चिराग पासवान ने अपनी हैरानी भरी अर्जी मीडिया के मार्फत अमित शाह को पहुंचाई थी तो उन्होंने अपनी बातें कहने के लिए  पिता रामविलास पासवान से ट्रेनिंग ली थी.

इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट इन

चिराग ने चुन-चुन कर संतुलित शब्दों का प्रयोग करते हुए अमित शाह को उम्र, अनुभव और पद में बड़ा होने की दुहाई दी थी और कहा था कि सीट बटवारे से उनकी पार्टी हैरान है.amit.paswan.upendra चिराग ने यह भी कहा था कि उनकी पार्टी को जितनी सीटें देने की घोषणा की गयी, पहले से किये वादे से ये कम हैं. चिराग ने भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप मढ़ा, पर संतुलित और खूबसूरत शब्दों में.

लेकिन जवाब में भाजपा ने साफ कह दिया कि अब कुछ नहीं मिलने वाला. चिराग को एक तरफ से ठेंगा दिखा दिया गया.

ऐसा ही ठेंगा भाजपा ने रालोसपा को भी दिखाया है. सीट बटवारे से ले कर कौन सीट केसके पाले में जायेगी, इस पर भी भाजपा ने रालोसपा की बोलती बंद कर दी.  उसने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये तो रालोसपा तिलमिला गयी. दिल्ली में बैठे उसके प्रवक्ता फजल इमाम मलिक ने नाराजगी जताई. कहा ये कैसे हो सकता है कि भाजपा सीटें भी खुद तय कर ले. इससे पहले भाजपा की घुड़की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी झेल चुके हैं. इस तरह गठबंधन में भाजपा की चौधराहट के शिकार उसके तीनों घटक दल हो चुके हैं. उच्चस्तर पर नेतृत्व की जैसी बेबसी घटक दलों में दिख रही है  इससे साफ लग रहा है कि रालोसपा, लोजपा और हम के रहनुमा अपने चौधरी के सामने कुछ कह या कर पाने की पोजिशन में नहीं हैं.

हाथी और चीटी की दोस्ती

बड़े नेताओं का निजी मोह चाहे जो हो, लेकिन मध्यस्तर के नेताओं को इससे बहस नहीं कि उनके नेता किस लालच में बेबस हैं. नतीजा यह सामने आया है कि हम के धाकड़ नेता देवेंद्र यादव ने मांझी की नैया से उतरने की घोषणा कर दी है. कुछ यही हाल पासवान की पार्टी के सांसद रमा सिंह का है. रमा ने लोजपा के तमाम पार्टी पदों से इस्तीफा दे कर अपना विरोध दर्ज कर दिया है. एनडीए के घटक दल डांवाडोल की स्थिति में हैं, मध्यस्तर के नेता अपने रहबरों की, भाजपा के सामने घुटने टेकने से परेशान हैं.

आखिर क्यों सब कुछ सहने को बेबस हो रहे हैं घटक दल. दर असल लोकल राजनीतिक पार्टियों को केंद्र में अपने सत्तामोह का आकर्षण सता रहा है. पासवान ने अगर भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के सामने आंखें तरेरी तो उन्हें पता है कि मंत्रिपद से छुट्टी भी हो सकती है. यह हाल रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा का है. हाथी और चीटी की दोस्ती के ऐसे ही अंजाम होते हैं. लेकिन भाजपा ने अगर खुद को हाथी सा व्यवहार करने से नहीं रोका तो उसका सूढ़ खतरे में पड़ सकता है. भले ही रालोसपा और लोजपा खुल कर कुछ न बोलें, लेकिन भाजपा की चुनावी नैया को वे खतरे में डाल  सकते हैं, भाजपा को इस बात को ध्यान में रखना होगा. लेकिन हाथी को क्या यह एहसास होगा कि चीटियां उसका कुछ बिगाड़ सकेंगी?

By Editor

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