देश की गद्दी पर एक ऐसा व्यक्ति बैठा है जिसकी भाव भंगिमा में पुरुषोचित वीरता के बजाय नारीसुलभ श्रृंगारिकता और कठोरता के बजाय श्रृंगार वाली कमनीयता की प्रमुखता है..पढिये नवल शर्मा की नजरों से
भारत वीरों का देश रहा है . पूरा भारतीय इतिहास वीरता के एक से बढ़कर एक दृष्टान्तों से भरा पड़ा है .साहित्य के नौ रसों में वीर रस आदिकाल से ही भारतीयों की शिराओं में प्रवाहित होता रहा है. जीवन में श्रृंगार की अनिवार्यता के बावजूद इस देश ने हमेशा जयचंद जैसे भोगी और कायर लोगों की तुलना में पृथ्वीराज जैसे वीरों को अपना आदर्श माना है. बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए जब इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान की छाती को दो भागों में चीरकर बांग्लादेश का निर्माण किया तो पूरा देश वीर रस से आंदोलित हो उठा था. और आज भी संजय गाँधी की बालसुलभ नादानियों के बावजूद उनकी निर्भीकता और वीरता के आख्यान गाहे – बेगाहे सुनने को मिल जाते हैं . लब्बोलुबाब यह कि भारत की जनता अपने शासक के पराक्रम को पहले देखती है , बाकी गुण और दोष उसके बाद. यही कारण है कि बिहारीदास की नायिका का नख-शिख सौंदर्य वर्णन जनसामान्य को उतना आकर्षित नहीं करता जितना आल्हा–उदल के वीररसात्मक छंद.
लाहौर तक घुस कर मारने की डींगबाजी और एक सिर के बदले दस सिर लाने वाली गीदड़भभकी भूल जाइए. पाकिस्तान आपके घर पर रोज ढेला फेंक रहा है जैसे लग रहा है —–‘’ अबर की भौजाई सबके लुगाई और नंगे की लुगाई सबके दाई ‘’. तो ऐसी दशा हो गयी है भारत की
आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा अहसास हो रहा है कि देश की गद्दी पर एक ऐसा व्यक्ति बैठा है जिसके व्यक्तित्व और भाव भंगिमा में पुरुषोचित वीरता के बजाय नारीसुलभ श्रृंगारिकता और शासकीय कठोरता के बजाय सोलह श्रृंगार वाली कमनीयता की प्रमुखता है. जब बराक ओबामा भारत आये तो ऐसा लगा मानो रत्नसेन और पदमावती [ मोदी ] का मिलन हो रहा हो. अपने प्रिय को रिझाने के लिए क्या पहनें , कैसा श्रृंगार करें , दस लाख वाला घाघरा पहनें या कुछ और . कैसे रिझाएँ –
कहत , नटत , रीझत ,खीझत , मिलत ,खिलत , लजियात
भरे भौंन में करत है, नैनन ही सों बात!
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दिनचर्या का बड़ा हिस्सा अपने रंग– रोगन पर
अब सीधे सीधे मुख्य कथ्य पर आते हैं. इतने साज श्रृंगार और आवभगत पर लगभग एक हज़ार करोड़ खर्च करने के बावजूद ओबामा फटकार लगाकर और धार्मिक सहिष्णुता की पाठ पढ़ाकर चले गए. ऊपर से उस सूट की ऐसी जगहंसाई हुई कि उस मनहूस सूट को नीलाम ही कर देना पड़ा. पूरे राजनयिक जगत में भारत हास्य का पात्र बन गया. विश्व के एक बड़े डिज़ाइनर ने कहा कि आपका पहनावा आपको मजाक न बनाये , यह जरुरी है. इस एक छोटी सी घटना ने देश के ‘’ प्रधानमंत्री ‘’ को ‘’ परिधानमंत्री ‘’ बना दिया. भारतीय प्रधानमंत्री की वैश्विक छवि एक ऐसे नेता की बन गयी जो दिन में कई बार कपड़े बदलता है और अपनी दिनचर्या का बड़ा हिस्सा अपने रंग– रोगन , पाउडर , लिपिस्टिक और सुन्दर दिखने के असफल प्रयत्न में खर्च करता है. और जो समय बचता है उसमें कभी ड्रम बजाना सीखता है तो कभी बाँसुरी बजाना .
लोहिया ने एक पीएम के ड्रेस की तुलना तबलची से की
क्या गुजरात का मुख्यमंत्री रहते किसी ने सुना कि मोदी जी ड्रम भी बजाते हैं और बाँसुरी भी . शायद नहीं. अभी आगे आगे देखिये , उनकी बहुमुखी प्रतिभा के और कितने रंग उभरते हैं . शायद अगली बार वो किसी देश में सैक्सोफोन या गिटार भी बजाते नज़र आयें. मंचों पर खासकर मैडिसन स्क्वायर जैसे मंचों पर चलने का स्टाइल ऐसा मानो फैशन टीवी के मॉडल्स से कैटवाक में प्रतिस्पर्धा कर रहे हों. कभी लोहिया ने मजाक में जवाहरलाल नेहरु के चूड़ीदार पजामे और अचकन की तुलना लखनऊ के तबलचियों से की थी. खैर नेहरु जी की योग्यता और विद्वता किसी परिचय का मोहताज नहीं पर अगर लोहिया जिन्दा रहते तो मोदी जी को देख कैसी टिपण्णी करते , सोंचिये और मुस्कुराइए. पर इस पूरी श्रृंगारिक कवायद का देशहित में वैसा ही परिणाम निकल रहा है जैसा अपेक्षित था. महाशक्तियों की बात तो छोडिये , श्रीलंका जैसा पिद्दी राष्ट्र भी धमकी दे रहा है कि अपने मछुआरों को संभालो वरना उन्हें गोली मार देंगे .
बोलो बुरे दिन गये कि नहीं !
लाहौर तक घुस कर मारने की डींगबाजी और एक सिर के बदले दस सिर लाने वाली गीदड़भभकी भूल जाइए. पाकिस्तान आपके घर पर रोज ढेला फेंक रहा है जैसे लग रहा है —–‘’ अबर की भौजाई सबके लुगाई और नंगे की लुगाई सबके दाई ‘’ . तो ऐसी दशा हो गयी है भारत की . अब तक सैकड़ों सैनिक और सैन्यधिकारी मारे जा चुके हैं और यह प्रक्रिया कमोबेश जारी है . बॉर्डर के पास जो गाँव हैं उनके सहमे हुए वासियों से पूछिए कि अच्छे दिन आ गए ! जवाब में शायद आपके सिर के एक भी बाल न बचे. चीन तीस किलोमीटर तक घुस आया और हमारे परिधानमंत्री झूला झूलते हुए राग हिंडोला गाते रहे . आतंकवादी जेलों से छोड़े जा रहे हैं , कश्मीर में खुलेआम पाकिस्तान जिंदाबाद हो रहा है , रूस हमपर हंस रहा है और अमेरिका कुटिल मुस्कान छोड़ रहा है और हमारे वीर मोदी जी हमसे पूछ रहे हैं —‘’ बोलो , बुरे दिन गए कि नहीं !
नवल शर्मा एक विनम्र राजनीतिक कार्यकर्ता के साथ साथ राजनीतिक चिंतक के रूप में जाने जाते हैं. जद यू के आक्रामक प्रवक्ता रहे नवल मौलिक और बेबाक टिप्पणियों के लिए मशहूर हैं. अकसर न्यूज चैनलों पर बहस करते हुए दिख जाते हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है.
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