प्रधानमंत्री प्रशासनिक पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर अंकुश के बहाने मंत्रियों का कद छोटा करते जा रहे हैं और उनके सचिवों को अधिक शक्ति प्रदान कर रहे हैं। इसके लिए अब तक कई कार्रवाई कर चुके हैं, ताकि मंत्री दायरे से बाहर न जाएं। हाल ही में प्रधानमंत्री ने विभागीय सचिवों को और अधिक शक्ति प्रदान की है। आधिकारिक रूप से कहा गया है कि सचिव मंत्रियों को गलत काम करने से रोकेंगे और काम की प्रक्रिया तय करने में सहयोग करेंगे।
नौकरशाहीडॉटइन डेस्क
प्राप्त जानकारी के अनुसार, पीएमओ का मानना है कि सचिवों की शक्ति बढ़ने से मंत्री कोई भी गैरजिम्म्वारीपूर्ण कार्य नहीं कर सकेंगे। इतना ही नहीं, कार्यों के निष्पादन में सक्रियता तथा तेजी आएगी और पारदर्शिता भी बनेगी। इससे बिजनेस आवंटन नियमावली में सुविधा होगी। प्रधानमंत्री इससे पहले कैबिनेट मंत्रियों के बजाए सचिवों के साथ बैठक लेते रहे हैं और उन्हें मार्गदर्शन देते रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से पीएम मंत्रियों के ऊपर अधिकारियों को अंकुश लगाना चाहते हैं। ताकि हर निर्णय पर सीधे पीएमओ का हस्तक्षेप स्वीकार किया जा सके।
नरेंद्र मोदी ने पहले मंत्रियों को अपने मन से पीएस रखने पर रोक लगा दी और कई मंत्रियों की इच्छा के अनुकूल उन्हें स्टाफ नहीं मिले। इसका मलाल गृहमंत्री राजनाथ सिंह से लेकर ग्रामीण विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा तक को है। यूपीए सरकार में मंत्री के सचिव या ओएसडी रहे अधिकारियों को भी इस पदों पर नियुक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया। फाइलों को निबटाने में होने वाले अनावश्यक विलंब पर अंकुश के लिए पीएमओ ने दो या तीन स्तर पर ही फाइलों को निबटारे का निर्देश दिया है। मंत्रियों पर लक्ष्य का दबाव बढ़ा दिया है।
राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि पीएम पारदर्शिता और जवाबदेही के नाम पर शासन में अकेला आधिपत्य चाहते हैं और सचिवों के माध्यम से सभी काम निपटवाना चाहते हैं। वह निर्णय प्रक्रिया में मंत्रियों की भागीदारी व हस्तक्षेप को न्यूनतम करना चाहते हैं। यह देश की लोकतांत्रिक मर्यादा और संसदीय मूल्यों के हित में नहीं है।