भूकम्प का सामना भयावह होता है पर मंगलवार को पटना के विकास भवन में नौकरशाहों और उनके बॉडीगार्ड के बीच मानो हर्डल रेस हो रही थी जिसमें ब्युरोक्रेट्स सीढ़ियां छलांग लगाते हुए अंगरक्षकों से आगे भाग रहे थे.
नौकरशाही डेस्क
इस भूकम्प ने यह सिखाया कि जान बचाने के लिए अंगरक्षकों का न तो इंतजार किया जा सकता है और न हीं ऐसी त्रासदी में अंगरक्षक किसी काम आ सकते हैं.
पटना का विकास भवन वरिष्ठ नौकरशाहों का मक्का माना जाता है जहां दर्जनों महकमों के नौकरशाहों के दफ्तर हैं. दो पहर 12.35 बजे तक कृषि विभाग, लघु सिचाई विभाग, शहरी विकास विभाग, शिक्षा विभाग, कृषि विभाग समेत तमाम महकमों के नौकरशाह अपने चेम्बर्स में मीटिंग्स करने या फाइल निपटाने में जुट चुके थे. इतने में अचानक शिक्षा सचिव की चक्केदार कुर्सी हरकत में आ गयी. दूसरी तरफ नगर विकास विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेट्री अभी-अभी अपनी कुर्सी पर विराजे ही थे कि उनके पैरों के नीचे हरकत हुई. बस विभाग के प्रिंसिपल सिक्रेट्री अमृत लाल मीणा को यह भी याद नहीं रहा कि अपने चेम्बर से भागने की वजह अपने अंगरक्षकों को भी बता सकें. वह कूदते-फांदते भागने लगे. लेकिन अंगरक्षकों को तब तक आभास हो गया कि यह भूकम्प है. आगे-आगे अमृत लाल मीणा और पीछे उनके जूनियर अफसरान और अंगरक्षक भी सीढियां छलांग लगाते हुए भागने लगे.
धड़फड़ाये नौकरशाह
देखते ही देखते विकास भवन का कोना-कोना खाली हो गया. लोग खुले मैदान में पहुंच गये. जब तक दूसरा झटका भी आया. अमृत लाल मीणा ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी सगे को फोन लगाने की कोशिश की, मगर नेटवर्क गायब. अपने चेहरे की घबराहट को नियंत्रित करते हुए मीणा ने कहा कि ‘भूकम्प की हालत में ऊपरी मंजिल से भागने का कोई फायदा नहीं’. वह अपने कलिग्स को इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि ‘अगर बिल्डिंग गिरी तो सीढ़ियों से भागने पर भी नहीं बच सकते. इसलिए बेहतर है कि तत्काल सलामती के लिए ऊपर ही शरण लिया जाये’. मीणा की बात सुन रहे उनके एक कलिग ने हां में सर हिला तो दिया लेकिन उनके चेहरा, मानो यह बता रहा हो जैसे वह मीणा की बातों से सहमत नहीं.
इतने में एक अन्य नौकरशाह वहां आते हैं. एसी की कूल-कूल हवा से निकले इन अफसर पर खौफ की लकीरें तनीं थीं और चेहरे से पसीना बह रहा था. वह अपने ड्राइवर को इशारा करते हैं. उनकी गाड़ी लगती है और वह बिना कुछ कहे कहीं रवाना हो जाते हैं.
जलजला के इस झटके की तीव्रता भले ही 7.4 बतायी जा रही हो लेकिन यह अप्रैल 26 तारीख के झटके से इस मायने में अलग महसूस हुआ कि लोग काफी सतर्क और चुस्त नजर आये. कोई घंटा भर बाद भले ही लोग अपने-अपने कार्यालयों में जाने लगे लेकिन मंगलवार का दिन भूकम्प के नाम रहा और कई जरूरी काम नहीं निपटाया जा सका.