1965 के पाकिस्तान युद्ध के दौरान आज ही के दिन यानी दस सितम्बर को अपनी जान की बाजी लगा कर भारत के स्वाभिमान की हिफाजत करने वाले हवलदार अब्दुल हमीद का राष्ट्र याद कर रहा है.
आज हवलदार हमीद के पैतृक गांव यूपी के गाजीपुर के समीप धामुपुर में राज्यपाल राम नाइक और सेना प्रमुख समेत अनेक दिग्गज उन्हें खिराज ए अकदत पेश करेंगे.
जखनियां तहसील के तहत धामूपुर गांव के निवासी रहे वीर अब्दुल हमीद ने मात्र 32 वर्ष की उम्र में दुश्मनों के दांत खट्टे कर 1965 के युद्ध का परिणाम देश के पक्ष में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। देश की आन बान और शान के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर राष्ट्र की रक्षा मे अपने को समर्पित करने वालों रणबांकुरो की कड़ी में उनका विशेष स्थान रहा है।
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध मे पाक सेना जब अमृतसर को सब तरफ से घेर कर अपने कब्जे में करने की चाल को अमली जामा पहनाने की नियत से गोली बारी करती हुई खेमकरन सेक्टर के चिया गांव की ओर बढ़ रही थी, उसी क्षेत्र मे मौजूद अब्दुल हमीद अपने सीमित साधनों के बावजूद पाकिस्तानी फौज को आगे बढऩे से रोकने में जिस अदम्य साहस का परिचय दिया वह भारत के स्वर्णिम इतिहास के सुनहरे पन्नों मे दर्ज है।
वह दस सितम्बर 1965 का वक्त था जब अभेद्य अमेरिकी पैटन टैंको से लैस पाकिस्तानी फौज नापाक इरादों के साथ गोले बरसाते हुए आगे बढ़ रही थी। दुश्मन फौज के इरादों और समय की नजाकत को भांप अब्दुल हमीद ने मादरे वतन के लिए कुछ कर गुजरने के मंसूबे के साथ उनकी बढ़त रोकने के लिए अभेद्य पैटन टैंक को लक्ष्य कर गोले दागे फलस्वरूप पैटन टैंकों की गति थम गई।
पाकिस्तानी फौज इस अप्रत्याशित हमले से ङ्क्षककर्तव्यविमूढ़ हो गई और जब तक वह सम्भलती तब तक गाजीपुर की शहीदी धरती के इस लाल ने एक एक कर तीन पैटन टैंको को नेस्तनाबूत कर दिया। अपने अभेद्य टैंकों की ऐसी दुर्गति देख बौखलाई पाकिस्तानी फौज ने अपनी तोपों का मुंह उधर कर दिया जिधर से उनके टैंक को निशाना बना उसे आग के शोलों मे तब्दील किया जा रहा था। 3 टैंकों को नेस्तनाबूत करने के बाद अब्दुल हमीद जब चौथे पैटन टैंक को मटियामेट करने के लिये निशाना साध रहे थे तभी पाकिस्तानी टैंक से निकले गोले से वे शहीद हो गए।
अपने फौजी साथी अब्दुल हमीद की हिम्मत को देख भारतीय फौज दोगुने उत्साह से दुश्मनों पर टूट पड़ी और पाकिस्तानी सेना को मैदान छोड़ भागना पड़ा। साहस और अपने मंसूबों के धनी इस महावीर को मरणोपरांत 16 सितम्बर 1965 को भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च मेडल परमवीर चक्र देने की घोषणा की और गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी 1966 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्व पल्ली राधा कृष्णन ने उनकी पत्नी रसूलन बीबी को यह सम्मान सौंपा था।