भाजपा से निकाले जाने के बाद जसवंत सिंह राजस्थान के बाड़मेड़ से अपने दम पर चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को कड़ी चुनौती पेश की है.
भाजपा से टिकट कटने के बाद बगावत पर उतरे पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह के कारण देश की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट बाड़मेर-जैसलमेर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है।
अमर उजाला टीम डिजिटल
यहां दिन का तापमान करीब 42 डिग्री है और चुनावी सरगरमियां भी गर्मी जितनी ही तेज चल रही हैं। यहां देखने को मिला कि जसवंत सिंह की नाव संवेदना लहरों पर सवार हैं, जो उन्हें किनारे की ओर ढकेल भी रही है।
स्थानीय होने के कारण जसवंत सिंह को भरपूर समर्थन मिल रहा है। लोगों का कहना है कि भाजपा ने इनके (जसवंत सिंह) साथ ठीक नहीं किया।
अल्पसंख्यकों का भी झुकाव
इधर, उनके सामने हाल की कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए कर्नल सोनाराम हैं, तो कांग्रेस के वर्तमान सांसद हरीश चौधरी, दोनों ही जाट समाज से आते हैं। जाट भी बड़ा वोट बैंक है, लेकिन बंटने के कारण इसका लाभ जसवंत को मिले तो आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए.
इस संसदीय क्षेत्र की आठ में से सात विधानसभा सीटें भाजपा के खाते में हैं और इनमें से तीन पर राजपूत विधायक हैं। भाजपा के सातों विधायक चाहते थे कि जसवंत सिंह को टिकट मिले।
जसवंत सिंह का राजपूत समाज पर ही नहीं, यहां के मुस्लिमों के बीच भी अच्छा खासा प्रभाव है। इधर, वर्षों से जुड़े होने के कारण जसवंत सिंह का भाजपा का वोट काटना तो तय है साथ ही, भाजपा का वोट बैंक नहीं माने जानेवाले अल्पसंख्यकों के पास भी कांग्रेस के अलावा जसवंत विकल्प बनकर खड़े हैं।
उनके बेटे विधायक मानवेन्द्र सिंह का ससुराल और उनकी साली का रिश्ता भी पाकिस्तान में हुआ है। ऐसे में सीमा पार के रिश्तेदार यहां के रिश्तेदारों को जसवंत सिंह के पक्ष में ही वोट करने का आग्रह कर रहे हैं।
इस सीट पर सर्वाधिक जाट मतदाता हैं, लेकिन राजपूत, अल्पसंख्यक तथा दलित मतदाता भी परिणाम पटलने की हैसियत रखते हैं।
यहां करीब 17 लाख मतदाताओं में से करीब 2.5 लाख राजपूत मतदाता हैं, जो मानते हैं कि भाजपा ने टिकट वितरण में राजपूत समाज का खयाल नहीं रखा।
इधर, कर्नल सोनाराम की नजरें करीब 3.5 लाख जाट मतदाताओं पर लगी हुई हैं, लेकिन कांग्रेस के हरीश चौधरी के भी इसी समाज से आने के कारण जाट मतदाता निश्चित रूप से बंटेंगे।
यहां अल्पसंख्यक के भी करीब 2.5 लाख तथा दलित समाज के करीब 4 लाख मत हैं, जिन पर जसवंत सिंह का प्रभाव खासा है।
यहां भाजपा और जसवंत सिंह की नहीं, बल्कि जसवंत सिंह और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई है।
राजे ने ही कर्नल सोनाराम को भाजपा से टिकट दिलवाया है, जो इस संसदीय सीट पर कांग्रेस से वर्ष 1996 से 2004 तक तीन बार लगातार सांसद रहे हैं।
लेकिन विधानसभा चुनाव में इसी संसदीय क्षेत्र में ही आनेवाली बायतू सीट पर कांग्रेस से खड़े हुए कर्नल सोनाराम को भाजपा के कैलाश चौधरी से हार का स्वाद चखाया था।
सोनाराम को जिताने के लिए वसुंधरा राज ने यहां के विधायकों को कितने ही कड़े निर्देश दे दिए हों, लेकिन उन्हें जिताने के लिए लगन से लगेंगे, इसमें शक है।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की गहलोत सरकार की तरह ही महंगाई, भ्रष्टाचार सहित कुछ मुद्दों पर यूपीए सरकार से नाराजगी की कीमत कांग्रेस के हरीश चौधरी को चुकानी पड़ सकती है।
कांग्रेस के वोट बैंक अल्पसंख्यकों को जसवंत सिंह अपनी ओर खींच रहे हैं तथा जाट वोट बैंक में सोनाराम सेंध मान रहे हैं। राजपूत भी जसवंत के साथ खड़े हैं।
दलितों से जरूर उन्हें कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की उम्मीद है। हालांकि इस सीट का इतिहास जरूर कांग्रेस के पक्ष में।
यहां हुए 14 लोकसभा चुनावों में 9 बार कांग्रेस जीती है और भाजपा का खाता केवल एक बार ही खुला है।