कथाकार व सम्पादक प्रेम भारद्वाज की श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन आई.एम.ए हॉल में आयोजित किया गया। श्रद्धाजंलि सभा में शहर के साहित्यकार, रंगकर्मी, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे। ‘अभियान सांस्कृतिक मंच’ और ‘ विजय मेमोरियल ट्रस्ट ‘, पटना की ओर से आयोजित इस श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने प्रेम भारद्वाज के असमय निधन, पत्रकारिता में उनके संघर्ष और उनके सृजनात्मक अवदान को रेखांकित किया गया।
सबसे पहले प्रेम भारद्वाज की तस्वीर पर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने प्राम्भ में प्रेम भारद्वाज के जीवन के विषय में जानकारी देते हुए कहा ” प्रेम भारद्वाज ने सन्डे पोस्ट, पाखी, और भवन्ति जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन किया। उसके ओहले उन्होंने पटना में बतौर स्वतन्त्र पत्रकार काम किया। अमृतवर्षा जैसे अखबार में काम किया। कहानी में इंतज़ार पांचवे सपने का, फोटो अंकल जैसे कहानी संग्रह छपे। सम्पादकीय टिप्पणी ओर आधारित पुस्तक ‘हाशिये पर हर्फ़’ प्रकाशित हुई। उन्होंने विभिन्न विचार दृष्टियों के लोगों के बीच आपसी संवाद का मंच बनाया अपनी पत्रिकाओं को। वे साहित्य के होलटाइमर थे।” चर्चित कथाकार अवधेश प्रीत ” एक खुशनुमा सी चलती फ़िल्म जैसे त्रासद अंत हो वैसा लग रहा है प्रेम भारद्वाज का न जाना। मैं पाटलिपुत्र टाइम्स में काम करता था। मैंने पहली लघुकथा मैंने ही छापी थी। उनकी कहानी का नाम था ‘हरे बांस का सफर’। ये सन 1985 के आसपास की बात है। वे साइकिल लिए हुए आया करते थे। प्रेम भारद्वाज की हिंदुस्तान में बैठकें हुआ करती थी। प्रेम भारद्वाज ने ‘पाखी ‘ बहुत कम समय मे साहित्य को वहां पहुंचा दिया था, जैसा राजेन्द्र यादव ने ‘हंस’ को बना दिया था। प्रेम भारद्वाज का सम्पादकीय पढ़ने के लिए लोग पाखी को लिया करते थे। बिल्कुल नए कैनवास का होता था उनका सम्पादकीय। प्रेम भारद्वाज ने साहित्य, पत्रकारिता दोनों मोर्चो पर अपनी भूमिका निभाने के साथ -साथ मानो एक लीला सी निभाकर चला गया। दिल्ली के बड़े -बड़े मठाधीशों के बीच जिस ढंग से उन्होंने ‘पाखी ‘ को स्थापित किया वो कोई सामान्य बात न थी।” मनोचिकित्सक व कवि विनय कुमार ने श्रद्धांजलि सभा में प्रेम भारद्वाज से निजी संबंधो को याद करते हुए कहा ” मैं एक जगह डॉक्टरी करता था। वहां प्रेम भारद्वाज की बहन काम करती थी।वे वहां आते थे वहीं पत्रकार कमलेश भी काम करते थे। वहीं उनदोनों के बीच साहित्य की चर्चा हुआ करती थी उसमें मैं भी शामिल हो जाता था। कुछ लोगों को अपना स्वर पाने के लिए काफी जददोजहद करनी पड़ती है लेकिन प्रेम भारद्वाज ने नियमिय श्रम, प्रयास और कोशिश करके अपना स्वर पाया। दिल्ली में सभी लेखक उससे अपना संबन्ध जोड़ा करते थे। किससे क्या लिखवाना है और कब लिखवाना है इनकी उन्हें गहरी समझ थी। प्रेम भारद्वाज में अभद्रता को सम्पादित करने का साहस था।” प्रसिद्ध कथाकार सन्तोष दीक्षित ने प्रेम भारद्वाज के बारे में बताते हुए बताया” हम पटना के लोग अभी खगेन्द्र ठाकुर से उबर भी नहीं पाए थे कि प्रेम भारद्वाज की मृत्यु हो गई। उनसे पटना पुस्तक मेला में मुलाकात हुई जब उनकी कहानी का पाठ हुआ और मुझे उनपर बोलना था। हमेशा मेरी कहानी को छापा करते थे। यदि आप किसी सतही विषय पर बात