बिहार में चुनाव में विकास, सुशासन और उपलब्धि का मुद्दा गौण हो गया है और सिर्फ जाति ही बच गयी है। दरअसल बिहार में पार्टी के बजाये जातियां चुनाव लड़ती हैं और फिर जातियों की सरकार बनती रही है। जिस जाति का सीएम, उसी जाति की सरकार।
नौकरशाही ब्यूरो
एनडीए में सवर्ण भी पीछे नहीं
विधान सभा चुनाव में गठबंधन ने अपने उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी कर दी है। गठबंधन की सूची के अनुसार, 64 यादव और 33 मुसलमानों को टिकट दिया गया है। लालू यादव के आधार वोट ‘माई’ समीकरण को 97 सीटें दे दी गयीं। यानी ‘माई’ शतक पहुंच गयी है। ठीक इसके विपरीत एनडीए में सवर्ण उम्मीदवारी की घोषित संख्या 85 बतायी जा रही है। एनडीए ने 29 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा अभी नहीं की है। इसमें से लगभग 25 सीटों पर सवर्ण उम्मीदवारों को लेकर ही विवाद बना हुआ है। यानी एनडीए की अंतिम सूची आते-आते सवर्ण उम्मीदवारों की संख्या सौ से पार कर जाएगी।
सात जातियों का चुनाव
दरअसल बिहार विधान मुख्यत: पांच जातियों का चुनाव बन कर रह गया है। इसमें यादव, मुसलमान, कुशवाहा, राजपूत और भूमिहार की लड़ाई है। कुछ हद तक कुर्मी और ब्राह्मण फैक्टर भी प्रभाव डालता है। आरक्षित सीट पर रविदास व पासवान ही मुख्य लड़ाई में हैं। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अतिपिछड़ा पीएम के नाम पर अतिपिछड़ी जातियों को गोलबंद किया था। उस अतिपिछड़ी जाति को दोनों गठबंधनों ने छला है। महागठबंधन ने 25 और एनडीए ने 20 अतिपिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। अब देखना है कि चुनाव के बाद किस जाति की सरकार बनती है।
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