प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने अपराध-भ्रष्टाचार पर सीएम नीतीश कुमार पर जम कर प्रहार किया है. अपने दिल की बात लिखते हुए तेजस्वी ने उन्हें कहा है कि उनसे बिहार नहीं संभल रहा, लिहाजा अपने सहयोगी दल के नेता को कुर्सी सौंप दीजिए, शायद कुछ भला हो जाये.
तेजस्वी ने फेसबुक पर लिखा है कि विगत दो माह से बिहार निरन्तर गलत कारणों से सुर्खियों में छाया हुआ है। रातों रात सत्ता में बने रहने और सृजन जैसे घोटालों में फँसी अपनी गर्दन बचाने एवं जनादेश का क़त्ल करने के बाद से बिहार के हित में एक भी सकारात्मक कार्य नहीं हुआ है।
तेजस्वी ने कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि सारा प्रशासन और पूरी सरकार सिर्फ़ एक लक्ष्य को लेकर चल रही है कि कैसे एक व्यक्ति का महिमामण्डन किया जाए। सारे कामों का श्रेय उसी आत्ममुग्ध व्यक्ति को ही दिया जाए और उसकी हर विफलता का ठीकरा दूसरों के माथे फोड़ दिया जाए। बिहार में अपराध अपने चरम पर है तो उसका दोष मुख्यमंत्री DGP को देते है। माननीय मुख्यमंत्री जी जनता यह भी जानती है कि DGP क़ानून व्यवस्था पर आपको ही रिपोर्ट करते है।आप अपनी नाकामयाबी का सेहरा अपने सिर बाँधिये।डीजीपी को बलि बकरा बनाकर आप अपनी ज़िम्मेवारी से नहीं बच सकते।
जवाबदेही किसकी?
अफ़सरों के अच्छे काम का क्रेडिट आप लूटते है तो उनकी ख़राब पर्फ़ोर्मन्स की जवाबदेही भी आपकी है। आप इतने लम्बे समय से राज्य के मुख्यमंत्री हैं फिर भी सरकारी भ्रष्टाचार और अफसरशाही व्यवस्था का अभिन्न अंग बन चुका है। आम जनता का कोई भी काम बिना चढ़ावा दिए सम्भव होना एक स्वप्न नज़र आता है। वहीं शीर्ष सरकारी तंत्र के नज़दीकियों का आनन्द उठाने वाले लोग चाहे दुनिया का कोई अपराध, ग़बन या भ्रष्टाचार कर लें, उनपर कोई भी आँच आने का सवाल ही नहीं उठता। इसके उलट केंद्र और राज्य सरकार उन्हें बचाने के प्रयास में ही जुट जाते हैं।
मीडिया के साथियों को पता है
तेजस्वी ने लिखा है कि सृजन कांड को अपने संरक्षण में चलते रहते देना, जाँच के प्रयासों को बार-बार दबा देना और अब केंद्र और राज्य की मिलीभगत से घोटाले की जाँच के नाम पर हो रही धांधली इसका जीता जागता उदाहरण है। और यह जगजाहिर है कि नीतीश कुमार जी अपनी झूठी तथाकथित छवि बनाए रखने के लिए किस प्रकार मीडिया रिपोर्टों औऱ लेखों की एडिटिंग करते हैं। विज्ञापन देने नहीं देने के नाम पर क्या-क्या होता है मीडिया के सभी तटस्थ साथी जानते है।
मुख्यमंत्री स्वयं को मुख्य भूमिका में दिखाने और सभी मंत्रालयों के काम में अपनी छाप का अहसास करवाने के लिए अपनी अध्यक्षता में तथाकथित समीक्षा बैठक का आयोजन करते हैं। जब लगातार अपराध में बढ़ौतरी हो रही है तो किस लक्ष्य को लेकर गृह विभाग की समीक्षा बैठक होती है? इन समीक्षा बैठकों से जब सृजन घोटाला पर लग़ाम नहीं लग पाया तो ऐसी बैठकों का क्या औचित्य?
