पूरे देश की नजर उत्तर प्रदेश के वाराणसी सीट पर लगी है जहा से भाजपा के भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और माफिया सरगना माने जाने वाले बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी कौमी एकता पार्टी से वहां से चुनाव लड़ेंगे।
विनायक विजेता
कांग्रेस ने अबतक अपना पत्ता नहीं खोला था पर मंगलवार को कांग्रेस ने वाराणसी जनपद क्षेत्र के ही पींडरा से अपने विधायक अजय राय को लोकसभा उम्मीदवार घोषित कर सबों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
पूर्व में भाजपा में रहे बाद में समाजवादी पार्टी और फिर कांग्रेस में आए अजय राय पूर्व में भाजपा कके टिकट पर दो बार और उपचुनाव में सपा के टिकट पर एक बार विधायक रह चुके हैं जबकि वह वर्तमान में कांग्रेस के कोटे से पिंडरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं।
2009 के चुनाव में भी अजय राय ने भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ चुनाव लड़ा था जिसमें उन्हें 18.6 प्रतिशत मत (लगभग 1 लाख 70 हजार) मिले थे। भूमिहार जाति से आने वाले अजय राय तब सुर्खियों में आए जब उनके पांच भाइयों में सबसे बड़े भाई अवधेश राय की हत्या वाराणसी के चेतगंज थाना के पास स्थित उनके घर के समीप तब कर दी गई जब वह सुबह में दातून कर रहे थे।
चर्चा है कि इस हत्या के पीछे भी मुख्तार अंसारी का ही हाथ था। अजय राय का वाराणसी में भमिहार और कांग्रेस के परम्परागत ब्राह्मण वोटों पर एक छत्र राज्य माना जाता है जबकि मुख्तार अंसारी सिर्फ अल्पसंख्यक मतों के आसरे चुनाव मैदान में हैं।
अगर मोदी की लहर को रोकने के लिए अल्पसंख्यक मतदाता जिनकी संख्या लगभग दो लाख है का रुझान अगर कांग्रेस प्रत्याशी की ओर मुड़ जाए तो वाराणसी का चुनाव दिलचस्प हो सकता है। हालांकि राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि मोदी के आगे चाहे वो केजरीवाल हो या मुख्तार या फिर अजय राय ही क्यों न हों सबों की राह कठिन है।
बहरहाल वाराणसी के स्वर्ण जाति के मतदाता जिनका रुझान अबतक भाजपा और नरेन्द्र मोदी की तरफ था वे कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी के तौर पर अजय राय के नाम की घोषणा के बाद असंमजस की स्थिति में हैं और इतना तो तय है कि सवर्ण जाति के अधिकांश मत अजय राय के खाते में ही जाएंगे।
अब देखना यह है कि चुनाव परिणाम के बाद मुंह पर हाथ रखने की बारी किसकी आती है। वाराणसी में 17 अप्रैल से 24 अपैल के बीच नामांकन होना है।