कौमी तंजीम, पटना के वरीय संवाददाता कुमार सुरेन्द्र का आज निधन हो गया. उनकी मौत की खबर मुझे आकाशवाणी पटना के समाचार सम्पादक संजय कुमार जी से मिली.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
संजय जी ने ही उनकी बीमारी की बात भी कुछ दिनों पहले बतायी थी.
मैं सुरेंद्र जी को 1997 से जानता हूं. एक उर्दू अखबार की चुनौती को स्वीकार करना सुरेंद्र जी जैसे विरले लोग ही कर सकते हैं. देवनागरी लिपि जानने वाला पत्रकार अगर उर्दू की पत्रकारिता करे तो यह कई लोगों को हैरत में डाल देता है. पर सुरेंद्र जी काफी कम दिनों में उर्दू पत्रकारिता की जरूरत बन गये. इसमें संदेह नहीं कि कौमी तंजीम के चीफ एडिटर अशरफ फरीद ने भी उनके हौसले को बढाया. और देखते देखते सुरेंद्र जी की उर्दू किसी भी उर्दू पत्रकार जैसी हो गयी. शुरुआती दिनों में वह पूरी तरह से हिंदी के शब्द इस्तेमाल करते थे पर बाद में उन्होंने उर्दू शब्दों पर अधिकार प्राप्त कर लिया. हां फारसी लिपि सीखने में उन्हें समय लगा. लिखने में उन्हें कठिनाई जरूर होती थी पर वह उर्दू पढ़ने और बोलने लगे थे.
एक निष्ठावान ईमानदार पत्रकार
मैं बातों बातों में कई बार सुरेंद्र जी से कहा करता था कि वह उर्दू लिखना भी सीख लें. कौमी तंजीम से वह लगातार जुड़े रहे. इस दौरान वह आकाशवाणी के लिए भी अपना योगदान दिया करते थे. एक ईमानदार और संघर्षशील पत्रकार के सारे गुण उनमें थे. पत्रकारिता में पैसे की किल्लत का पता तो सबको है. यहां उर्दू पत्रकारिता की हालत हिंदी से भी ज्यादा खराब है. जाहिर है सुरेंद्र जी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी पर उनकी ईमानदारी और पत्रकारिता के प्रति उनकी निष्ठा काबिल ए तारीफ है.
9 अगस्त यानी ठीक ईद के दिन सुरेंद्र का ब्रेन हेम्रेज हुआ. उन्हें सीवान से पटना लाया गया. कौमी तंजीम में उस दिन छुट्टी थी पर अखबार के एडिटर अजमल फरीद ने खुद पहल करते हुए उन्हें उदयन हास्पिटल में भर्ती कराया. अखबार ने इलाज का पूरा खर्च वहन किया.
हमें पता चला है कि अखबार ने उनके परिवार को आर्थिक सहायता भी दी है. हालांकि इस सिलसिले में कौमी तंजीम के सम्पादक अजमल फरीद कहते हैं “हमने हर संभव कोशिश की है. हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई है इसलिए हम अपनी जिम्मादारी को पैसे के नजरिये से नहीं देखना चाहते”.
अजमल आगे कहते हैं “कौमी तंजीम ने अपने परिवार का एक फर्द खो दिया है. उनकी ईमानदारी और पत्रकारिता के प्रति उनका समर्पण एक मिसाल है”.
बड़े मीडिया घराने
कौमी तंजीम एक छोटा अखबारी घराना है. लेकिन जिस तरह से कौमी तंजीम ने अपने पत्रकार के इलाज से ले कर अंतिम संस्कार तक, के सुरेंद्र की मदद की है वह बड़े अखबारी घरानों के मुंह पर तमाचा है. पिछले दिनों पटना हिंदुस्तान के पत्रकार गंगेश श्रीवास्तव का एक एक्सिडेंट में देहांत हो गया था. पर हिंदुस्तान ने अपनी तरफ से कोई मदद नहीं की सिवा इसके कि उनका ग्रूप बीमा था. बस वही मदद उनके परिजनों को मिल सकी. हां पत्रकारों ने जरूर मदद की .हिंदुस्तान अखबार के पत्रकारों और गैरपत्रकार कर्मियों ने एक दिन का वेतन देकर गंगेश के परिवार के लोगों की मदद की थी. अरबों रुपये के कारोबार का इतना बड़ी मीडिया घराना अपने पत्रकार के प्रति कितना असंवेदनशील है यह गंगेश की मौत से पता चल जाता है.
एक कलम के सिपाही का यही हस्र है तो यह गंभीर चिंता का कारण है. सरकारें विज्ञापन के जरिये बड़े अखबार मालिकों की झोली तो पैसों से भर देती है पर पत्रकार, जो हमारे लोकतंत्र का असली रक्षक है, उसके लिए सरकारें कोई चिंता नहीं करतीं.
ऐसी मांगें अकसर उठायी जाती हैं कि सरकार पत्रकारों के लिए कुछ करे. हालांकि बिहार सरकार ने पिछले दिनों पत्रकारों की आर्थिक मदद की घोषणा भी की थी. पर एक मुश्त मदद से ज्यादा पत्रकारों को पेंशन जैसी सुविधाओं पर गौर करना चाहिए. उनके लिए बीमा पॉलिसी या इस तरह की अन्य सुविधाओं पर गौर किया जाना चाहिए. हालांकि के सुरेंद्र मामले में कौमी तंजीम प्रबंधन ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की है. शायद बिहार सरकार के सुरेंद्र के परिवार वालों के हक में कुछ अच्छा करे.
Comments are closed.