सियासत के खिलाड़ी ऐसा ही करते हैं. वह लाभ के लिए कभी दो कदम आगे बढ़ाते हैं तो उससे बड़े लाभ के लिए चार कदम पीछ भी हटने में देर नहीं करते. नीतीश इस खेल में माहिर हैं.
इर्शादुल हक
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सियासी बिसात पर अपनी कुछ ऐसी ही चाल की तरफ इशारा कर दिया. उन्होंने समाज कल्याण विभाग के एक कार्यक्रम में गुरुवर कह दिया कि सरकार शराबबंदी का कानून लागू करेगी. उन्होंने कहा कि हर साल अवैध शराब के चलते जहां सैकड़ों लोग काल के गाल में समा रहे हैं, वहीं अपराध बढ़ने में भी इसका अहम योगदान है. ऐसे में राज्य के लोगों को स्वस्थ्य माहौल देने के लिए अब शराब को बंद करना जरूरी हो गया है.
नीतीश कुमार ने कहा कि अगली बार हमारी सरकार आने पर इस दिशा में फैसला लिया जाएगा.
पहले शराब की गंगा बहाई, अब पाबंदी की बात
बहुत पुरानी बात नहीं है. यह नीतीश कुमार की ही सरकार है जिसने शराब की नयी पालिसी लाई. और देखते ही देखते एक वर्ष के अंदर हजार दो हजार नहीं बल्कि पचास हजार से भी ज्यादा शराब की दुकानों के लाइसेंस जारी कर दिये गये. हालत तो यह हो गयी कि शराब की दुकानें आवंटित करने में उन उसूलों का भी ख्याल नहीं रखा गया जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि स्कूलों और पूजास्थलों से निर्धारित फासले पर शराब की दुकानें नहीं खोली जा सकतीं. नयी पालिसी लागू करने के बाद 2007-8 आते-आते बिहार में दारू की खपत में तीन सौ से पांच सौ प्रतिशत ज्याद खपत होने लगी. स्वाभाविक तौर पर शराब से आने वाले राजस्व में बेतहाशा इजाफा हो गया.
लेकिन करीब पांच साल शासन करने के बाद वहीं नीतीश कुमार अगर यह कहते हैं कि उनकी सरकार राज्य में शराबबंदी लागू करेगी तो, यह समझ में आता है कि नीतीश ने आम जनता के मूड को पढ़ लिया है. उन्हें पता है कि राज्य भर में लोग खास कर महिलायें शराब से बढ़ते उत्पात की शिकार हैं. शराब के कारण होने वाली बीमारियों का हिसाब-किताब तो अलग है ही. पिछले तीन चार सालों में शराब की बहती गंगा के खिलाफ राज्यभर में विरोध होता रहा है.
फिर देरी क्यों?
ऐसे में नीतीश कुमार ने अगर यह कह दिया है कि सरकार गुजरात की तरह शराब पर पूरी पाबंदी लगाने के पक्ष में है तो यह स्वागत योग्य कदम तो है पर इसमें खुद नीतीश कुमार ने एक पेंच लगा दिया है. उन्होंने कहा कि अगले चुनाव में जीत कर अगर उनकी सरकार दोबारा आ गयी तब वह शराब पर पाबंदी लगायेंगे. लाख टके का सवाल यह है कि अभी नीतीश कुमार को किसने रोका है इस फैसले को लागू करने से? बल्कि उनके लिए तो यह अच्छी बात है कि वह इस फैसले को लागू करें और देखें कि भाजपा का कौन नेता इसका विरोध करता है. अगर किसी ने विरोध किया तो नीतीश कुमार उस नेता को एक्सपोज कर सकते हैं.
लेकिन नीतीश कुमार ने शराब पर पाबंदी लगाने पर अपनी मंशा के बजाये राजनीतिक के शतरंज पर एक प्यादा जैसा चल दिया है. लोग इसे समझेंगे.