उच्चतम न्यायालय ने विवादित इशरत जहां मुठभेड़ मामले में संलिप्त गुजरात के पुलिसकर्मियों के खिलाफ लगाये गये आपराधिक मामले को खत्म करने के संबंध में दायर की गयी जनहित याचिका पर सुनवाई से इन्कार कर दिया। याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा ने मुम्बई हमले के दोषी डेविड कोलमैन हेडली के हाल में दिये बयान में इशरत जहां को लश्कर ए तैयबा का सक्रिय सदस्य बताने के आधार पर गुजरात पुलिसकर्मियों के खिलाफ की गयी कार्रवाई को रद्द करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटाखटाया था।
दरअसल 15 जून 2004 में अहमदाबाद के बाहर हुए इस मुठभेड़ मामले में गुजरात के कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुम्बई की अदालत में मामला चल रहा है। न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की खंडपीठ ने याचिका पर वकील की दलील शुरू किये जाते ही सुनवाई से इन्कार करते हुए कहा कि आखिरकार अनुच्छेद 32 का उद्देश्य क्या है। इसके तहत आप कोई मामला दर्ज नहीं करा सकते हैं। अगर आप चाहते हैं तो आप संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं। अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता ने जब जनहित याचिका ठुकराये जाने की वजह पूछी तो खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वह याचिका के गुण-दोष के आधार पर इसे नहीं ठुकरा रही है । याचिकाकर्ता ने पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम पर झूठी गवाही देने और अदालत को गुमराह करने कारण उनके खिलाफ मामला चलाने का भी आग्रह किया था। जनहित याचिका में कहा गया है कि तत्कालीन गृहमंत्री ने इशरत के लश्कर ए तैयबा के साथ संबंधों को लेकर गुजरात उच्च न्यायालय को गुमराह करके अदालत की अवमानना की थी।