जनता का अविश्वास, नैतिकता और त्याग की कीमत अदा कर चुके नीतीश कुमार की सरकार फिलहाल संकट में नहीं है। महागठबंधन के घटक दलों में सरकार की कार्यप्रक्रिया को लेकर कोई मतभेद नहीं है। यह अलग बात है कि सीबीआई की कार्रवाई से भाजपा ज्यादा उत्साहित है और नीतीश कुमार के सामने ‘नैतिकता और छवि’ का चारा डाल रही है, लेकिन नीतीश को भाजपा के चारे पर भरोसा नहीं है।
वीरेंद्र यादव
भाजपा के सुशील मोदी और अन्य नेता अब तक नीतीश कुमार के ऊपर नैतिकता के दर्जनों ‘ठेला’ फेंक चुके हैं। मीडिया वाले भी ‘नैतिकता का पत्थर’ उछालते रहे हैं। लेकिन भाजपा व मीडिया की ‘पत्थरबाजी’ अब तक बेअसर रही है।
भाजपा के नेता कई बार नीतीश कुमार को लालू यादव व अशोक चौधरी का साथ छो़ड़ने की सलाह दे चुके हैं। अभी भी सलाह दे रहे हैं। लेकिन वे यह कभी नहीं कहते हैं कि 71 विधायक वाले नीतीश कुमार (जो खुद विधान सभा सदस्य भी नहीं हैं) कांग्रेस व राजद का साथ छोड़ने के बाद किसके भरोसे सरकार चलाएंगे। भाजपा वालों को लगता है कि नीतीश ‘टपकेंगे’ तो उनकी ही झोली में गिरेंगे। लेकिन नीतीश टपकेने को तैयार नहीं हैं।
2014 में लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित होने के बाद नीतीश ने ‘नैतिकता और जन अविश्वास’ का हवाला देकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। साथ ही अगले विधान सभा चुनाव 2015 तक संगठन का काम करने की घोषणा की थी। जीतनराम मांझी सरकार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश ने मुख्यमंत्री पद के अलावा मुख्यमंत्री की सारी सुविधाएं अर्जित कर ली थीं। इसके बावजूद ‘मांझी की टीस’ उन्हें बर्दाश्त नहीं हुई और आखिरकार जदयू ने जीतनराम मांझी को सीएम की कुर्सी से ‘धकिया’ दिया।
नीतीश ‘नैतिकता व त्याग’ की गलती दुहराना नहीं चाहते हैं। नीतीश को पता है कि ‘पांत से पतल’ खींचने और भाजपा मंत्रियों को बर्खास्त करने की पीड़ा व दर्द से भाजपा अभी उभरी नहीं है। भाजपा की पूरी रणनीति नीतीश को उकसा कर राजद व कांग्रेस से अलग करना है। यदि आवश्यकता पड़ी तो बाहर से समर्थन का भरोसा भी दिला सकती है। भाजपा सरकार में समा भी सकती है। लेकिन मौका मिलते ही सरकार से समर्थन वापस लेकर नीतीश कुमार को अकेले छोड देगी। इसके बाद नीतीश राजद के लायक भी नहीं बच जाएंगे।
भाजपा की पूरी कोशिश बिहार की राजनीति को त्रिकोणीय बनाने की है। वजह है कि महागठबंधन बना रहा तो भाजपा सत्ता में नहीं आएगी और नीतीश के साथ रही तो भाजपा के लिए अण्णे मार्ग का दरवाजा नहीं खुलेगा। भाजपा के केंद्रीय व राज्य स्तरीय नेताओं का पूरा खेल बिहार की राजनीति को त्रिकोणीय बनाने की है, जिसमें भाजपा फिलहाल सफल होते नहीं दिख रही है।