राजद, जदयू और कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ता कुछ दहाई सीटों के लिए टकटकी लगाए हुए हैं। आयोगों, निगमों और बोर्डों में करीब 70-80 सीटें पिछले पांच महीनों से खाली पड़ी हैं। मई महीने में इनके अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सदस्यों से इस्तीफा सरकार ने ले लिया था। औपचारिक रूप से सभी लोगों ने स्वेच्छा से पद त्याग किया था।
वीरेंद्र यादव
इन लोगों के इस्तीफे के बाद उम्मीद थी कि एक-दो माह में रिक्त पदों को भर दिया जाएगा। इसमें जदयू के अलावा राजद व कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी जगह मिलेगी। लेकिन पांच माह गुजर जाने के बाद भी अभी तक उम्मीद यथार्थ में नहीं बदल सकी है। रविवार से राजगीर में हो रही जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद इस पदों पर नियुक्ति की संभावना है। इसी बैठक में नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेवारी संभालेंगे।
अवसान की ओर है समाजवादी पीढ़ी
इस बीच प्राप्त जानकारी के अनुसार, तीनों दलों में आपसी सहमति बन गयी है कि अब तक सत्ता से वंचित रहे कार्यकर्ताओं और नेताओं को ही आयोग, बोर्ड और निगमों में जगह दी जाएगी। आयोगों के पूर्व पदधारक के अलावा पूर्व सांसद, पूर्व विधायक और पूर्व विधान पार्षदों को मौका नहीं दिया जाएगा। उनसे पार्टी के लिए काम करने का आग्रह किया जाएगा। पार्टी के शीर्ष नेताओं का मानना है कि पार्टी के प्रतिबद्ध और युवा कार्यकर्ताओं को अधिक मौका दिया जाए, ताकि भविष्य में नयी जमीन को सिंचा जा सके। राजद व जदयू में समाजवादी सोच और धारा की पीढ़ी अवसान की ओर है। सत्तानिष्ठ कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी हो रही है। ऐसे कार्यकर्ताओं को पार्टी को जोड़े रखना सबके लिए चुनौती है। वैसे प्रतिकूल माहौल में नये चेहरे की तलाश एक बड़ी समस्या है, फिर भी नये चेहरे को खड़ा करना भी आवश्यक है। ऐसे में युवा कार्यकर्ताओं में उम्मीद जगी है, जबकि अब तक सत्ता से वंचित रहे कार्यकर्ताओं को भी आस बंधी है। लेकिन इतना तय है कि इस बार ‘भूतपूर्वों’ के लिए संभावना लगभग समाप्त हो गयी है। हालांकि नेताओं के दरबार में सभी उम्र और उपेक्षाओं के लोग चक्कर लगा रहे हैं।