एक साल पहले पंचायती राज विभाग के मंत्री बने भीम सिंह इन दिनों नई मशक्कत में लगे हैं. उनका विभाग मैन पावर की कमी के चलते विकास कार्यों में चुनौतियों का सामना कर रहा है.उनकी कोशिश है कि 1186 करोड़ रुपये का खजाना वाला विभाग बजट का पूरा इस्तेमाल कर सके.इन्हीं मुद्दों पर भीम सिंह ने इर्शादुल हक से खास बातचीत की.पेश हैं बातचीत के कुछ खास अंश-
नया पंचायती राज अधिनियम को बिहार में व्यावहारिक रूप से लागू हुए एक दशक हो गया है. इस एक दशक में बिहार कहां पहुंचा है?
डा. भीम सिंह- इस अधिनियम का मकसद यह था कि विकास कार्यों का विकेंद्रीकरण हो और ग्राम स्तर के प्रतिनिधि अपनी स्थानीय जरूरतों के हिसाब से विकास कार्यों में खुद ही भागीदार बनें. पिछले एक दशक में से पहले पांच साल पर तो हम ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहेंगे पर आगे के पांच छह साल में हमारी सरकार ने पूरी कोशिश की है कि पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त तरीके से लागू किया जाये. लेकिन समस्या यह रही है कि इस विभाग के पास अपना आधारभूत ढ़ांचा कारगर नहीं था. इस लिए हमने तय किया है कि इस ढ़ांचे को मजबूत और कारगर बनाया जाये.
इस दिशा में क्या किया जा रहा है?
डा. भीम सिंह-हमने यह पाया है कि विभाग में तकनीकी और गैर तकनीकी मैन पावर के अभाव में विकास कार्य पूरे करने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है. अभी तक इस कमी को पूरा करने के लिए हमारा विभाग दूसरे विभाग के इंजीनियरों पर निर्भर रहा है, जिससे काम अपने स्वाभाविक गति से नहीं हो पा रहा है. इसलिए हमलोगों ने फैसला किया कि जब तक स्थाई तौर पर हमारे विभाग में इंजीनियर और तकनीकी रूप से दक्ष लोगों की नियुक्ति नहीं हो जाती तब तक कॉंट्रेक्ट के इंजीनियर बहाल किये जायें ताकि काम को गति मिल सके. चूंकि पंचायती राज विभाग में काम का दायित्व पंचायत प्रतिनिधियों का है इसलिए यह काम खुद जिला परिषदों को करने की हिदायत दी गयी है.
आप यह कहते रहे हैं कि पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त और जवाबदेह बनाया जायेगा.आपका क्या तात्पर्य है?
डा. भीम सिंह- देखिए पंचायती व्यवस्था देश की सबसे पूरानी और पारम्परिक व्यवस्था है. इसका इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि हमारा देश. समय के साथ यह व्यवस्था बदलती और विकसित भी हुई. पर संस्थानिक रूप से इसका विकास नहीं हो पाया. इसलिए हमने यह फैसला किया कि इस पर एक व्यापक अध्ययन किया जाये. फिर उस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त किया जाये. अगर हम किसी संस्था को सशक्त करने की बात करते हैं तो यह जरूरी है कि उसे जवाबदेह भी बनाया जाये.
यह अध्ययन कैसे किया जा रहा है?
डा. भीम सिंह- जिला परिषद के अध्यक्षों की पांच समितियां बनायी गई हैं. इन समितियों में जिला परिषद अध्यक्षों के अलावा जिला विकास आयुक्त भी शामिल हैं. विकास के लिए आधारभूत संरचना, एक सुदृढ़ सिस्टम और स्पष्ट दृष्टि की जरूरत है. इसलिए जब ये समितियां अपनी अध्यन रिपोर्ट पेश करेंगी तो उसी रिपोर्ट और अनुशंसा के आधार पर इसे लागू किया जायेगा.
सवाल यह है कि पंचायती राज अधिनियम 1993 में ही अन्य राज्यों में लागू हुआ पर व्यावहारिक रूप से बिहार में यह 2001 में लगू हो सका. फिर दस सालों का समय कोई कम नहीं होता. इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान क्यों नहीं दिया सका?
ड़ा. भीम सिंह- आपको याद होगा कि जब यह अधिनियम लागू करने की बात चली तब काफी केस-मुकदमा और कानूनी दावपेंच में इस अधिनियम को उलझा दिया गया. पहली बार 2000-01 में इस आधार पर पंचायत चुनाव हुए. फिर काफी कमियां और खामियां रह गईं. सच पूछिए तो 2006 के बाद यह संस्था मजबूत बनकर उभरी, जब माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की. अब हम लोग इस व्यवस्था को मजबूत और जवाबदेह बनाने में लगे हैं.
बिहार की पंचायती राज व्यवस्था अन्य राज्यों की तुलना में कहां, और किस स्थिति में है?
डा. भीम सिंह- देखिए, केरल और कर्नाटक आदि राज्यों की तुलना बिहार से नहीं कर सकते.क्योंकि वहां यह व्यवस्था 1993 मे ही लागू हो गयी. ऐसे में उन राज्यों में यह व्यवस्था 20-21 सालों से लागू है. अपने राज्य में यह 2001 में लागू हुई. इस तरह हमारी व्यवस्था महज 11 साल की है. दस-बारह साल पीछे होने का हमारे राज्य को नुकसान यह हुआ कि हमें लगभाग दस हजार करोड़ रुपये के केंद्रीय राजस्व से वंचित होना पड़ा.
तो क्या अब जो बजट पंचायती राज विभाग को आवंटित हुआ है, उसका पूरा उपयोग सरकार कर पाती है?
डा. भीम सिंह- जैसा कि मैंने कहा इंजीनियरों और दीगर तकनीकी विशेषज्ञों की कमी के कारण काम अपने स्वाभाविक गति से नहीं हो पाया. इसलिए बजट में आवंटित राशि का इस्तेमाल भी कम ही हो पाया है. लेकिन आने वाले दिनों में स्थितियां बदलेंगी. लेकिन पिछले एक साल में हमने अन्य वर्षों की तुलना में काम की गति काफी बढ़ाई है.