सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर अब बहस शुरू हो गयी ही. कोर्ट ने कहा था कि ब्यूरोक्रेट्स को मंत्रियों के लिखित आदेश के बाद ही कोई काम करना चाहिए.
हालांकि कोर्ट के तर्क का आधार यह था कि मौखिक आदेश देकर मंत्री अपना दामन बचा लेते हैं और कठिन हालात में इसके जिम्मेदार अधिकारी ही माने जाते हैं. कभी कभी ऐसे फैसले सरकारों के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली होते हैं.
पर देश के अनुभवी ब्यूरोक्रेट्स का मानना है कि इस फैसले पर व्यावहारिक रूप में अमल करना बड़ा कठिन है. पूर्व कोयला सचिव प्रसन्न मिश्रा ने तो बजाब्ता इस मुद्दे पर एक लेख लिख दिया है. मेलेनियम पोस्ट में लिखे इस लेख में मिश्रा ने यह बताने की कोशिश की है कि कई मामलों में यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है.
उन्होंने लिखा है कि क्या किसी व्यस्त सड़क पर चलते हुए ड्राइवर को कहा जाये कि वह अपनी गाड़ी बांयी तरफ मोड़े, तो जवाब में ड्राइवर कहे कि आप इसका लिखित आदेश दें.
बिहार सरकार के योजना विभाग के प्रधान सचिव विजय प्रकाश भी इस मुद्दे पर कुछ ऐसे ही विचार रखते हैं. उनका कहना है कि कई बार स्थितियों की नजाकत को ध्यान में रखते हुए फैसले लिये जाते हैं. उस समय ऐसा संभव नहीं होता कि सरकार लिखित आदेश पारित करे और तब उस आदेश पर अमल किया जाये. हालांकि अदालत का यह निर्देश नौकरशाहों के हितों को ध्यान में रख कर दिया गया है. पर व्यावहारिक रूप से इस पर अमल करना बड़ा ही कठिन है.
विजय प्रकाशा, इसी प्रकार अदालत के उस निर्देश को भी देखते हैं जिसमें अदालत ने कहा है कि किसी ब्यूरोक्रेट के लिए एक पद पर बने रहने के लिए निर्धारित अवधि का पालन किया जाना चाहिए और उन्हें जब मर्जी तब ट्रांस्फर नहीं किया जाना चाहिए.
लेकिन इस संबंधमें भी 27 सालों के अपने सेवा अनुभव का उल्लेख करते हुए विजय प्रकाश कहते हैं कि अदालत के इस फैसले को भी लागू करना कई बार मुश्किल हो सकता है. क्योंकि अगर कोई अधिकारी किसी मुद्दे को डील करने में विफल होता है और उससे स्थितियां नाजुक बनने लगती हैं तो ऐसी स्थिति में उसका ट्रांस्फर करना भी अनिवार्य होता है. ऐसी हालत में उस अधिकारी को तब तक ट्रांस्फर न करने का इंतजार करना कठिन हो सकता है जबतक कि उसका टर्म पूरा न हो जाये.