30 अप्रैल 2003 का दिन। राजधानी पटना चप्पा-चप्पा इस दिन राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के आह्वान पर ‘तेल पिलावन-लाठी घुमावन’ रैली के कारण भरा पड़ा था। इधर गांधी मैदान में रैली की शुरुआत हुई उधर खगौल का जमालुद्दीन चक गोलियों की तड़तड़ाहट से गुंज उठा।
विनायक विजेता
खगौल के कोथमा गांव निवासी व मुखिया रीतलाल यादव ने दिन दहाड़े भाजपा नेता सत्यनारायण सिंह को उनकी ही गाड़ी में गोलियों से भून डाला। सत्यनारायण सिंह इसके पूर्व दापुर से भाजपा उम्मीदवार के रुप में चुनाव भी लड़ चुके थे। इस घटना के विरोध में उग्र भीड़ को संभालने के लिए पुलिस को दर्जनों चक्र गोलियां चलानी पड़ी क्योंकि उग्र भीड़ इसी गांव में सड़क के किनारे स्थित लालू प्रसाद के समधी और मीसा भारती के ससुर राम बाबु पथिक के निवास को निशाना बनाना चाह रही थी।
रीत लाल का जीवन
अब एक नजर रीतलाल यादव की जिंदगी पर डालें। कोथवां गांव निवासी रीत लाल यादव के आपराधिक जिंदगी की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी। तब तेरह वर्षों में ही रीतलाल यादव का साम्राज्य पटना जिले में तो फैला ही दानापुर डीवीजन से निकलने वाले हर रेलवे टेडर पर उसका और उसके गिरोह का साम्राज्य स्थापित हो गया। जिसने भी उसके खिलाफ जाने की कोशिश की उसे भून डाला गया। सत्यनारायण सिंह की हत्या के बाद रीतलाल तब और चर्चित हो गया जब उसने चलती ट्रेन में बख्यिारपुर के पास दो रेलवे ठेकेदारों की हत्या कर दी।
इसके बाद रीतलाल ने अपने विरोधी नेऊरा निवासी चुन्नू सिंह की हत्या छठ पर्व के समय घाट पर उस समय कर दी जब वह घाट बनवा रहा था। इस घटना के बाद पटना पुलिस और एसटीएफ रीतलाल के पीछे पड़ गई क्योंकि तब चुन्नू को पुलिस का इन्फार्रमर भी माना जा रहा था। पर अपने इलाके में ‘राबीनहुड’ की छवि वाले रीतलाल की परछाई भी पुलिस तबतक नहीं पा सकी जब तक वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव के पूर्व उसने स्वयं अदालत में आत्मसमर्पण नहीं कर दिया।
राजद से टिकट नहीं मिलने पर जेल में रहते हुए 2010 में दानापुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ा पर भाजपा प्रत्याशी से काफी कम अंतरों से चुनाव हार गया।
हृदय परिवर्तिन
इस चुनाव के बाद ही जेल में बंद रीतलाल का हृदय परिवर्तित होता चला गया। होली हो या दिवाली, दशहरा हो या छठ पूजा या फिर ईद हो या बकरीद हर अवसरों पर रीतलाल की ओर से शुभकामनाएं संबंधित होर्डिंग राजधानी और दानापुर इलाके में दिखने लगा। रीतलाल तब अपराध की दुनियां का दुर्दांत था पर उसने फिरौती के लिए अपहरण, रंगदारी और लूट जैसे वारदात कभी अंजाम नहीं दिए।
‘मर्डरर’ से ‘माननीय’ बन
अपने इलाकों के गरीबों की मदद करने और इलाके में ‘गरीबों का मसीहा’ कहा जाने वाले रीतलाल की कोई तस्वीर या मोबाईल नंबर भी पुलिस उसके आत्मसमर्पण तक नहीं प्राप्त कर सकी। रीतलाल यादव का अपने इलाके में असर और उसकी लोकप्रियता को भांप लालू प्रसाद को अपनी पुत्री व पाटलिपुत्र से राजद प्रत्याशी मीसा भारती के हित के लिए बीते लोकसभा चुनाव के पूर्व कोथवां जाकर रीतलाल के पिता और परिजनों से मिलने को मजबूर होना पड़ा। अपराध के रास्ते को त्याग समाज की मुख्यधारा से जुड़ने की रीतलाल यादव की दृढ़ इच्छा शक्ति के जनसमर्थन का ही यह प्रतिफल था रीतलाल जेल में रहते हुए बीते वर्ष पटना पंचायत प्राधिकार क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ते हुए एनडीए और महागठबंधन दोनों दलों के प्रत्याशियों को मात देकर ‘मर्डरर’ से ‘माननीय’ बन गए।
जेल से चलाया संगठन
जेल से ही ‘विजय बिहार विकास मंच’ नामक संगठन और उसके बैनर तले रीतलाल यादव की अंगुलियां अब पिस्टल के ट्रेगर के बदले कंम्प्यूटर और टैब के की-बोर्ड पर थिरक रहीं हैं। देश के किसी भी महान विभूतियों की जयंती हो या फिर पुण्यतिथि, सीमा पर शहीद होने वाले हमारे सेना के जवान हों उन्हें रीतलाल यादव श्रद्धांजलि देना नही भूलते और न ही भूलते हैं किसी महत्वपूर्ण दिवस पर बधाई या शुभकामना देना। कल के इस ‘कुख्यात’ को आज बिहार का ‘बाल्मिकी’ बनने के पीछे की इच्छा शक्ति का अनुशरण अगर बिहार के अन्य अपराधी भी कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ जाएं तो शायद यह इस राजय और यहां की जनता का सौभाग्य होगा।