नीतीश से जुदा होने के बाद शिवानंद तिवारी उन पर हमला करते रहे हैं. पर इस टिप्पणी में नीतीश की तारीफ के क्या मायने हैं?
नोट- शिवानंद तिवारी से आप असहमत या सहमत हो सकते हैं लेकिन उनकी राजनीतिक दृष्टि को नजरअंदाज नहीं कर सकते. यहां पढ़िये उनकी टिप्पणी. और खुद तय कीजिए कि यह उनकी राजनीतिक निष्ठा के बदलाव को इंडिकेट करती है या यह उनका विश्लेष्णात्मक दृष्टिकोण है.
चुनाव का नतीजा चाहे जो हो,लेकिन नीतीश अभी पुरे रौ में हैं।हों भी क्यों नहीं ! आख़िर मुक़ाबला सीधे नरेन्द्र मोदी से जो है। बिहार का चुनाव नीतीश बनाम नरेन्द्र मोदी बनता जा रहा है। भाजपा ने किसी स्थानीय नेता का नाम अगले मुख्यमंत्री के लिए आगे नहीं किया है। आगे करने भी नहीं जा रही है। नीतीश के लिए व्यक्तिगत रूप से इससे बेहतर स्थिति क्या हो सकती है !
इस संग्राम में नीतीश के जीत का अर्थ है नरेन्द्र मोदी पर उनका विजय। अगर ऐसा होता है तो देश की भविष्य की राजनीति की धुरी नीतीश होंगे। अगर हारते हैं तो भी प्रतिष्ठा की हानि नहीं है।क्योंकि तब यह कहा जा सकता है कि एक मुख्यमंत्री को परास्त करने के लिए प्रधान मंत्री को अपनी पुरी ताक़त झोंकनी पड़ी है।
अबतक का आकलन अगर तटस्थ ढंग से किया जाए तो बोली के मामले में नीतीश मोदी पर बीस ठहरते हैं। मोदी जी के समर्थक भी गया के उनके भाषण को स्तरीय नहीं मानते हैं। दूसरी ओर नीतीश बहुत कुशल वक़्ता हैं। शायद ही पकड़ में आने वाले। लेकिन भाषण की कला पर चुनाव का फ़ैसला नहीं होता। चुनावी संग्राम मे विजयमाल तो जनता उसीके गले में डालती है जिसका स्थान उसके चित्त में होता है।
चुनाव का नतीजा बताएगा कि जनता के चित्त में नरेन्द्र मोदी हैं या नीतीश।
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