जब शिक्षा बाजार की जिंस की तरह हो जाये और छात्र महज खरीददार और शिक्षक दुकानदार तो सामाज के ताने-बाने पर आखिर कैसा असर होगा?यह विषय अनेक लोगों की चिंता और चिंतन का कारण रहा है.

विकास राही: आशावादी हूं मैं
विकास राही: आशावादी हूं मैं

मेडिकल और इंजिनियरिंग कोचिंग संस्थानों द्वारा मोटी फीस लेना और बदले में छात्रों को पढ़ाई के नाम पर मूर्ख बनाना. झूठे प्रचार तंत्र के आधार पर अपने संस्थान का मेडिकल और इंजिनियिरंग प्रवेश परीक्षाओं में शानदार रिजल्ट बता कर छात्रों को गुमराह करना. वैसे छात्रों को भी इंजिनियिर और डॉक्टर बनाने के लिए कोचिंग में पैसे की खातिर नामांकन कर लेना जो उस लायक नहीं. कोचिंग संस्थानों की ऐसी ही करतूतों का नतीजा यह है कि जब छात्र हजारों-हजार रुपये फीस दने और डेढ़-दो साल कोचिंग में दौड़ लगाने के बाद असफल हो जाते हैं तो उन्हें कोचिंग संचालकों की धोखधड़ी का एहसास होता है.

उम्मीद है बाकी

लेकिन नाउम्मीदी, घुप्प अंधियारे में थोड़ी सी उम्मीद की किरण तब दिखती है जब उसी शिक्षा के बाजार से एक शख्स सामने आता है और स्वीकार करता है कि कोचिंग की दुनिया में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है.

पटना में ‘राही क्लासेज’ के नाम से इंजिनियरिंग व मेडिलकल की कोचिंग कराने वाला संस्थान है. इसके संचालकों में से एक हैं विकास राही. विकास राही मैथ के विख्यात और शिक्षक हैं.Concepts of functions and Calculus ( टाटा मैक्ग्रोहिल) और  Concept of Algebra for the JEE, Men and Advance,( पियरसन प्ब्लिकेशन्स)  के लेखक विकास राही  से नौकरशाही डॉट इन ने  कई चूभते और तीख सवाल किये. इन सवालों की बौछार पर आधारित विकास राही की बातें आप सुनिये और महसूस कीजिए कि जब पूरी शिक्षा व्यवस्था एक कारोबार में बदल गयी हो तो ऐसे में उम्मीद की किरण कहां  दिखती है.

कभी-कभी मैं यह सोच कर काफी आहत होता हूं कि हम किस शिक्षा व्यवस्था की बात कर रहे हैं.कोचिंग व्यवस्था में लूट है, धोखा है, फरेब है. एक कोचिंग संचालक होने के बावजूद मैं इस बात को स्वीकार करता हूं. आपने जो बातें भी ऊपर कहीं है वह सब सच हैं. मैं यह मानता हूं कि पैसे का सब खेल है. इंजिनियरिंग और मेडिकल के झूठे रिजल्ट कोचिंग वाले दिखाते हैं.

बल्कि सच्चाई तो यह है कि पिछले साल टेलिग्राफ अखबार में सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी छपी थी उसमें चौंकाने वाली बात यह थी कि बिहार के कोचिंग संस्थान ने जो प्रचार किया उसके हिसाब से बिहार के जितने छात्र सफल हुए थे उससे दो तिहाई ज्यादा छात्रों का रिज्लट दिखाया गया. यह भयानक झूठ आखिर क्यों बोलते हैं कोचिंग वाले?

नैतिकता का सवाल

कोचिंग संस्थानों की खुली लूट का सीधा असर छात्र शिक्षक रिश्तों पर भी पड़ा है. छात्रों और शिक्षकों के संबंध में काफी नैतिक ह्रास हुआ है. और होना ही है. जिस व्यवस्था में शिक्षा जिंस बन जाये और महज खरीदी और बेची जाने वाली वस्तु हो कर रह जाये तो ऐसा तो होगा ही. आज डाक्टरों का जो पेशा है इतना गंदा क्यों है? आईसीयू में मृत पड़े रोगी को दो-तीन दिनों तक रोक कर इसलिए रखा जाता है कि उसकी लाश से भी पैसे बनाये जा सकें. सच बताऊं तो यह शिक्षा के बाजारीकरण का ही प्रभाव है.

हालांकि स्थितियां जो इतनी भयावह हुई हैं इसके लिए सिर्फ कोचिंग संचालक ही जिम्मेदार हों, ऐसा नहीं कहा जा सकता. आखिर बेहतरीन स्कूलों की लम्बी फिहरिस्त के बावजूद छात्रों को कोचिंग क्यों ज्वाइन करना पड़ता है?  अगर स्कूल व्यवस्था खुद ही अच्छे शिक्षकों को हायर करे, और प्रतियोगी परीक्षा की भी तैयारी करे तो कोचिंग संचालकों की जरूरत ही क्यों रह जायेगी.  इसके अलावा एक और पहलू भी है. वह है सिलेबस का. प्लस2 के सिलेबेस और प्रतियोगी परीक्षा के सिलेबस के बीच बहुत गहरा गैप है. इस गैप को कम किया जाये. तो कोचिंग संस्थानों पर लगाम लगाया जा सकता है.

लेकिन कुछ भी हो. मैं जिस बात को बड़ी शिद्दत से महसूस करता हूं. वह यह है कि विज्ञान के विकास और उस विकास के कमर्सियलाइजेशन ने समाज को रुखा और संवेदनहीन बना दिया है. हर चीज खरीदन बेचने तक सीमट कर रह गयी है. ऐसे में नैतिक पतन, भ्रष्टाचार जैसी चीजें हमारे समाज को छिन्न-भिन्न कर रहा है तो आश्चर्य क्यों?

रास्ता क्या है ?

कई बार मैंने योजना बनायी कि मैं कुछ लोगों के साथ एक मॉडल डेवलप करना है. इसके तहत समाज के 200 बच्चों को 9वी क्लास से लेकर 12वीं तक और फिर इंजिनियरिंग और मेडिकल की परीक्षा कम्पीट करने तक समाज के कुछ लोग खर्च वहन करें.  मैं भी इसमें आर्थिक रूप से मदद करूंगा. और भी कछ लोग जुड़ें. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, खाना-पीना यानी पूरा खर्च हम सब मिल कर वहन करें. उनमें पढाई के साथ नैतिक गुण, आपसी रिश्तों की संवेदना, त्याग और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का ज्जबा विकसित किया जाये. इसके लिए 8-10 साल की जरूरत पड़ेगी. दो सौ बच्चों पर आज के हिसाब से कम से कम दो करोड़ रपये की जरुरत पड़ेगी. पर जब आज से 8-10 साल के बाद इन 200 बच्चों की जमात जब समाज में जायेगी तब आप देखेंगे की समाज में ये लोग कितना क्रांतिकारी बदलाव लाते हैं.  वैसे समाज में आप देखेंगे कि कैसे उच्च नैतिक मूल्य दिखेंगे.पर यह सपना कब पूरा होगा, मैं नहीं बता सकता. पर मैं अबभी आशावादी हूं.

By Editor