कैसी समीक्षा बैठकें हैं ये
तेजस्वी ने लिखा है कि क्या कभी इन समीक्षा बैठकों में मुख्यमंत्री ने सृजन कांड में बार-बार जाँच के लिए आ रहे आवेदनों पर विचार विमर्श किया? चूहों के कारण बाढ़ आ जाती है और चूहे लाखों शराब की बोतलें खाली कर देते हैं, क्या कभी ऐसे विकराल भयावह चूहों की महिमा पर इन समीक्षा बैठकों में चर्चा हुई? सैंकड़ों करोड़ की बटेश्वर गंगा पम्प परियोजना अपने उद्घाटन के पहले ही बन्दरबाँट और भ्रष्टाचार की पोल खोल देती है, पर किसी तथाकथित समीक्षा बैठक में वह उपयोगिता और ईमानदारी नहीं थी जो इसपर लगाम लगा सके। बिहार में डेढ़ साल से शराबबंदी है फिर भी प्रतिदिन लाखों लीटर शराब की डिलिवरी हो रही है, शराब को जागरूक जनता के सहयोग से पकड़वाया जाता है । आपके अधीन पुलिस महकमा शराबबंदी के नाम पर भ्रष्टाचार की खान बन चुका है।लेकिन समीक्षा बैठकों में इसका ज़िक्र नहीं होता होगा क्योंकि मुख्यमंत्री स्वयं कहते है की पुलिस अधीक्षक थानों को बोली लगाकर बेच देते है पर मुख्यमंत्री यह नहीं बताते ज़िले को कैसे बेचते है और जैसा माँझी जी कहते थे मुख्यमंत्री के अपने चेहते साथी कैसे बोली लगाकर आईपीएस की पोस्टिंग करते है। नीतीश जी, चाहे कितने भी प्रशासनिक ताम झाम नए-नए नामों से मीडिया के ज़रिए जनता के सामने परोस दिए जाएँ, जब तक जनसेवा की ईमानदार कोशिश नहीं होगी, सरकारी कामों का खोखलापन सामने आ ही जाएगा।
हत्या,लूट, तोड़-फोड़
पहले बाढ़ की रोकथाम और उससे सम्भावित नुकसान को कम करने के प्रयासों के प्रति सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता और बाद में बाढ़ पीड़ितों के राहत व बचाव में बरती गई व्यापक लापरवाही ने सिद्ध कर दिया कि सरकारी इच्छाशक्ति सिर्फ खोखली बयानबाज़ी और मीडिया में किसी भी तरह बने रहने तक ही सीमित है। रोज़ रोज़ हत्या, लूट-मार-काट, तोड़-फोड़ की खबरें आ रही हैं। सृजन महाघोटाले पर खुद अभियुक्त ही अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। तथाकथित जाँच का ढकोसला चल रहा है। छोटी मछलियों को पकड़ मुख्य अभियुक्तों को भगा दिया गया है और सबूत मिटाना और लीपापोती करके मामले को दबाया जा रहा है। हज़ारों हज़ार करोड़ के नहर परियोजना उद्घाटन के पहले कागज़ के ढेर की तरह बह जाते हैं और सारा महक़मा यहाँ-वहाँ दोषारोपण करके अपना पल्ला झाड़ते नज़र आता है। 882 करोड़ रुपये की परियोजना का अगर यह स्तर हो तो समझा जा सकता है कि किस सीमा तक बन्दरबाँट का खेल धड़ल्ले से चल रहा होगा।
मुख्यमंत्री को सभी विभागों के घोटालों और अपराधों की नैतिक ज़िम्मेवारी लेनी होगी अन्यथा ऐसी दिखावटी समीक्षा बैठकों का क्या फ़ायदा? अगर मुख्यमंत्री जी से प्रतिदिन उजागर होते घोटालें और बढ़ते अपराध पर अंकुश नहीं लगाया जाता तो अपनी सहयोगी पार्टी के किसी क़ाबिल नेता को अपना दायित्व सौंप दें। हो सकता है तब बिहार को केंद्र से अधिक मदद मिलें क्योंकि ऐसा मानना आपका ही तर्क है। समीक्षा बैठके दिखावटी और बनावटी होने कि बजाय क्वालिटेटिव और रिज़ल्ट ऑरीएंटेड होनी चाहिए। धन्यवाद