कोलकाता के कांवेंट स्कूल में रात साढ़े बारह बजे हैवानियत के लुटेरों ने प्रवेश किया और एक 70 साल की बुजुर्ग महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।यह वारदात ऐसे समय हुई जब देश में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है। क्या इस घटना को केवल बलात्कार कहना उचित होगा?
तबस्सुम फातिमा
यह हैवानियत वहां पहुंच चुकी है, जहां उम्र की सीमा कोई मायने नहीं रखती। छोटी बच्ची के साथ वृद्ध महिलाएं तक रोजाना ही बलात्कार का शिकार हो रही हैं। मेक इन इंडिया और सुपर इंडिया के नारों के बीच बढ़ती साम्प्रदायिकता और बलात्कार की घटनाओं ने विकास की दिल बहलाने वाली कहानी से अलग देश को एक शर्मसार करने वाली पहचान दी है। अल्पसंख्यकों की हत्याओं का देश भारत। सर्वाधिक बलात्कार का देश भारत। मोदी के मेक इन इंडिया का जादू इस धुंध के बीच गुम हो गया है। बलात्कार हुआ है। लेकिन इतना काफी नहीं है।
डरावने प्रश्न
डरने और मनोवैज्ञानिक तौर पर घायल करने का सिलसिला हर बलात्कार के बाद आरम्भ होता है। 99 प्रतिशत बलात्कार की शिकार लड़कियां केवल इसलिए क़ानून और इंसाफ का सहारा नहीं ले पातीं कि कोर्ट में पूछे जाने वाले बलात्कारी शब्द, उन्हें बलात्कार से ज़्यादा घायल करने के लिए काफी होते हैं। बलात्कार से ज़्यादा बलात्कारी शब्दों से आहत है समाज। हाल ही में संसद की गरिमा को भंग करने वाला शरद यादव का दक्षिण की महिलाओं पर बयान ही देख लें। विवादासपद लेखिका तसलीमा नसरीन ने बंग्लादेश से भारत तक कई नामचीन लेखकों पर दैहिक शोषण के आरोप लगाये। आसाराम बापू , उनके बोटे साईं, रामपाल से लेकर साधु, संतों और आश्रमों तक दैहिक शोषण और अपराध की कहानियां फैली हुई हैं। भारतीय राजनीति और राजनेताओं के जीवन का पर्दाफाश करने वाले तहलका के अरूण तेजपाल भी बलात्कार के आरोप से बच नहीं सके। भंवरी देवी विवाद से लेकर आये दिन राजनीतिज्ञों पर बलात्कार और दैहिक शोषण के आरोप लगते रहे हैं। कानून और इंसाफ के सूत्रधर कई न्यायाधीशों पर भी बलात्कार की गाज गिरी है। स्त्री न बाहर सुरक्षित है न घर में। समय के सभ्य पन्नों पर आज भी स्त्री केवल एक देह के रूप में मौजूद है। शताब्दियों से आज तक पुरूषों के लिए वह वासना और स्वाद भर है। जॉन एफ कनैडी से बिल कि्लंटन तक विश्व के बड़े नेताओं के सेक्स स्कैण्डल भी खबरों की सुर्खियों में रह चुके हैं। अपने देश में कानून निर्माताओं, सांसदों और विधायकों पर भी यौन शोषण और बलात्कार के कई मामले चल रहे हैं। पिछले ही वर्ष छः विधायकों पर महिला शोषण का आरोप लगा। इस स्याह तस्वीर में देश के पुरूषों की विकलांग होती मानसिकता को समझा जा सकता है।
बेदम तर्क
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा बलात्कार शहरी इलाकों में ही होते हैं। यह पढ़ी लिखी महिलाओं पर एक भद्दी टिप्पणी थी। मध्य प्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवार्गीय ने तो यहां तक कह दिया कि महिलाएं लक्ष्मण रेखा लाघेंगी तो रावण मिलेंगे ही। कोई उनसे पूछे कि यह लक्ष्मण रेखा क्या है और कौन बना रहा है? निर्भया पर बनी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री इंडियाज़ डॉक्टर में बलात्कारी मुकेश सिंह को एक ऐसे नायक की तरह दिखाया गया, जिसे अपने कर्मों पर जरा भी पश्चाताप नहीं बल्कि वह पीडि़ता की ही गलती मानता है। उनके वकील भी आज की महिलाओं और उनके पहनावे पर सवाल उठाता हुआ बलात्कार को उचित ठहराता नज़र आया। हमारी बौद्धिक स्वतंत्राता एक ऐसे गटर में है, जहां आज भी नारी वेफ लिए अपमानजनक शब्दों की एक कतार सजी दिखती है। महिला आरक्षण का मुद्दा उठाने वाले भी महिलाओं वेफ खिलाफ बढ़ते अपराधी मामलों पर चुप्पी साध लेते हैं।
हतप्रभ करते आंकड़े
‘विश्व स्वास्थ संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में प्रत्येक 54वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’ सेंटर फॉर डेवलॅपमेंट आफ वीमेन अनुसार, ‘भारत में प्रतिदिन 42 महिलाएं बलात्कार का शिकार बनती हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 35वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है। पहले बलात्कार के पीछे छिपी हैवानियत या मनोवैज्ञान को देखा जाता था, अब बलात्कार के पक्ष में वकील, राजनीतिज्ञ और वीएचपी जैसे साम्प्रदायिक संगठन भी खुल कर सामने आ गये हैं। क्या स्त्री के पहनावे और दस बच्चे पैदा करने जैसे धार्मिक प्रवचन को बलात्कार, शब्दों से अलग करवेफ देखा जा सकता है? एक्कसवीं शताब्दी में एक महिला को कैसे जीना और रहना चाहिये, क्या इसका निर्णय यह पुरूष समाज लेगा, जो सदियों से भयमुक्त स्त्री का नारा देने के बावजूद स्त्रियों को भयभीत और बलात्कारी शब्दों से उसे लहुलुहान बनाता रहा है। आठ मार्च को चेन्नई के एक टीवी चैनल पर हिन्दू कट्टरपंथियों का हमला सिर्फ इस बात पर हुआ कि एक महिला ने मंगलसूत्र को कुत्तों के गले में डाले जाना वाला पट्टा बताया था। उसने क्या गलत कहा था?
खतरे में आजादी
आज की महिला भी किसी पालतू जानवर की तरह पुरूष की चौखट से बांध दी गई है। यहां उसकी स्वच्छंदता और आज़ादी खतरे में है। उसके बाहरी कामकाज और घर से बाहर निकलने को भी बलात्कार की घटनाओं और बलात्कारी शब्दों से जोड़ कर देखा जाता है। याद रखिये बलात्कार से भी ज़्यादा खतरनाक होते हैं बलात्कारी-शब्द। जो स्वाद की तरह राजनीति से मीडिया चैनलों की टीआरपी बढ़ाने के काम आ रही है। सवाल यह भी, कि बलात्कार और बलात्कारी शब्दों की आड़ में आप उसे कब तक अपमानित करते रहोगे?
Comments are closed.