वित्तमंत्री ने डिज़िटल अर्थात् कार्ड वाले भुगतानों के लिए अनेक रियायतों की घोषणा की है। जाहिरा तौर पर यह बैंकों में नई नक़दी के अकाल से ओट लेने की कसरत है।

ओम थानवी, पूर्व सम्पादक जनसत्ता
ओम थानवी, पूर्व सम्पादक जनसत्ता

 

कार्ड या पेटीएम आदि के ज़रिए डिज़िटल भुगतानों की पद्धति नई नहीं। फिर भी उसका प्रयोग बढ़ना अच्छा ही है। लेकिन क्या यह नोटबंदी का उद्देश्य था? जी नहीं। 8 नवम्बर को जब नोटबंदी के ऐलान वाला प्रधानमंत्री का रिकॉर्डेड भाषण “लाइव” कहकर प्रसारित हुआ, उसमें एक भी जगह कैशलेस का उल्लेख नहीं था। यह यक़ीनन बाद की सूझ है। एक अर्थ में नोटबंदी की विफलता के संकेत पाकर घोषित उद्देश्यों (कालाधन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद) से पलटी मारना।

 

जबकि हर कोई जानता है कि किसान-मज़दूरों के देश में कैशलेस सौदे सीमित ही हो सकते हैं। अमेरिका जैसे विकसित मुल्क में कोई 60 प्रतिशत भुगतान अब भी नक़द होते हैं। दूसरी बात, कार्ड से भुगतान करने वालों को सर्विस टैक्स आदि में छूट देना क्या उस समाज के साथ सौतेला बरताव नहीं जो – अच्छो चाहे बुरा – नक़द सौदों में भरोसा रखते हैं? यह उपभोक्ता के नाते उनके बुनियादी अधिकार का मामला है। नक़दी के अभाव में उन्हें ज़बरन डिज़िटल संसार की ओर ठेलना न्यायपूर्ण नहीं जान पड़ता। काले धन पर सरकार ने मानो हार मान ली। कैशलेस/लेसकैश उसका नया मंत्र है। उसे लगता है, इससे शहरों के हाहाकार पर क़ाबू कर लिया जाएगा। गाँवों की पुकार बाहर कितना निकल पाती है? वहाँ एटीएम मुट्ठीभर हैं और आबादी छितरी हुई।

सो गाँव-कसबे रोते रहेंगे। पहले शहरातियों को चुप कराओ। वित्तमंत्री के नए तेवर का संदेश यही है।

हाय! गांधी का देश! ग्राम स्वराज्य वाला ग्रामीण भारत! गया भाड़ में। उसका दर्द न वह ख़ुद रो पाता है, न मीडिया। कौन टीवी वहाँ पहुँचता है?

डिज़िटल यानी कि पेट्रोल, टिकट, टैक्सी, ऑनलाइन ख़रीददारी तक तो ठीक है। उस पर वसूले जाने वाला टैक्स सरकार माफ़ कर रही है (पता नहीं कितने दिनों के लिए!) …

लेकिन आगे अब नीचे के बाज़ार की ओर देखिए। वहाँ अक्सर दुकानदार ग्राहक को नक़द भुगतान पर डिस्काउंट देते हैं। क्योंकि एक तो उन्हें तुरंत पैसा मिलता है और फिर कार्ड कम्पनी को जाने वाला 2 से 3 प्रतिशत कमीशन बच जाता है। उसी ‘बचत’ को वे अपने ग्राहक को दे देते हैं। ग्राहक को वह डिस्काउंट अब कहाँ से मिलेगा? क्या सरकार उसे भी दिलवा दिया करेगी? ग़ौर करें, कार्ड कम्पनियों के कमीशन पर सरकार की कोई नकेल नहीं जिनका धंधा सरकार की नोटबंदी के बाद ख़ूब चमकाने लगा है।

कार्ड के इस्तेमाल के नाम पर घोषित रियायतों का सीधा बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। उसकी भरपाई सरकार कैसे करेगी? दूसरे रास्ते से कोई नया टैक्स/सैस लगाकर?

By Editor