जद यू के पुनर्गठन की तैयारियों के बीच खबर है कि 15 हजार लोग वशिष्ठ नारायण सिंह के चूड़ा-दही भोज में शिरकत करेंगे पर कम लोगों को पता है कि भोज के बाद कई धुरंधरों के राजनीतिक पर कतरने की तैयारी भी हो चुकी है
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट इन
15 जनवरी को मनाये जाने वाले मकर संक्रांति के भोज के पटना के दो आकर्षक केंद होंगे. लालू प्रसाद द्वारा आयोजित भोज तो अकसर सुर्खियों में रहता है लेकिनन इस बार जद यू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह का भोज भी राजनीतिक चर्चा बटोर रहा है. आम तौर पर लालू प्रसाद का हर आयोजन मीडियाई बहस का मुद्दा होता है. लेकिन उन लोगों को, जो हर बार की तरह लालू के भोज में राजनीति तलाशते रहे हैं, उन्हें इस बार जरा निराशा हाथ लग सकती है.
इसके बरअक्स वशिष्ठ नारायण सिंह के चूड़े पर पड़ने वाले दही की मिठास और तिल के सोंधेपन पर आलू-गोभी का तीखापन कुछ ज्याद ही प्रभाव दिखा सकता है. हालांकि दोनों आयोजनों में लालू, नीतीश, शरद और अशोक चौधरी सरीखे नेता शामिल होंगे लेकिन वशिष्ठ नारायण सिंह का आयोजन जद यू की आंतरिक राजनीतिक तपिश को प्रतिबिंबित करने वाली हो सकती है.
जदयू का पुनर्गठन
कारण कि जद यू इस समय पुनर्गठन की प्रक्रिया से गुजर रहा है. आने वाले दिनों में सांगठनिक चुनाव होने हैं. एक-एक कार्यकर्ता की इस बात पर नजर है. संगठ के विभिन्न पदों के लिए किसिम-किसिम के कार्यकर्ताओं के नामों पर गंभीरता से विचार मंथन चल रहा है. इस मंथन का एक प्रमुख केंद्र वशिष्ठ नारायण सिंह का आवास भी है. उनके साथ इस विषय पर चर्चा के लिए आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर लिस्ट को फाइनल टच दे रहे हैं. लिस्ट का कुछ हिस्सा सात सर्कुलर रोड पहुंचाया जा चुका है. कुछ पदों के लिए नाम तय भी हो चुके हैं तो कुछ पर माथापचची जारी है.
भयभीत नेता
चूड़ा-दही भोज का भले ही सांगठनिक चुनाव से कोई लेना देना न हो पर इस भोज में परोसे जाने वाले आलू-गोभी का तीखापन कई धुरंधर नेताओं के राजनीतिक भविष्य में कसैलापन ला देगा, यह तय है. कई नेताओं को इस कसैले स्वाद का पूर्वानुमान भी हो चुका है. कइयों को संदेह है कि इस बार उन्हें संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. कई ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने संगठन में काफी अच्छा काम किया है लेकिन उन्हें अब तक किसी कारण महत्व नहीं मिल सका है पर इस बार के दही चूड़ा भोज में तिलकुट की मिठास उनके राजनीतिक करियर पर सर चढ़ के बोल सकती है. लेकिन इन सब के बावजूद वशिष्ठ नारायण सिंह के भोज में, जद यू के वे नेता भी, जिन्हें बाहर जाने का आभास हो चुका है, भारी मन से ही सही, लेकिन आयेंगे जरूर. क्योंकि वे आखिरी दम तक उम्मीदों का दामन छोड़ने का जोखिम नहीं उठाना चाहते.
खबर तो यहां तक है कि इस बार संगठन में कई जमे जमाये नेताओं के पर बेरहमी से काट डाले जायेंगे. इसमें तो कुछ महासचिव स्तर के नेता हैं. संगठन में कई नये युवाओं को जगह मिलेगी. इस में वैसे युवा शामिल हो सकते हैं जो सोशल मीडिया से बखूबी वाकिफ हों. ऐसे में कई ऐसे पुराने और पारम्परिक ढ़र्रे की राजनिति करने वाले नप जायेंगे.
लालू प्रसाद और वशिष्ठ नारायण सिंह के चूड़ा दही भोज में कुछ और महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दे बहस में शामिल हो सकते हैं. इस बहस में लालू, नीतीश, शरद वशिष्ठ और अशोक चौधरी कुछ देर के लिए एकांत में चर्चा कर सकते हैं. इस दौरान इस विषय पर चर्चा हो सकती है कि विरोधियों के जंगलराज के नाम पर होने वाले तिलमिलाहट भरे आक्रमण से कैसे निपटा जाये? फिर इस पर भी चर्चा हो सकती है कि उत्तर प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनाव में गठबंधन की क्या भूमिका हो.
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