जीतन राम मांझी एक चूके हुए नेता हैं. आकाश की बुलंदी से पाताल में आ गिरे नेता. लेकिन वह इफ्तार की सियासत का केंद्र बन गये हैं, आखिर क्यों?
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट कॉम
रमजान के आखिरी जुमा को आयोजित लालू प्रसाद की दावत ए इफ्तार में मीडिया जीतन राम मांझी को मटा की तरह घेरे रहा. इसकी एक वजह यह भी थी कि लालू प्रसाद ने मांझी और सीएम नीतीश के बैठने का इंतजाम ऐसा किया कि दोनों एक दूसरे के अगल-बगल थे. इतना ही नहीं दोनों आपस में गुफ्तगू भी करते रहे. वो भी चेहरों पर मुस्कान के साथ. इसी दरम्यान मांझी ने मीडिया से कहा- कि आज वह जो हैं नीतीश कुमार की बदौलत हैं. साथ ही उन्होंने एक अनुभवी नेता की तरह यह भी जोड़ा कि ऐसे सामाजिक अनुष्ठानों में हर तरह के लोग आते हैं इसलिए इसे किसी और चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.
याद रखने की बात है कि इससे पहले जीतन मांझी ने भी दावत ए इफ्तार का आयोजन किया था. इस इफ्तार में लालू प्रसाद यादव उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ अप्रत्याशित रूप से पहुंच गये. तभी से इसकी अनेक तरह से व्याख्या की जाने लगी.
लालू-मांझी की निकटता के मायने
पर सवाल यह है कि लालू-मांझी की निकटता के क्या मायने हैं. खास कर तब जब मांझी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अनेक जख्म दे चुके हैं. मांझी को नीतीश ने मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन बाद में हालात इतने तीखे हो गये कि मांझी और नीतीश के बीच ऐसी सियासी जंग चली जिसकी मिसाल बिहार की राजनीति में शायद ही कभी देखने को मिली हो. लेकिन जब 2015 का चुनाव हुआ तो उस समय भी मांझी लालू की दोस्ती नहीं हो सकी और मांझी ने नीतीश को मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंचने देने की उतनी कोशिशें की, जितनी वह कर सकते थे. बताया जाता है कि मांझी, लालू के करीब 2015 के चुनाव के पहले ही आ जाते लेकिन, नीतीश ने ऐसा होने नहीं दिया. लेकिन अब जब न तो लालू को और न ही नीतीश को मांझी की जरूरत है, तो फिर लालू-मांझी की बढ़ती नजदीकी क्यों? वह भी तब जब मांझी विधान सभा में एक सदस्य वाली पार्टी के नेता की हैसियत से बचे हैं.
विश्लेषक मान रहे हैं कि दर असल, लालू, मांझी की बदौलत नीतीश को साधने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने शराबबंदी की राजनीति के नाम पर उत्तर प्रदेश, झारखंड होते हुए दिल्ली तक का भ्रमण करके अपनी राष्ट्रीय छवि गढ़ने में लगे हैं. इसमें लालू को उन्होंने एक दम से दूर कर रखा है. नीतीश की इस रणनीति से स्वाभाविक तौर पर लालू खुद दरकिनार महसूस कर रहे हैं. हालांकि लालू ने अपने बयान में पहले ही कह दिया था कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बने तो यह अच्छी बात होगा.
नीतीश को साध कर भाजपा पर निशाना
इस तरह से देखें तो लालू प्रसाद मांझी के नाम पर दो तरह की रणनीति अपना रहे हैं. पहला- उन मांझी को अपने करीब लाने की कोशिश करके नीतीश कुमार को यह अहसास कराना चाहते हैं कि जिन्हें वह फूटी कौड़ी नहीं चाहते, उनको अपने करीब ला रहे हैं. दूसरा- इस कदम से लालू, भारतीय जनता पार्टी पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालना चाहते हैं कि अगर मांझी उनके साथ आ गये तो यह संदेश जायेगा कि उन्होंने एनडीए को तोड़ दिया.
उधर मांझी पहले से ही एनडीए से खार खाये हुए हैं. भाजपा ने उन्हें नीतीश कुमार के खिलाफ उकसा दिया लेकिन मुख्यमंत्री पद पर बनाये रखने की बात आयी तो भाजपा ने उन्हें गच्चा दे दिया. इसके अलावा 2015 चुनाव के बाद मांझी इस उम्मीद में रहे होंगे कि उन्हें या उनके किसी करीबी को एनडीएए की सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जायेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
हालांकि लालू-मांझी की बढ़ती नजदीकियों पर अभी बहुत कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि अभी इस मामले में काफी पेंच सामने आने वाले हैं.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक ने बर्मिंघम युनिवर्सिटी इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त की.भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता की पढ़ाई की.फोर्ड फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय फेलो रहे.बीबीसी के लिए लंदन और बिहार से सेवायें देने के अलावा तहलका समेत अनेक मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे.अभी नौकरशाही डॉट कॉम के सम्पादक हैं. सम्पर्क [email protected][/author]