नीतीश कुमार का इस्तीफा और 24 घंटे के अन्दर भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनना वैचारिक भ्रष्टाचार और अवसरवादी राजनीति की पराकाष्ठा है जिसका जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय निंदा करता है।
यह निर्णय जनमत के खिलाफ और सामाजिक न्याय एवं धर्म निरपेक्ष राजनीति के लिए एक बड़ा झटका है । इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में भाजपा का पिछले दरवाजे से सत्ता पर काबिज होने का अनैतिक प्रयास है । संगठन का मामना है कि 2015 के बिहार चुनाव में लोगों ने नरेंद्र मोदी, भाजपा और आर.एस.एस की विभाजनकारी और साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ महागठबंधन को वोट दिया था – उन्हें नीतीश कुमार ने धोखा दिया है ।
नीतीश कुमार की भ्रष्टाचार और अंतरात्मा वाली बात खोखली है । उनकी आत्मा तब भी खामोश थी जब गुजरात में 2000 लोगों का कत्ले आम हो रहा था और वह सत्ता को पकड़े हुए थे और आज भी खामोश है जब सत्ता के लिए गौ रक्षा के नाम पर हो रही ह्त्या, लोगों को मजहब और पहनावे के नाम पर मारना, एंटी रोमियो दस्ता के नाम पर महिलाओं, आम लोगों पर हिंसा की जिम्मेदार भाजपा का उन्होंने फिर से दामन थामा है । उनका मोदी और भाजपा के प्रति समर्पण नोटबंदी और हाल में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दिखाई दिया । ऐसा लगता है कि इस पूरे घटनाक्रम कि पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी और नतीजा सबके सामने है ।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, बिहार जद (यू), राजद, कांग्रेस से जुड़े विधायक से पूछना चाहता है कि क्या विधानसभा में नीतीश कुमार के पक्ष में वोट देते वक्त उन्होंने अपनी अंतर आत्मा की आवाज सुनी? क्यूंकि उन्हें वोट तो महागठबंधन के नाम पर मिला था ।