क्या आपने कभी बिहार के इकलौते कोचिला वन का नाम सुना है? शायद नहीं. तो पढ़िये यह खबर और जानिये कि दम तोड़ते इस वन के नष्ट होने के खतरे अन्य वनों के नष्ट होने से कैसे अलग और कितने भयावह हैं?
कभी जटील से जटील बीमारियों के इलाज के लिए जीवन रक्षक औषधियों के लिए देश में अलग पहचान स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पूर्वी चम्पारण जिले के लखौरा के इनरवा फुलवार स्थित बिहार का इकलौता ऐतिहासिक कोचिला वन अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
इतिहास गवाह
सन 1856 में अंग्रेजी हुकूमत के दौर में परम्परागत व देसी चिकित्सा पद्धिति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित इस वन पर माफियाओं की नजर लग गयी है और बड़ी बेरहमी से पेड़ों की कटाई की जा रही है. उसकी भूमि पर अतिक्रमण किया जा रहा है।
इस वन के औषधीय महत्व पर चर्चा करते हुए जिले के कई ख्याति प्राप्त आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक चिकित्सक बताते हैं
कि यह एक औषधीय पौधा है, जिसके फल से आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक दवाएं बनती है।
कोचिला का फल नारंगी के समान होता है और इसका बीज उदरवात एवं नस रोग के लिए काफी लाभदायक होता है।
इसके फल से निकलने वाला तेल लकवा ग्रस्त मरीजों के लिए रामबाण की तरह काम करता है
सरकार व विभाग वनों की सुरक्षा व उसकी बेहतरी के लिए कठोर से कठोर कानून तो बनाती है और करोड़ों रूपये पानी तरह बहाती भी है किन्तु इस ऐतिहासिक वन को बचाने का प्रयास नही करती। हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जासकता है कि लागातार बेरहमी से बेराक-टोक वृक्षों की कटाई हो रही है और माफियाओं द्वारा इस स्थल पर कब्जा किया जाने लगा है।यहां अवैध रूप से संचालित आरा मशीनें भी इस वन को नुकसान पहुंचानें में काफी आगे दिख रही हैं.इसके वजूद को मिटाने के लिए माफियाओं द्वारा हर स्तर से प्रयास किया जा रहा है।
सरकारी अभिलेख में यह वन तो 28 एकड़ जमीन पर फैला है किन्तु अगर इसकी पैमाईश इस समय करायी जाये तो बीस एकड़ से अब कम हो जायेगी।
लाजवाब औषधि- कोचिला
इस वन के औषधीय महत्व पर चर्चा करते हुए जिले के कई ख्याति प्राप्त आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक चिकित्सक बताते हैं कि यह एक औषधीय पौधा है, जिसके फल से आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक दवाएं बनती है। कोचिला का फल नारंगी के समान होता है और इसका बीज उदरवात एवं नस रोग के लिए काफी लाभदायक होता है। इसके फल से निकलने वाला तेल लकवा ग्रस्त मरीजों के लिए रामबाण की तरह काम करता है। कोचिला वन से होकर गुजरने वाली हवा भी काफी संतुलित होती है और लोगों को काफी राहत देती है।अगल-बगल के कई किलोमीटर दूरी तक वायुमण्डल को प्रदूषण मुक्त भी करती है।
समाज सेवी व युवा जदयू के प्रदेष उपाध्यक्ष ई0शबीह खां उर्फ मासूम खां कहते है कि समय रहते इस वन को सुरक्षित करने के लिए सरकार व विभाग ने कोई ठोस कदम नही उठाया तो वायुमण्डल पूरी तरह से प्रदुषित तो होगा ही साथ ही अन्य कई समस्याएं भी उत्पन्न होगी। खां बताते हैं कि आयूर्वेद पद्धिति में इस वृ़क्ष के बारे में कई जगहों पर विस्तार से बताया गया है और कई घातक बीमारियों से बचाव के रास्ते बताये गये हैं।
इस के अलावा चर्मरोग,साइटिका आदि बीमारियों के इलाज में कोचिला का काफी महत्वपूर्ण योगदान होता है और मरीजों को शीघ्र राहत मिलती है।
जब कर्पूरी ठाकुर भी यहां आये
इस वन के संबंध में वे बताते हैं कि सन 1975 में पूर्व मुख्यमंत्री स्व0 कर्पूरी ठाकुर ने ग्राम विकास संगठन समिति के उद्घाटन के दौरान इस वन का निरीक्षण किया था जहां जानकार लोगों से अनेक जानकारियां प्राप्त की थी। तत्कालीन जिलाधिकारी बैक जुलीयस ने इस वन का सीमाकरण कराया था .उसके बाद सन 2010 में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री व वर्तमान में सुगौली के भाजपा विधायक रामचन्द्र सहनी ने भी इस स्थल का निरीक्षण किया था और बड़ी-बड़ी घोषणाएं जनता के समक्ष की थी किन्तु कोई कार्रवाई नही हुई।
हालांकि स्थानीय मुखिया द्रौपती सिंह ने मनरेगा के तहत यहां पचीस हजार विभिन्न प्रकार के पौधे लगवाये हैं। इस वन को पर्यटक स्थल घोषित करने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है और स्थानीय लोग आवाज उठाते रहे हैं किन्तु कोई ठोस पहल सरकार द्वारा अभी तक नही की जासकी है जिसकारण लोगों में आक्रोश भी है। लोग बताते हैं कि कितनी सरकारें आई और गयी किन्तु ऐतिहासिक कोचिला वन की सुधी किसी ने नहीं ली।