अयोध्या मामले पर फैसला सुनाने वाली पीठ का नेतृत्व करने वाले पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति मनोनीत किया है.
राष्ट्रपति द्वारा ऐसा पहली बार किया गया है. केंद्र सरकार ने सोमवार की शाम इस संबंध में अधिसूचना जारी की. गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (तीन) के साथ पठित खंड (एक) के उपखंड (क) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए राष्ट्रपति, एक मनोनीत सदस्य की सेवानिवृत्ति के कारण हुई रिक्ति को भरने के लिए रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य मनाीनीत करते हैं.”
रंजन गोगोई को राज्य सभा का सदस्य बनाये जाने की खबर के तुरत बाद सोशल मीडिया पर अनेक तरह की प्रतिक्रिया आने लगी.
इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए सीपीआई माले के महासचिव दिपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का यह नया गठजोड़ है.
CPIM नेता सीता राम येचुरी ने याद दिलाया कि खुद रंजन गोगोई ने जज रहते हुए रिटायरेमेंट के बाद की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है.
अब तक न्यायपालिका के कुछ ही सदस्यों को विधायिका में जगह मिली है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस में शामिल हुए थे और संसद सदस्य भी बने थे. बाद में पूर्व मुख्य न्यायाधीश सदशिवम को नरेंद्र मोदी सरकार ने केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था.
करीब 13 महीने तक चीफ जस्टिस रहे जस्टिस गोगोई पिछले वर्ष नवंबर में रिटायर हुए हैं.
न्यायमूर्ति गोगोई देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश रहे. उन्होंने देश के प्रधान न्यायाधीश का पद तीन अक्टूबर 2018 से 17 नंवबर 2019 तक संभाला. 18 नवंबर, 1954 को असम में जन्मे रंजन गोगोई ने डिब्रूगढ़ के डॉन बोस्को स्कूल और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढ़ाई की. उनके पिता केशव चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री थे. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने 1978 में वकालत के लिए पंजीकरण कराया था.
28 फरवरी, 2001 को रंजन गोगोई को गुवाहाटी हाईकोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. न्यायमूर्ति गोगोई 23 अप्रैल, 2012 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने थे और बाद में मुख्य न्यायाधीश भी बने.