कुशवाहा ने क्यों कहा इस्लाम कुबूल कर लूंगा तो..
जदयू संसदीय बोर्ड अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के ‘इस्लाम कुबूल कर लूंगा तो..’की टिप्पणी के बाद भाजपा खेमे हलचल मच गया है।
दरअसल बिहार यात्रा के क्रम में बक्सर पहुंचे उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन करना किसी का भी संवैधानिक अधिकार है। अगर मैं अपनी इच्छा से इस्लाम स्वीकार कर लूं तो मुझे कौन रोक लगा।
भाजपा ने जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर भाजपा ने परोक्ष हमला बोला है. पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने ट्वीट कर कहा है कि वोट के लिए धर्म छोड़ने की मंशा रखने वाले बेहतर ऑफर मिलने पर कुछ भी कर सकते हैं. हालांकि उन्होंने अपने किसी ट्वीट में उपेंद्र कुशवाहा का नाम सीधे तौर पर कहीं नहीं लिया है. परंतु उपेंद्र कुशवाहा के बक्सर में दिये दोनों बयानों के तुरंत बाद यह पलटवार किया है और इसे सीधे वोट बैंक की राजनीति से जोड़ते हुए जदयू पर सीधा आरोप लगाया है.
दर असल ये सारा विवाद जातीय जनगणना का मुद्दा गरमा जाने के बाद शुरू हुआ है. केंद्र सरकार द्वारा यह स्पस्ट किये जाने के बाद कि जाति आधारित जनगणना केवल एससी/एसटी वर्ग के लिए होगी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एकबार फिर अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है कि वो इसके पक्ष में नहीं हैं और जातिगत जनगणना कराना चाहते हैं.
उपेंद्र कुशवाहा किसी भी दल या गठबंधन में रहे हों उनका न्यायपालिका में आरक्षण और जातिवार जनगणना पर हमेशा स्टैंड साफ रहा है। इसी तरह धर्म परिवर्तन मामले पर किसी कानूनी शिकंजे का भी वह विरोधी रहे हैं। कुशवाहा का धर्म परिवर्तन संबंधी बयान उसी संदर्भ में समझा रहा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री व जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने रविवार को कहा है कि अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन को कोई रोक नहीं सकता. यह संवैधानिक अधिकार है. अगर आज मैं इस्लाम धर्म कबूल करना चाहूंगा तो मुझे कौन रोक सकता है. धर्म परिवर्तन दबाव में नहीं होना चाहिए.
इसके साथ ही उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि जातीय जनगणना हमारी पार्टी की पुरानी मांग है और हम किसी भी कीमत पर इससे पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने यह बातें बक्सर दौरे पर पहुंचने के बाद कहीं. इससे पहले शनिवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जातीय जनगणना के मसले पर पार्टी का रुख साफ कर इसे कम से कम एक बार जरूरी बताया था.
उपेंद्र कुशवाहा ने पत्रकारों से बातचीत में जातीय जनगणना को जरूरी बताया. साथ ही कहा कि कई बार अलग-अलग राज्यों के मसले पर स्थानीय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से कहा है कि पिछड़ों के लिए योजना बनाते समय उनकी संख्या भी बताइए. हालांकि उस तरीके से जनगणना ही नहीं हुई है. इसलिए सरकार बता नहीं पाती है. साल 1931 के बाद आज तक जातीय जनगणना हुई ही नहीं है.