नीतीश कुमार की भाजपा से बढ़ति नजदीकियों के हो- हल्ला के बीच महागठबंधन सरकार के सिर्फ एक कदम ने तीनों दलों के बीच एकजुटता की नयी ऊर्जा भर दी है. ऐसे में महागठबंधन में दरार देखने वाले मीडिया के एक वर्ग और भाजपा खेमे में निराशा है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन सरकार ने 14 महीने पूरे कर लिये हैं. लेकिन यह पहला अवसर है जब राजद, जद यू व कांग्रेस- तीनों दलों के कार्यकर्ता मंत्रिपरिषद से रू ब रू हुए. सीएम नीतीश, लालू, शरद, अशोक चौधरी एक साथ बैठे. कार्यकर्ताओं की शिकायतें सुनी, भ्रम दूर किये. तीनों नेताओं ने बारी बारी से साफ कहा कि गठबंधन अटूट है. भ्रम में न रहें. एक साल सफल गुजरा है. बाकी चार साल भी कामयाब गुजरेंगे.
हालांकि ऐसे अनेक मौके आये हैं जिसमें विरोधियों और मीडिया के एक हिस्से ने गठबंधन में टूट की संभावनायें तलाशी. इस कारण तीनों के दलों के आम कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम की स्थिति बनती रही. प्रकाश पर्व में पीएम मोदी और सीएम नीतीश द्वारा एक दूसरे की तारीफ. शराबबंदी पर मोदी द्वारा नीतीश की तारीफ और नोटबंदी पर नीतीश द्वारा मोदी को समर्थन सरीखे अनेक ऐसे अवसर आये जिनसे ऐसे भ्रमों को बल मिला. और इसका सीधा असर गठबंधन के कार्यकर्ताओं पर पड़ता रहा. हालत यह होती रही कि एक सरकार के अंग होने और एक साथ सरकार चलाने के बावजूद मंत्री स्तर पर समन्वय भले रहा लेकिन एक साल में कभी ऐसा नहीं हुआ कि तीनों दल के कार्यकर्ता भी मन से एक साथ हों. नतीजा यह होता रहा कि तीनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हमेशा अविश्वास की एक लकीर खड़ी रही.
ऐसा नहीं था कि कार्यकर्ताओं के बीच अविश्वास की इस लकीर का एहसास सरकार और दल चलाने वाले नेतृत्व को इसका आभास नहीं था. तीनों दल के नेताओं से बात करने पर उनके बीच परस्पर अविश्वास की चिंतित कर देने वाली लकीरें अकसर दिक जाती रही हैं. ऐसे में कुछ महीने पहले तीनों दलों के नेताओं ने यह तय किया कि तीनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच आपसी विश्वास बढ़ाने के लिए नियमित बैठक जरूरी है. ‘कार्यकर्ता दरबार में मंत्रिपरिषद’, उसी प्रयास का परिणाम है. इस अवसर पर राजद, जदयू, कांग्रेस के कार्यकर्ता एक साथ अपने मंत्रियों-नेताओं के साथ थे.
इस बैठक में जो महत्वपूर्ण फैसला हुआ, वह यह था कि बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति का पुनर्गठन होगा. इसमें तीनों दलों के कार्यकर्ता प्रदेश, जिला और प्रखंड स्तर तक या तो इसके अध्यक्ष होंगे या उपाध्यक्ष.
इस फैसले का सबसे बड़ा और सकारत्मक परिणाम यह होगा कि तीनों दलों के नेता-कार्यकर्ता स्वाभाविक रूप से एक संगठन का हिस्सा हो जायेंगे. नीतीश-लालू -अशोक के इस संयुक्त प्रायस ने गठबंधन में नयी जान फूक दी है. नया आत्मविश्वास और नया परस्पर विश्वास पैदा कर दिया है.