एक चौंकाने वाला खुलासा से पता चला है कि देश के 19 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के महाप्रबंधक स्तर के कुल 436 पदों में ओबीसी के मात्र पांच लोग शामिल हैं. जो महज 1. प्रतिशत है. जबकि देश में ओबीसी की आबाद 54 प्रतिशत से अधिक मानी जाती है.
यह खुलासा आरटीआई से प्राप्त जानकारी से हुआ है.
महाप्रबंधक स्तर के एससी कटेगरी के मात्र 14 अधिकारी हैं वहीं एसटी के 7. ध्यान रहे कि एससी कटेगरी के लिए 15 प्रतिशत रिजर्वेशन है जबकि महाप्रबंधक स्तर पर इनकी प्रतिशत मात्र 3.2 प्रतिशत है.
इसमें चौंकाने वाली बात तो यह भी है कि बैंक आफ बड़ोदा, युनियन बैंक और इंडियन बैंक के अलावा 16 सार्वजनिक बैंकों में ओबीसी का एक भी महाप्रबंधक नहीं है. आरटीआई की इस सूचना में एसबीआई समूह के बैंकों की जानकारी शामिल नहीं है.
इन आंकड़ों के अवलोकन से साफ हो जाता है कि 15 प्रतिशत आबादी वाले सवर्ण समाज का इस पद पर 94 प्रतिशत कब्जा है.
इसी तरह इन सरकारी बैंकों में डिप्टी जनरल मैनेजर स्तर के कुल 1216 पद हैं जिनमें ओबीसी के मात्र 14 अधिकारी शामिल हैं जो 1.4 प्रतिशत के बराबर है. दूसरी तरफ एससी के 72 अधिकारी डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. पंद्रह प्रतिशत की आबादी वाले एससी समूह की वास्तविक भागीदारी 6 प्रतिशत है जबकि उनकी नुमाइंदगी कम से कम 15 प्रतिशत होनी चाहिए.
ये आंकड़े आल इंडिया फेडरेशन आफ अदर बैकवर्ड क्लासेज वेलफेयर एसोसिएशन ने केंद्र सरकार के डीओपीटी से प्राप्त करके जारी किया है.
इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप मंडल का कहना है कि पिछड़ी जातियों की अल्पभागीदारी मूल रूप से कांग्रेस के कुकर्मों के कारण है अब मौजूदा भाजपा सरकार उसी परम्परा को आगे बढा रही है.