होती बात नहीं करते लेकिन गंभीर बातों पर हमेशा दिलचस्पी लेते। वे अपनी कहानियों में संवेदना से भरी कहानियां लिखते है लेकिन कहानियां अंडरटोन हुआ करती थी कभी लाउड नहीं होते थे। बिहार के लोग बाहर जाकर बाकी लोगों की तरह यहां के लोगों को भूल नहीं बल्कि खूब याद किया करते थे। प्रेम भारद्वाज ने अपने लेखन से समाज को राह दिखाने की कोशिश की।” चर्चित फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने श्रद्धाजंलि सभा में कहा ” प्रेम भारद्वाज से मिलते हुए यही अहसास होता कि हम उनके सबसे करीब हैं। जब भी वे पटना आते मुलाकातें कम ही होती लेकिन लगता कि आने भाई, अपने मित्र से रहे हैं। पहले वे ‘न्यूजब्रेक ‘ में काम किया करते थे। ‘ पाखी’ के लिए मैंने प्रेम जी कहने ओर कॉलम शुरू किया। राजेन्द्र यादव, और रवींद्र कालिया के बीच उन्होंने ‘पाखी’ को स्थापित किया। आलोकधन्वा पर विशेषांक निकालना, उस पर सोचना ही बड़ी बात है। वो संग्रहणीय अंक बनाया। प्रेम भारद्वाज ने निरन्तर खुद को समृद्ध किया। वे न्यूज ब्रेक वाले प्रेम भारद्वाज नहीं थे। लगातार काम करके, बगैर किसी राजनीतिक समर्थन के आने व्यक्तित्व व कृतित्व के बल पर ओहचान बनाई।” कथाकार रत्नेश्वर ने अपने सम्बोधन में कहा ” 1994 में जब पाटलिपुत्र टाइम्स दुबारा निकला तब उनसे गहरा सम्पर्क बना। उनकी भाषा जादुई थी। पत्रकारों , अखबारों की जो भाषा होती है उसके अनुरूप उनका लेखन होता था।” फ़िल्म अभिनेता राकेश राज ने प्रेम भारद्वाज को याद करते हुए कहा” मैं फिल्मों के लिए संघर्ष किया करता था। वे पूछा करते की आपने ‘जागते रहो’ देखी है। वे पूछा करते कि क्या आपने ‘ पाथेर पांचाली’ फ़िल्म देखी है वो भी एक उपन्यास पर बनी हुई है। जब मैं मुंम्बई जाने लगी तो वहां के लिए कई नम्बर दिए।मेरा उनकी पत्नी लता जी से भी सम्पर्क था वे ‘नटरंग ‘में काम करती थी।” पत्रकार कुलभूषण गोपाल ने प्रेम भारद्वाज के संबन्ध में बताया” प्रेम जी से हमेशा पुस्तक मेला में मुलाकात हुआ करती थी। हल्की मुस्कान से के साथ हमेशा बात किया करते थे।” श्रद्धाजंलि सभा की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात कवि आलोकधन्वा ने कहा ” प्रेम भारद्वाज बेहद व्यक्तित्वशाली व हैंडसम इंसान थे। एक अपूरणीय क्षति है आरएम भारद्वाज का जाना। प्रेम अपने किये गए काम के जरिये बने रहेंगे। प्रेम ने समकालीन त्रासदी से कभी भी खुद को अलग नहीं किया। हर बड़ी त्रासदी ओर अपनी कलम चलाई। दुख और सुख का संतुलन साधा आने जीवन में प्रेम भारद्वाज ने। अपने निजी दुख और सामाजिक चिंता के बीच हमेशा एक सरोकार बना कर रखा। प्रेम जी ने विभिन्न तरह के लोगों को प्रकाशित किया। यहां तक कि विरोधियों को भी छापा करते थे। आदमी सिर्फ रोटी के लिए नहीं बल्कि वो अपने स्वाभिमान के लिए खून बहाता है। प्रेम ने अपने जीवन में मिसाल कायम किया।” श्रद्धाजंलि सभा का संचालन युवा रंगकर्मी जयप्रकाश ने किया। अंत में एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धाजंलि अर्पित की गई। श्रद्धांजलि सभा को अर्चना त्रिपाठी, गोपाल शर्मा, वीरेंद्र झा आदि ने भी सम्बोधित किया। श्रद्धांजलि सभा में मौजूद लोगों में कुमार वरुण, सुनील कुमार, उषा झा, सत्यम कुमार झा, विष्णु, शाहनवाज, विनीत राय, कौशलेंद्र कुमार, नेहा, सीटू तिवारी, डॉ प्रियेन्दु सुमन, आनंद आदि उपस्थित थे।