#NRC यानी असम में नागिरकता की ताजातरीन लिस्ट का गहन अध्ययन किया जाना जरूरी है. सन 71 में पूर्वी पाकिस्तान के विभाजन के दौरान असम से लाखों बांग्ला देश चले गये. उसी तरह लाखों लोग असम आ गये. मुस्लिम बहुल देश बांग्लादेश से, भारत आने वालों में ज्यादातर हिंदू थे. इसी तरह असम के सीमावर्ती इलाकों से बांग्लादेश जाने वाले ज्यादातर मुसलमान थे.
जिन चालीस लाख लोगों के नाम नागरिता लिस्ट से बाहर किये गये हैं उनमें कितने मुसलमान और कितने हिंदू हैं यह स्पषश्ट नहीं है. पर इतना तो स्पष्ट है कि इनमें हिंदू भी हैं, मुसलमान भी.
पर पते की बात यह है कि एनआरसी के निकम्मेपन, नकारेपन और उसकी घृणित करतूत धीरे धीरे सामने आयेगी. अब तक तो यह पता चल चुका है कि इस लिस्ट से पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के खानदान के लोगों का नाम भी इस लिस्ट से बाहर है. तो सैकड़ों बिहारी मूल के हिंदुओं के नाम भी उस लिस्ट से खारिज किया जा चुका है. इसी तरह दो विधायक भी हैं जिनके नाम इस लिस्ट से गायब है. और तो और, एबीबीपी ने एक पूर्व फौजी को खोज निकाला है जिसने तीन दशक तक पंजाब और कश्मीर की सींमाओं पर देश की हिफजत करता रहा, उसे भी एनआरसी वाले भारतीय नागरिक मानने से इनकार कर रहे हैं.
याद रखिए, 1947 में देश बंटा था. 2018 में इंसानों को बांट दिया गया है. चालीस लाख लोगों का मतलब समझते हैं आप? तो इसे ऐसे समझिए कि दुनिया के 97 देश ऐसे हैं जिसकी आबादी, 40 लाख के आसपास ही है. चालीस लाख का मतलब हुआ कि चार लोकसभा सीट के वोटर्स. चालीस लाख का मतलब हुआ 15 विधान सभा के सभी वोटर्स को अचानक अपने वोट के अधिकार से वंचित कर दिया जाना.
ममता बनर्जी अगर कहती हैं कि केंद्र सरकार भाजपा में गृहयुद्ध को दावत दे रही है तो वह सही हैं.