हिंदी पट्टी के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी द्वारा तूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने पर वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने अपमानित किया, इतना ही नहीं उन्हें बार-बार कहा कि आप अंग्रेजी नहीं जानते.
यह अंग्रेजी का चक्कर भी अजीब है.चाहे आप आईएएस ही क्यों न हों अगर आपकी अंग्रेजी अच्छी नहीं तो आप हीनता के या तो शिकार बना दिये जाते हैं या फिर खुद ही हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं.
संकट तो तब खड़ा हो जाता है जब आप हाईप्रोफाइल सोसायटी में हों और कोई आपकी अंग्रेजी भाषा ज्ञान को लेकर आपकी फजीहत कर दे. कुछ इसी तरह की फजीहत के शिकार हुए शहरी विकास सचिव और 1977 बैच के आईएएस अधिकारी सुधीर कृष्णा. और वह भी जिस व्यक्ति से उन्हें अपनी तूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने पर फजीहत उठानी पड़ी वह कोई और नहीं बल्कि वित्त मंत्री पी चिदम्बरम हैं.
कृष्णा , पी चिदम्बरम की बातों से इतने आहत हुए कि उन्होंने इसकी बाजाब्ता लिखित शिकायत कर दी. दर असल कृष्णा ने अपने लिखित शिकायत में कहा है कि वित्त मंत्री ने अंतरमंत्रालय समूह की बैठक में कृष्णा को बार-बार टोका कि “उन्हें इंग्लिश नहीं आती. इसलिए वह हिंदी में बोलें और मैं उनकी बातों का अनुवादक के सहारे समझ लूंगा’. इतना ही नहीं कृष्णा ने अपनी शिकायत अपने मंत्री कमल नाथ को सौंपी है और कहा है कि उनकी शिकायत प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह तक पहुंचायी जाये.
सुधीर कृष्णा उत्तर प्रदेश से आते हैं, जिनकी मातृ भाषा स्वाभाविक तौर पर हिंदी है. हिंदी पट्टी के राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश छत्तीस गढ़ वगैरह में हिंदी की प्रधानता है. ऐसे में जाहिर है कृष्णा की अंग्रेजी फरार्टेदार नहीं होगी पर इस पर उन्हें हीन भावना का शिकार होने के बजाय गर्व करना चाहिए. क्योंकि वित्त मंत्री पी चिदम्बरम, भले ही देश के वित्त मंत्री हों, उन्हें हिंदी नहीं आती. ऐसे में शर्म या हीनता का बोध तो वित्त मंत्री को होना चाहिए जिन्हें भारत की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा नहीं आती.
लेकिन यह बड़े अफसोस की बात है कि जो भारत की सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा नहीं जानते हुए भी शर्म करने के बजाय उन्हें शर्मिंदा करते हैं जिन्हें गैरमुल्की भाषा नहीं या कम आती है.
एक मंत्री होने के बावजूद पी चिदम्बरम ने कृष्णा को बार बार टोक कर शर्मिंदा करके सिर्फ सुधीर कृष्णा का नहीं बल्कि हिंदी भाषा का अपमान किया है. इसलिए इस मुद्दे को गंभीरता से लिये जाने की आवश्यकता है. क्योंकि एक आईएएस वह भी काफी वरिष्ठ आईएएस को नौकरशाही और राजनीति निर्णायकों के बीच अपमान झेलना पड़ा है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक सामान्य पढ़े लिखे हिंदी भाषियों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता होगा.