एक वर्ष की सरकार में ऐसा दो बार हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिम नेताओं से मुलाकात की। इससे पहले सुरेश ज़फर वाला भी मुस्लिम नेताओं से मिलकर यह संदेश पहुंचा चुके थे कि प्रधानमंत्री मोदी मुसलमानों से मिलना चाहते हैं।modi.with.muslims

—तबस्सुम फातिमा

मुस्लिम नेताओं से मिलकर मोदी ने यह संदेश भी देने की कोशिश की कि उनकी सरकार धार्मिक भेदभाव और सांप्रदायिकता को पसंद नहीं करती और उनकी इच्छा है कि उन्हें अपने काम से पहचाना जाए। एक वर्ष में ऐसा कई बार हुआ, कुछ दिन पहले संघ का नाम लेकर भी विश्व राजनीति को यह संदेश देने की कोशिश की, कि उनकी सरकार में सांप्रदायिक होने के जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वह उचित नहीं। अभी हाल में अपने एक कॉलम में करण थापर ने सरकार की कुछ उपलब्धियो की प्रशंसा करते हुए लिखा कि आखिर क्या कारण है कि ईसाइयों पर अत्याचार और मुसलमानों के साथ होने वाली नाइंसाफियों के मामले और भड़काऊ बयान पर प्रधानमंत्री मोदी चुप रह जाते हैं? यह सवाल महत्वपूर्ण है और एक वर्ष के प्रदर्शन में मोदी को इसका जवाब स्वंय खोजने की जरूरत है। आखिर क्या कारण है कि गुजरात के दाग आज तक धुल नहीं पाए और गूगल सर्च इंजन भी मोदी को आतंकवादियों की सूची में रखता है? आज भी अमेरिका और यूरोप के कई पत्रकार, बुद्धिजीवी और उन सरकारी संगठनों की नज़रों में मोदी का व्यक्तित्व संदिग्ध है।

जाओ पाकिस्तान

जिस दिन मोदी मुस्लिम नेताओं से मिले, उसी दिन भाजपा नेताओं ने राम मंदिर निर्माण का मामला उठा कर वातावरण को बिगाड़ने की कोशिश की। एक साल का हर सातवां दिन विदेशों में बिताने वाले मोदी से यह कतई उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह भड़काऊ बयानों और सांप्रदायिक राजनीति पर दबाव नहीं डाल सकते। एक ओर मेक इन इंडिया की बातें होती रहीं, दूसरी ओर मुख्तार अब्बास नकवी तक यह बयान देते रहे कि गाये के मांस खाना है तो पाकिस्तान या अरब चले जाओ। यह बयान किसी तोगड़िया, किसी योगी आदित्यनाथ की ओर से नहीं आया बल्कि एक गंभीर मंत्री द्वारा दिया गया है.

मजफ्फरनगर-बल्लभगढ़ दंगा

आश्चर्य इसी बात पर होता है कि भड़काऊ बयानों से लेकर मस्जिदों पर कब्ज़े और पवित्र स्थानों को ध्वस्त करने की घटनाएं बार—बार मोदी सरकार में होती रहीं और मोदी चुप रहे। वल्लभ गढ़, हरियाणा के इटली गांव में गुजरात, असम और मुजफ्फरनगर जैसे हादसों को दोहराया गया। गुजरात नरसंहार 2002 के तर्ज पर मुसलमानों के घरों में औपचारिक निशान लगाए गए। आतंकवादी पेट्रोल और गैस सलंडरों के साथ थे। लव जिहाद और घर वापसी का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ। विश्व हिंदू परिषद ने हाल में अपने विध्वंसक एजेंडे में घोषणा की कि अयोध्या से कनेक्ट 4 जिलों में मस्जिद निर्माण नहीं होने देंगे। यह भी कहया गया कि मुसलमानों को हरिद्वार जाने पर पाबंदी लगा दी जाए। यह घटनाएं मुसलमानों को अपने ही देश में अजनबी बनाने के लिए पर्याप्त है। कभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा जा रहा है। कभी कहा जा रहा है कि मुसलमानों से वोट देने का अधिकार छीन लिया जाए। हाल में अमेरिकी सिख संगठन सिखस फॉर जस्टिस (एस एफ़ जे) ने आरएसएस के घरवापसी अभियान के विरूद्ध याचिका दाखिल की है।याचिका देने वालों में एक ईसाई माइकल मसीह, एक सिख कुलवेन्द्र सिंह और एक मुसलमान हाशिम अली हैं। क्या इससे यह बात निकल कर सामने नहीं आती कि अमेरिका के एन आर आई भी मोदी से कितने त्रस्त हैं? अल्पसंख्यकों में आरएसएस, विहिप की ओर से जारी बयानात को लेकर किस हद तक लोगों में नाराजगी है?

अस में बन रहे निशाना

असम में नागरिकता के नाम पर मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। अभी हाल में गुजरात में एक युवा को सिर्फ इसलिए नौकरी देने से मना किया गया कि वह मुसलमान है। लेकिन उसके दो हिंदू दोस्तों ने लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए अपनी नौकरी ठुकरा कर एक मजबूत मिसाल कायम की। हाशिमपुरा हो या बाबरी मस्जिद, कोई भी फैसला मुसलमानों के पक्ष में क्यों नहीं हुआ? भगवा मिशन की यह सफलता है कि गुजरात के आरोपी साफ बरी हो जाते हैं। साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद, कर्नल प्रोहित और अन्य अपराधियों से मकोका हटाने का फैसला आ जाता है। और निर्दाेष मुस्लिम नौजवानों की रिहाई की हर योजना धरी रह जाती है। ताज महल में पूजा करने के लिए मुकदमा दायर किया जाता है।

 

मोदी जी भारत में धर्मनिरपेक्षता की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत हैं कि कुछ हिंसा सतत शक्तियों के चाहने के बावजूद लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं है। मुसलमान इस मजबूत लोकतंत्र का हिस्सा हैं। उनसे मिलने का रास्ता कोई मुश्किल रास्ता नहीं है। लेकिन एक सवाल और है, क्या इस देश के मुसलमान केवल वही हैं जो दाढ़ी रखते हैं, कुरता पैजामा और टोपी पहनते हैं? अन्य राजनीतिक पार्टियां भी मुसलमानों से मिलने के बहाने ऐसे ही नेताओं पर भरोसा करती हैं। इन नेताओं में बड़ी संख्या राजनीतिक दलों से प्रतिबद्धता रखने वालों की भी है।

 

आप इस देश के मुस्लिम विद्वान, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, डॉक्टर, इंजीनियर और हर क्षेत्र के गंभीर लोगों से संवाद करें तो मुसलमानों की समस्या का निदान बेहतर ढ़ंग से होगा। इन सबसे महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले मुसलमानों के भीतर जन्मे भय को दूर करें। मुसलमान इसी देश का हिस्सा हैं। उन्हें भरोसा में लेने के लिए उनके अंदर से असुरक्षा की भावना को दूर करें। आप 25 करोड़ मुसलमानों को मुख्यधारा में शामिल समझते हैं तो किसी मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल से मिलने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

By Editor

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