बेबाक लेखनी के लिए सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरने वाले वसीम अकरम त्यागी लव जिहाद पर मीडिया और समाज के एक वर्ग की भूमिका को कटघरे में खड़ा करते हुए बता रहे हैं कि उनकी भूमिका से समाज में वैमनस्य फैला पर अदालत के रुख से कई समुहों की कलई खुल गयी है.
मेरठ के बहुचर्चित खरखौदा प्रकरण के लव जिहाद की पोल खुलने के बाद रांची का तारा शहदेव का मामला भी झूठा पाया गया। अदालत को इस मामले में जबरन धर्म पिरवर्तन का कहीं भी कोई साक्ष्य नहीं मिला। मुख्य न्यायिक दंडादिकारी नीरज कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने शुक्रवार को तय किया कि तारा शाहदेव और रंजीत कोहली के मामले में सिर्फ दहेज प्रताड़ना का केस चलेगा. हालांकि इस मामले की पोल एक दो दिन बाद ही खुल गई थी जब रंजीत कोहली उर्फ रकीबुल हसन को जन्म से ही सिख पाया गया था। कुछ एक अपवाद को छोड़कर किसी भी बड़े मीडिया हाऊस ने उस खबर को प्रसारित व प्रकाशित नहीं किया। वह तो भला हो naukarshahi.com के संपादक Irshadul Haque का जिन्होंने इस केस की सारी परतें खोल दीं।
ताजा ममला- तारा मामले का जिन्न बाहर, उन्मादी मीडिया हुआ अपमानित
इरशादुल हक और उनके वेबपोर्टल को भी कई बार धमिकयों का सामना करना पड़ा था। सोशल मीडिया पर भी जहां एक तरफ इस खबर को झूठा बताया जा रहा था वहीं दूसरी और संगठन विशेष लोग इस तारा शहदेव के कांधे पर बंदूक रख कर समुदाय विशेष के खिलाफ अपनी भड़ास निकाल रहे थे।
मीडिया की नकारात्मक भूमिका
इस पूरे प्रकरण में सबसे खराब भूमिका मीडिया की रही, मीडिया ने रातों रात लव जिहाद का फॉर्मूला गढ़ लिया बगैर क्रॉस क्यूशचनिंग के उसे प्रकाशित व प्रसारित किया. उसी दौरान जेएनयू के प्रोफेसर मोहन राव ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा था जिसमें बताया गया था कि केरल के अंदर लव जिहाद नाम का संगठन है और इस संगठन के द्वारा अब तक तीस हजार लड़कियां जबरन धर्म परिवर्तन कर चुकी है।मगर पुलिस की जांच में ऐसा कुछ नहीं पाया जैसा कि प्रोफेसर साब ने अपने लेख में लिखा था। सप्ताह भर चले खरखौदा प्रकरण, फिर तारा शहदेव प्रकरण की अब पूरी तरह पोल खुल चुकी है।
साथ ही उन सगठनों, और मीडिया कर्मियों के द्वारा फैलायी जा रही अफवाहों की भी पूरी तरह हवा निकल चुकी है। मगर यहां इस मोड़ से कई सवाल हैं जो सशक्त समाज की स्थापना के लिये पैदा हो जाते हैं। सबसे पहला सवाल तो यही है कि सदियों से एक साथ रहते आ रहे दो समुदायों के बीच ऐसी झूठी खबरों को प्रचारित करके नफरत पैदा क्यों की गई ? मीडिया लोकतंत्र की प्राणवायू है मगर क्या मीडिया ने इस मामले वह किया जो करना चाहिये ?
भाईचारे की जगह वैमन्सय को मिला बढ़ावा
टीबी के एंकरों, समाचार पत्रों के विशेष संवाददाताओं ने नौसिखया पत्रकार की तरह काम क्या उन्हें दो समुदायों के बीच वैमन्सय बढ़ाना चाहिये था ? टीवी पर पैनल डिस्कशन चले वीएचपी जैसे तथाकथित हिंदुत्वावादी संगठन ने जोधा अकबर, अलाउद्दीन खिल्जी, रानी पदमावती, को इस बहस में लाकर खड़ा कर दिया। क्या उन्होंने यह सोचा कि समाज व्यक्तियों से बनता है, और जब समाज के लोग एक दूसरे को संदेह की दृष्टी से देखेंगे तो फिर कैसा समाज बन पायेगा ? अगर तारा शहदेव का धर्म परिवर्तन हुआ भी था तो उसकी सजा भारतीय दंड संहिंता तय करती या फिर खाप नुमा कुछ संगठन ? कल जब तारा ने आरोप लगाये थे रकीबुल हसन उर्फ रंजीत ने उसका जबरन धर्म परिवर्तन कराया है तब प्रत्येक टीवी चैनल, प्रत्येक अखबार में यही खबर देखने और पढ़ने को मिलती थी।
आज जब अदालत ने धर्म परिवर्तन से इंकार कर दिया और रकीबुल हसन उर्फ रंजीत कोहली को सिर्फ रंजीत कोहली (सिख धर्म) का माना है आज यही मीडिया खामोश है ? मीडिया वाले सोच रहे होंगे अब इसमें सनसनी नहीं है, कोई उन्हें बताये कि इससे बड़ी सनसनी और क्या हो सकती है देश की संसद, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छा जाने वाला मामला झूठा साबित हो रहा है ? क्या उनकी अब यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे अपने द्वारा की गई पूर्वग्रह से ग्रस्त से रिपोर्टिंग के लिये जनता से माफी मांगे ? ताकि लोगों का भरौसा मीडिया पर पर बना रहे।