता है। सबूत ना मिलने का भी हो सकता है। दलील समाज के हर तबके को एक नजर से देखने की भी हो सकती है। जहां मसला आम से जुड़ा हो, खाकी के पास 60 मिनट नहीं।
पैसा लो-पावर तलाशो-सिफारिश कराओ तो ढंग से बात होगी। वरना करते रहो तसल्ली के दो बोल का इंतजार। बात खास की हो तो फिर मिल्खा सिंह जैसी खाकी की तेजी। मसला मंत्री जी का हो तो कहने ही क्या? मंत्री भी कोई कदावर हो तो सारी हदें और नियम पार। कुत्ता भी पकड़ना हो तो पुलिस लाइन तक की फोर्स यूं तलाशी अभियान में जुटेगी जैसे दाऊद इब्राहिम मारने आया हो या कुबेर का ऐसा खजाना खो गया हो जो नही मिला तो जलजला आ जाएगा।
बड़े मंत्री की महान भैंसें
अब किस्सा सबसे बड़े मंत्री जी की भैंसों का ही ले लीजिए। चोरों ने गुस्ताखी कर दी। सात भैंस रात में पार कर दी। भैंस 10-20 हजार की होतीं, सब्र हो जाता लेकिन 4-5 लाख की तो रही होंगी। रोजाना 100-150 लीटर दूध का नुकसान अलग से। पुलिस को सूचना मिली, फिर क्या था,सिपाही से लेकर एसपी तक खोजी कुत्तों को लेकर जुट गए।
महिला एसपी के हाथ में कमान थी। पहली बार कैसे-कैसे गांव की डगर नाप डाली। क्राइम ब्रांच, मजिस्ट्रेट और सारा सरकारी अमला जुट गया। शनिवार को किसी ने भैंस तलाशने के अलावा कोई काम नहीं किया। इलाके के सारे खेत-खलिहान, बूचड़खाने, घर-घेर तलाश डाले। सारी भैंसें गिन डाली। सब डरे थे पता नहीं पुलिस वाले किस भैंस को मंत्री जी की बता दें। भैंस भी जाएगी और जान भी। लोकतंत्र के रजवाड़ों की राजधानी से सारे हाकिम पल-पल की जानकारी जंग की तरह ले रहे थे। ये चोरी किसी त्रासदी से कम नहीं थी। आखिर हनक को चुनौती थी। किसकी मजाल हो गई भला-पता तो चले। पुलिस ने ठान लिया। वो तो सुईं खोज लेती है ये तो भैंस थी। खोज ही निकाली।
48 घंटे नहीं होने दिए। हां भैंस खेत में नहीं मिली-मकान में सलामत थीं। मर्जी से नहीं गई थी। कौन ले गया था पुलिस को पता नहीं। हां विरोधियों का काम बताया जा रहा है। अब सबको राजनीति भुला दी जाएगी। भैंस चुराने निकले थे। वीवीआईपी भैंस मिलने से चैन की सांस पुलिस ने भी ली और क्षेत्र के हर भैंसधारी ने भी।
सब सोच रहे हैं,अब वो पशु ना पाला जाए जो मंत्री जी के यहां है। क्या पता कब मुसीबत खड़ी कर जाए? खैर फिलहाल मंत्री जी की भैंस पशुजात में शिरोमणि हो गई हैं?
उन्हें ही नहीं इंसानों को भी अब तो उनसे जलन हो रही है। काश हम गरीब ना होते-मंत्री जी की भैंस ही होते। अब पता चला कि अक्ल नहीं भैंस बड़ी है। चलो इतना ज्ञान तो हुआ। बुढ़ापे में ही सही।
सोशल मीडिया में भी छाई भैंस
खुदा का शुक्र है कि भैंस तो मिल गई पर सोशल मीडिया के भाइयों को देख लीजिए क्या-क्या लिख दे रहे हैं:
0 मंत्री जी की भैंसें मेरठ में नरेंद्र मोदी की रैली में शामिल होने के बाद वापस घर आती देखी गई हैं।
0 भैंसें लोक सभा टिकट हासिल करने के लिए आम आदमी पार्टी में शामिल होने के लिए भाग गई थीं।
0आखिर मंत्री जी भैसों को लौटाने पर इनाम क्यों नहीं घोषित करते? 50 लीटर दूध या फिर कुछ और…।