नोटबंदी विरोधी आंदोलन से चूक गये नीतीश एक ऐसे महाआंदोलन की तैयारी में हैं जो जन सरोकार व जन आस्था से जुड़ा है. इस आंदोलन से नीतीश, न सिर्फ नरेंद्र मोदी को चौतरफा घेरने की तैयारी में हैं बल्कि यह ऐसा मुद्दा है जिससे उन्हें भरपूर जनसमर्थन भी मिल सकता है. आप भी जानिये नीतीश की यह योजना.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
नीतीश कुमार एक महा आंदोलन की तैयारी में हैं. ऐसा लगता है कि वह इस रणनीति की शुरुआत भी कर चुके हैं. नीतीश का यह महाआंदलोन बएक वक्त अपने राजनीतिक समकक्षों के लिए गंभीर चुनौती तो होगा ही, साथ ही इस आंदोलन के निशाने पर उनके धुर राजनीतिक विरोधी नरेंद्र मोदी होंगे.
मोदी के तीर से मोदी पर आक्रमण
नीतीश का यह महा आंदोलन उस गंगा के लिए होगा, जिसके नाम पर नरेंद्र मोदी ने बनारस लोकसभा चुनाव जीतने के लिए किया था. जैसे आसार दिख रहे हैं, उससे अब यह तय लग रहा है कि नीतीश गंगा के नाम पर नरेंद्र मोदी को बड़ी चुनौती पेश करेंगे. नीतीश की यह रणनीति इसलिए भी महत्वपूर्ण होगी क्योंकि देश की सत्ता संभालते ही नरेंद्र मोदी ने गंगा के नाम पर एक अलग व स्वतंत्र मंत्रालय तक बना दिया था. ऐसे में नीतीश इस तैयारी में हैं कि गंगा की अविरलता को बचाने के लिए वह जन आंदोलन का सहारा लेंगे. नीतीश को यह बखूबी मालूम है कि गंगा के नाम में काफी पोटेंशियल है. गंगा आम जन के जीवन से जुड़ी है. लोगों की आस्था से जुड़ी है. धर्म से जुड़ी है. और इन सबसे अलग लोगों के जीवन से जुड़ी है.
पिछले कुछ दशकों में गंगा की विशालता, उसकी स्वच्छता सब खतरे में पड़ती जा रही है. गंगा नाले में बदलती जा रही है. इसलिए गंगा के नाम पर नीतीश के जनआंदलोन को व्यापक समर्थन मिलेगा, इसमें संदेह भी नहीं है.
क्या है रणनीति
जो लोग नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली पर बारीकी से नजर रखते हैं उन्हें पता है कि वह मुद्दे को बड़ी बारीकी से पकड़ते हैं. मुद्दे की तह तक जाते हैं. उसका अध्ययन करते हैं और फिर लक्ष्य निर्धारित करते हैं. पाठकों को शायद याद हो कि पिछले वर्ष गंगा में विकराल बाढ़ आयी थी तो नीतीश कुमार ने एक बयान दिया था. उन्होंने काफी जिम्मेदारी से तब कहा था कि पश्चिम बंगाल में बने फरक्का बराज के औचित्य का अध्ययन किया जाना चाहिए. यहां याद रखने की बात है कि नीतीश ने तब यह सीधा नहीं कहा था कि फरक्का बैराज के कारण ही बिहार में गंगा अपने वजूद को खो रही है. उन्होंने फरक्का के औचित्य के अध्ययन की बात कहके आंदोलन की पहला पत्थर उछाल के देश व समाज का मन-मिजाज भांपने की कोशिश की थी. उसके बाद उन्होंने फरक्का संबंधी अनेक बयान दिये. और अब उसी दिशा में आगे बढ़ते हुए नीतीश ने जलसंसाधन विभाग के मार्फत एक सेमिनार गंगा की अविरलता पर आयोजित करवा के इस बहस की गंगा में दूसरा पत्थर उछाल दिया है. अब एक तरह से यह तय हो चुका है कि नीतीश का यह पत्थर हलचल मचाने को तैयार है.
जोखिम भरे मुद्दे को उठाने का साहस
यह याद रखने की बात है कि नीतीश कुमार जोखिम भरे सामाजिक मुद्दे को राजनीतिक आंदोलन का रूप देने के माहिर योद्धा के रूप में उभरे हैं. शराबबंदी से जुड़ा आंदोलन इसकी सफलता का उदाहरण है. बिहार से यूपी तक और झारखंड से दिल्ली तक शराबबंदी के आंदोलन को राजनीति का रंग दे चुके नीतीश के लिए अब अगला आंदोलन गंगा के नाम पर हो सकता है. ऊपर की पंक्तियों में यह लिखा गया है कि गंगा के नाम में असीमित पोटेंशिल है. इसे नीतीश भलिभांति जानते हैं. उन्हें यह भी बखूबी पता है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने गंगा से जुड़ी आस्था को राजनीतिक रंग तो दिया लेकिन उस रंग को वह जनआंदोलन की शक्ल नहीं दे. लेकिन अब यह तय सा है कि नीतीश उसी गंगा के हथियार से नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को चौतरफा घेरेंगे.
गंगा की अविरलता पर आयोजित सेमिनार के आयोजन के पीछे का असल सार यही है. नीतीश इस सेमिनार में बड़ी भाउकता से कहते हैं कि गंगा की हालत देख कर रोना आता है. नीतीश गंगा किनारे पले-बढ़े और खेले हुए गंगा के असल छोरा हैं. गंगा उनकी भावनावों से जुड़ी है. ऐसे में गंगा की बराबीदी को अगर वह अनुभव करते हैं तो यह स्वभाविक भी है. और चूंकि गंगा हमारे समाज की जीवनरेखा है. आस्था है. इसलिए कोई संदेह नहीं कि इस आंदोलन में उन्हें अपरा समर्थन भी मिलेगा.