पिछले दिसंबर माह से राज्य के विकास में आमलोगों से राय लेने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘लोक संवाद’ की शुरुआत की थी। इसके लिए सरकार ने व्यापक तैयारी की थी। सीएम का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। सरकार इसके प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापन अभियान चला रही है। इसकी उपयोगिता को लेकर सरकार ने अभी तक कोई अध्ययन नहीं किया है। लोक संवाद को लेकर शुरुआती रुझान उत्साहजनक थे, लेकिन बाद के दिनों में उत्साह में कमी दिखने लगी है। आज सिर्फ 15 महिलाओं ने सुझाव दिए।
वीरेंद्र यादव
लोक संवाद को ‘सार्वजनिक कैबिनेट’ की बैठक भी कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री सचिवालय में आयोजित होने वाले लोकसंवाद में लगभग सभी विभाग के प्रधान सचिव व सचिव मौजूद रहते हैं। जिस विभाग से जुड़े सुझाव शामिल किये जाते हैं, उसके प्रधान सचिव पूरी तैयारी के साथ आते हैं। बैठक में मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव और डीजीपी बैठते हैं। इसके अलावा हर बैठक में दर्जन भर से अधिक मंत्री भी उपस्थित रहते हैं। लेकिन बैठक में मंत्रियों की उपस्थिति ‘मौनी बाबा’ से अधिक कुछ नहीं होती है। जिन विभागों के सुझाव आते हैं, उनके प्रधान सचिव जरूर विषय वस्तु को स्पष्ट करते हैं। लेकिन पूरे कार्यक्रम में सीएम मंत्रियों को ‘भाव’ नहीं देते हैं। वैसी स्थिति में मंत्रियों को सिर हिलाने या झपकी लेने के अलावा कोई काम नहीं बचता है। हर लोक संवाद में आमंत्रित सलाहकारों के अलावा लगभग सभी चेहरे की सीटिंग व्यवस्था, भाव-भंगिमा और संवाद शैली एक सी लगती है।
महिला विशेष लोकसंवाद
आज का लोक संवाद सिर्फ महिलाओं के लिए था। इसमें सभी सलाह देने वाली महिलाएं ही थीं। राज्य के विभिन्न हिस्सों से आयी थीं। सभी अपनी पीड़ा, व्यथा, सुझाव और संभावनाओं को साझा कर रही थीं। इनके सुझावों को सीएम संभीरता से सुन रहे थे और अधिकारियों से विशेष जानकारी भी हासिल कर रहे थे। इस दौरान कई सुझावों पर मुख्यमंत्री ने उस दिशा में की जा रही सरकारी पहल की जानकारी दी और कई नीतिगत निर्णय का आश्वासन भी दिया।