यह लेख बिहार सरकार के एक अफसर ने भेजा है. उनकी शर्त है कि हम उनका नाम जाहिर न करें. उन्होंने शिक्षा विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अमरजीत सिन्हा के हटाये जाने को शिक्षा क्षेत्र के लिए नुकसानदेह बताया है.
अमरजीत सिन्हा 15 सितम्बर को शिक्षा विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी के पद से हटा दिये गये. वह 1983 बैच के आईएएस हैं और बिहार के ही रहने वाले हैं. इस लेख से नौकरशाही डॉट इन की न तो सहमति है और न ही असहमति…
ये सिन्हा जी क्या करते थे! ये सिन्हा जी क्या सोचते थे? क्या सिन्हा जी खुद चले गये या उन्हें चलता कर दिया गया? सिन्हा जी के चले जाने पर मेरे जैसा एक तुच्छ नागरिक क्यों विलाप कर रहा है?
तो आइये, थोड़ा इस चले जाने वाले सिन्हा जी के बारे में जाना जाये। वस्तुतः सिन्हा जी कुछ सोचा करते थे। लिखा करते थे। अपने सोचे और लिखने पर एक टीम वर्क भी करते थे। सिन्हा जी एक हद तक नवाचारी भी थे। सिन्हा जी के ऐसे अनेक नवाचार को उनकी लेखनी और करनी में समझा जा सकता था या समझा जा सकता है।
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हाँ, सिन्हा जी सत्ता के एक केन्द्र भी थे। अपने आप में एक इन्स्टिच्यूशन भी थे। एक प्रशासक-सह-नौकरशाह भी। इनके इस सत्ता के केन्द्र, प्रशासक और नौकरशाह के आभामंडल के इर्द-र्गिद बिहार की राजनीति और राजनीति से निर्मित सरकार अकसर लोक लुभावन घोषणाओं और योजनाओं का जय घोष किया करती थी क्योंकि सत्ता की राजनीति और लोक लुभावन घोषणाओं में एक गहरा रिश्ता होता है। इस रूप में सिन्हा जी कभी-कभी सरकारों के लिये मंच का भी काम कर देते थे।
मगर सवाल वहीं का वहीं है कि आखिर सिन्हा जी क्यों चले गये? क्या उनकी रचनाधर्मिता, नवाचारी पहलकदमियाँ, सामूहिक कार्यपद्धति, कनीय पदाधिकारियों, संस्थानों से बढ़ता संवाद कारण बन गया उनके चले जाने का?
सत्ता ने उन्हें क्यों नापसंद किया?
सिन्हा जी एक ऐसे विभाग के प्रधान सचिव थे जहाँ से एक चेता नागरिक, ज्ञान मूलक समाज, प्रजातांत्रिक प्रणाली, शिक्षण सामग्रियाँ, सृजनशील एवं जीवंत संस्थान (प्रषिक्षण) को खड़ा करने की एक अपार संभावना थी। जिसके कुछ प्रारंभिक प्रयास कर सिन्हा जी ने विभाग में एक हल-चल पैदा कर दी. कनीय अफसरों में सक्रियता लाई, विमर्श और असहमति को खाद-पानी डालते हुये इसे (इन प्रक्रियाओं को) दूर-बहुत दूर ले जाने चाहते थे।
मगर, इसी बीच सिन्हा जी चले गये। उन्हें हटा दिया गया. नतीजा यह हुआ कि वह निराश हुए. और जब उनकी योग्यता की कद्र नहीं हुई तो वह बिहार में रहने के बजाये केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गये. क्या उनका नवाचार, सामूहिक विमर्ष सत्ता के सरोकारों के परिधि से बाहर था? या सत्ता के गलियारों में पसन्द नहीं किया गया?
अब क्या होगा, छात्र प्रगति पत्रक का? शिक्षक प्रगति प्रत्रक का? विद्यालय प्रगति पत्रक का? अब क्या होगा समझें-सीखें अभियान का? क्या होगा मिशन मानव विकास का? अब क्या होगा उन शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों का, जो वर्षों से मरे पड़े रहे और जिन्हें उन्होंने जीवंत बना दिया?
क्या माना जाय (कोई जरूरी नहीं) कि बिहार की सत्ता केन्द्रक ने सिन्हा जी को साफ-साफ बता दिया कि ‘‘आप होरी और धनिया या उसके भावी वंशजो की चिंता मत करें। आखिर पढ़ लिख लेने के बाद यही होरी- धनिया राजनीतिक सत्ता के लिये चुनौती बन जाते, राजनीतिक सत्ता भला ऐसी गलती करती क्या?
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